पुस्तक परिचय
प्रसिद्ध हिन्दी सेवी, आलोचक और अनुवादक अध्यापक पूर्ण सिंह का जन्म सलहड (ऐबटाबाद) मे 1881 ई में हुआ था । उनके पिता थे सरदार करतार सिंह और माता परम देवी । मिशन स्कूल, रावलपिंडी से दसवीं की पढाई पूरी कर उन्होंने डी ए वी कॉलेज लाहौर (अब पाकिस्तान में) में दाखिला लिया और रसायन शास्त्र में शिक्षा पूरी कर 1900 ई में टोकियो, जापान की इम्पीरियल युनिवर्सिटी से अपना पाठ्यक्रम पूरा किया । वहीं स्वामी रामतीर्थ के प्रभाव में आकर उन्होंने सन्यास ले लिया और थंडरिंग डॉन नामक पत्रिका का प्रकाशन भी आरंभ कर दिया । सन् 1904 में भारत लौटने पर, पारिवारिक दबाव के चलते वे गृहरथ बन गये । उन्होंने विक्टोरिया डायमंड जुबली हिन्दू टेक्नीकल इन्स्टीच्यूट में रसायन सलाहकार पद पर कार्य किया । कुछ वर्षों तक ग्वालियर के सरदार नगर मे एक करखाने को अपनी सेवाएँ प्रदान करते रहे । सन् 1926 में वे बारा आ गये और जीवन के अन्तिम समय तक साहित्य सेवा और अध्यात्म चर्चा में लगे रहे वहीं उनकी मृत्यु तपेदिक (1931) से हुई ।
हिन्दी और पंजाबी के पाठको में समान रूप से लोकप्रिय अध्यापक पूर्ण सिंह बड़े गंभीर और विनम्र स्वभाव के थे । उन्होने साहित्य की लगभग सभी विधाओं में अपनी लेखनी चलाई । उन्होंने कार्लाइल, इमर्सन, टाल्सटॉय जैसे महान लेखको की रचनाओ के अनुवाद भी किये जो पाठकों मे बेहद लोकप्रिय हुए ।
लेखक परिचय
प्रस्तुत विनिबंध के लेखक डॉ रामचंद्र तिवारी ने अध्यापक पूर्ण सिह के जीवन और कृतित्व पर बडी प्रामाणिकता से सामग्री प्रस्तुत की है और हिन्दी पाठकों को उनके अविस्मरणीय अवदान से परिचित कराया है ।
अनुक्रम |
||
1 |
काल और देश |
7 |
2 |
जीवन परिचय |
14 |
3 |
स्वभाव और व्यक्तित्व |
25 |
4 |
कृतियों |
32 |
5 |
निबन्धकार पूर्ण सिंह |
47 |
6 |
कवि पूर्ण सिंह |
69 |
7 |
उपसंहार |
86 |
सहायक सामग्री |
89 |
पुस्तक परिचय
प्रसिद्ध हिन्दी सेवी, आलोचक और अनुवादक अध्यापक पूर्ण सिंह का जन्म सलहड (ऐबटाबाद) मे 1881 ई में हुआ था । उनके पिता थे सरदार करतार सिंह और माता परम देवी । मिशन स्कूल, रावलपिंडी से दसवीं की पढाई पूरी कर उन्होंने डी ए वी कॉलेज लाहौर (अब पाकिस्तान में) में दाखिला लिया और रसायन शास्त्र में शिक्षा पूरी कर 1900 ई में टोकियो, जापान की इम्पीरियल युनिवर्सिटी से अपना पाठ्यक्रम पूरा किया । वहीं स्वामी रामतीर्थ के प्रभाव में आकर उन्होंने सन्यास ले लिया और थंडरिंग डॉन नामक पत्रिका का प्रकाशन भी आरंभ कर दिया । सन् 1904 में भारत लौटने पर, पारिवारिक दबाव के चलते वे गृहरथ बन गये । उन्होंने विक्टोरिया डायमंड जुबली हिन्दू टेक्नीकल इन्स्टीच्यूट में रसायन सलाहकार पद पर कार्य किया । कुछ वर्षों तक ग्वालियर के सरदार नगर मे एक करखाने को अपनी सेवाएँ प्रदान करते रहे । सन् 1926 में वे बारा आ गये और जीवन के अन्तिम समय तक साहित्य सेवा और अध्यात्म चर्चा में लगे रहे वहीं उनकी मृत्यु तपेदिक (1931) से हुई ।
हिन्दी और पंजाबी के पाठको में समान रूप से लोकप्रिय अध्यापक पूर्ण सिंह बड़े गंभीर और विनम्र स्वभाव के थे । उन्होने साहित्य की लगभग सभी विधाओं में अपनी लेखनी चलाई । उन्होंने कार्लाइल, इमर्सन, टाल्सटॉय जैसे महान लेखको की रचनाओ के अनुवाद भी किये जो पाठकों मे बेहद लोकप्रिय हुए ।
लेखक परिचय
प्रस्तुत विनिबंध के लेखक डॉ रामचंद्र तिवारी ने अध्यापक पूर्ण सिह के जीवन और कृतित्व पर बडी प्रामाणिकता से सामग्री प्रस्तुत की है और हिन्दी पाठकों को उनके अविस्मरणीय अवदान से परिचित कराया है ।
अनुक्रम |
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1 |
काल और देश |
7 |
2 |
जीवन परिचय |
14 |
3 |
स्वभाव और व्यक्तित्व |
25 |
4 |
कृतियों |
32 |
5 |
निबन्धकार पूर्ण सिंह |
47 |
6 |
कवि पूर्ण सिंह |
69 |
7 |
उपसंहार |
86 |
सहायक सामग्री |
89 |