लेखकीय
भृगुसंहिता भारतीय ज्योतिषविद्या का एक विश्व-प्रसिद्ध ग्रन्थ है। यह वह ग्रन्थ है जिसमें इस विश्व के प्रत्येक मनुष्य के भाग्य का लेखा-जोखा है। अपने आप में यह बात अविश्वसनीय लगती है पर यह सत्य है। भृगुसंहिता में प्रत्येक व्यक्ति के भाग्य को दर्पण की तरह देखा जा सकता है।
भृगुसंहिता एक विस्तृत ग्रन्थ है। आकार को लेकर नहीं बल्कि इस कारण कि इसमें भारतीय ज्योतिष के प्रत्येक पक्ष का सूक्ष्म विवरण दिया गया है । वस्तुत: यह एक तकनीकी है जिसका आविष्कार भृगु ऋषि ने किया था। इस तकनीकी के आधार पर लिखे गये प्रत्येक ग्रन्थ को भृगुसंहिता ही कहा जाता है। यह ज्योतिषविद्या की अमूल्य तकनीकी है जिसमें सारिणीबद्ध करके सभी प्रकार की कुंडलियों के फल जानने के तरीके का वर्णन है।
परन्तु आज जितनी भी भृगुसंहिता बाजार में उपलब्ध है, वे अधूरी हैं। इसमें अलग-अलग ग्रहों का फल बताया गया है और आशा की गयी है कि इनके सहारे सम्पूर्ण कुंडली का फल ज्ञात कर लिया जायेगा परन्तु कुंडली का फल अलग-अलग ग्रहों की स्थिति के फलों का संयुक्त रूप से प्रभावी समीकरण होता है। ग्रहों का प्रभाव एक दूसरे पर पड़ता है, भावों एवं राशियों का भी फल में हस्तक्षेप होता है। इन प्रचलित भृगुसंहिताओं में वह तकनीकी नहीं बतायी गयी है, जिसके द्वारा इनका सम्मलित सटीक फलादेश ज्ञात किया जा सके। इसके अतिरिक्त भी इनमें कई कमजोरियाँ एवं कमियाँ हैं जिससे प्राप्त भृगुसंहितायें निरर्थक ग्रन्थ बनकर रह गयीं है। भृगुसंहिताओं की इस कमी को देखते हुए मैंने इस ग्रन्थ को लिखने का संकल्प किया था। अन्तत: सोलह वर्षों तक प्राचीन पाण्डुलिपियोंज्योतिषाचार्यों की सलाह एवं अपने सहयोगी ज्योतिषविदों के कठिन परिश्रम के बाद यह ग्रन्थ तैयार हो पाया है । इस ग्रन्थ की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह हर ओर से सम्पूर्ण सरल एवं व्यवहारिक है। इसमें कुंडलीशुद्धि लग्नशुद्धि आदि से लेकर ग्रहों भावों एवं राशियों के सभी प्रकार के सम्बन्धों के प्रभाव को निकालने की तकनीकी बतायी गयी है। फल कथन करनेवाला यदि ज्योतिषी नहीं भी है तो वह किसी का फल सम्पूर्ण रूप से केवल इस पुस्तक की सहायता से प्राप्त कर सकता है। महादशा और अन्तर दशा सहित समस्त प्रकार के विाशिष्ट योग मुहुर्त, विवाह आदि का विस्तृत विचार एवं सभी ग्रहों की शान्ति के सभी प्रकार के (पूजा-अनुष्ठान टोटके-ताबीज तंत्रिक अनुष्ठान एवं रत्न) उपायों का भी विस्तृत विवरण दिया गया है।
भृगु संहिता का यह संस्करण एक अद्भुत, सम्पूर्ण एवं विलक्षण संस्करण है । ग्रंथ के महत्व एवं उपयोगिता का ज्ञान तो इसका सम्पूर्ण रूपेण अध्ययन करने पर ही ज्ञात हो सकता है तथापि हमारा विश्वास है कि भृगुसंहिता का कोई भी संस्करण इस ग्रंथ की उपयोगिता को प्राप्त नहीं कर सकता । आपके सुझावों का सदा स्वागत रहेगा ।
इस पुस्तक को उपयोगी स्वरूप देने में बिहार (मिथिला) के प्रसिद्ध ज्थोतिषविद् श्री विकास कुमार ठाकुर एवं श्री उमेश कुमार मिश्र के साथ-साथ भोजपुर एवं बनारस के ज्योतिषाचार्यों पंडित मुधुसूदन पाण्डे एवं पंडित अरुण बिहारी का अपूर्व परिश्रम एवं सहयोग प्राप्त हुआ है । मैं इनके सहयोग के लिये इनका कृतज्ञ हूँ ।
विषय सामग्री |
||
प्रथम अध्याय: विषय-परिचय |
||
1 |
ज्योतिषशास्त्र क्या है? |
17 |
2 |
तरंगों का महाविज्ञान |
18 |
3 |
ज्योतिष का सृष्टिसिद्धान्त |
18 |
4 |
ज्योतिष के नौ ग्रह का रहस्य |
18 |
5 |
ज्योतिष का गोपनीय रहस्य |
19 |
6 |
कुछ विशेष स्पष्टीकरण |
19 |
7 |
जातक पर जन्म के समय के प्रभाव का कारण |
20 |
8 |
जन्म स्थान के प्रभाव के कारण |
21 |
9 |
सृष्टि के निर्माण का सिद्धान्त |
21 |
10 |
कालगणना |
22 |
11 |
ज्योतिषशास्त्र का अर्थ |
23 |
12 |
ज्योतिष की उत्पत्ति |
24 |
13 |
कर्मफल का दर्शन |
25 |
14 |
ज्योतिषशास्त्र की शाखायें |
25 |
द्वितीय अध्याय:समय गणना के ज्योतिषीय माप |
||
1 |
खगोलमान |
28 |
2 |
तिथि एवं पक्ष |
29 |
3 |
तिथियों के स्वामी |
30 |
4 |
तिथियों के स्वामीदेवता |
31 |
5 |
तिथियों की संज्ञायें |
31 |
6 |
सिद्ध-तिथियां |
31 |
7 |
दग्ध तिथियाँ |
32 |
8 |
शून्यमास तिथियाँ |
32 |
9 |
मृत्यु योग तिथियाँ |
32 |
10 |
पक्षरन्ध्र तिथियां |
33 |
11 |
मास एवं वर्ष |
33 |
12 |
ऋतु अयन तथा सम्वत्सर |
35 |
13 |
बार |
36 |
14 |
नक्षत्र |
37 |
15 |
नक्षत्र और उनके स्वामी देवता |
38 |
16 |
नक्षत्र चरणाक्षर |
40 |
17 |
नक्षत्रों के स्वामीग्रह |
41 |
18 |
नक्षत्रों के प्रकार |
41 |
19 |
मासशून्य नक्षत्र |
42 |
20 |
अशुभ नक्षत्र और उनके फल |
42 |
21 |
मानव शरीर पर नक्षत्रों की स्थिति |
43 |
22 |
नक्षत्रानुसार जातकफल |
44 |
23 |
योग |
47 |
24 |
योगों के स्वामी |
47 |
25 |
करण |
48 |
26 |
राशि |
49 |
27 |
नक्षत्र चरणाक्षर और राशिज्ञान |
50 |
28 |
राशियों के स्वामीग्रह |
51 |
29 |
चर-अचर राशियां |
52 |
30 |
राशियों की प्रकृति एवं उनके प्रभाव |
52 |
31 |
शून्यसंज्ञक राशियाँ |
56 |
32 |
जन्मराशि के प्रभाव |
56 |
33 |
ग्रह |
66 |
34 |
ग्रहों की प्रवृत्ति और प्रभाव |
68 |
35 |
ग्रहों के बल |
69 |
36 |
ग्रहों की तात्कालिक मित्रता-शत्रुता |
71 |
37 |
अयन एवं अयन बल |
71 |
38 |
ग्रहों के मूलत्रिकोण |
71 |
39 |
मूलत्रिकोणस्थ ग्रहों के विशेष फल |
73 |
40 |
ग्रहों का राशिभोग काल |
74 |
41 |
ग्रहों की कक्षायें |
74 |
42 |
ग्रहों का बलाबल क्रम |
75 |
43 |
ग्रहों के बल के प्रकार |
75 |
44 |
ग्रहों के अंश और उनमें उनकी स्थिति |
75 |
45 |
स्वक्षेत्री ग्रह |
75 |
46 |
ग्रहों की उच्चस्थिति |
76 |
47 |
ग्रहों की निम्नस्थिति |
76 |
48 |
ग्रहों की गतियाँ |
77 |
49 |
ग्रहों का मैत्री-विचार |
77 |
50 |
ग्रहों की कक्षायें |
78 |
51 |
ग्रहों का उदयास्त |
78 |
52 |
ग्रहों के देवता |
78 |
53 |
सम्बन्धियों पर ग्रहों का प्रभाव |
79 |
54 |
ग्रहों का शुभाशुभ |
79 |
55 |
ग्रहों का शरीर के विभिन्न अंगों पर प्रभाव |
79 |
56 |
ग्रहों की दृष्टि |
80 |
57 |
ग्रहों की दृष्टि और स्थान-सम्बन्ध |
84 |
58 |
जातक की कुंडली की फलगणना में ग्रहों का प्रभाव |
85 |
59 |
जन्मकुंडली के द्वादशभाव और उनके विषय |
86 |
60 |
जन्मकुंडली में लग्न |
87 |
61 |
जन्मकुंडली में जन्मराशि |
87 |
62 |
जन्मकुंडली के द्वादशभाव और उनके नाम |
88 |
63 |
भावों के प्रभावानुसार विशिष्ट नाम |
89 |
64 |
भावों के अन्य विशिष्ट प्रभावानुसार नाम |
90 |
65 |
भावों के विचारणीय विषय |
90 |
66 |
भावों का शुभाशुभ ज्ञान |
93 |
तृतीय अध्याय (क्रियात्मक) |
||
1 |
फल के लिए क्यों क्रियात्मक ज्ञान आवश्यक है । |
95 |
2 |
जन्मकुण्डली में लग्न स्थापना |
95 |
3 |
जन्मकुण्डली में राशियों की स्थापना |
96 |
4 |
जन्मकुण्डली में ग्रहों की स्थापना |
96 |
5 |
लग्न शुद्धि विचार |
96 |
6 |
त्रिकुण्डली विधि से लग्न शुद्धि |
97 |
7 |
प्राणपदविधि से लग्न शुद्धि |
97 |
8 |
गुलिक विधि से लग्न शुद्धि |
98 |
9 |
ग्रहों का बलाबल निकालना |
99 |
10 |
स्थानबल साधन |
99 |
11 |
युग्मायुग्म बल साधन |
100 |
12 |
द्रेष्कान बल साधन |
101 |
13 |
सप्तवगैंक्य बल साधन |
101 |
14 |
दिग्बल साधन |
102 |
15 |
कालबल साधन |
103 |
16 |
पक्ष बल साधन |
103 |
17 |
त्रयंश बल साधन |
103 |
18 |
चेष्टा बल साधन |
105 |
19 |
मध्यम ग्रह बनाने के नियम |
105 |
20 |
नैसर्गिक बल साधन |
107 |
21 |
अष्टक वर्ग विचार |
108 |
22 |
अष्टक वर्गाक फल |
109 |
23 |
नवग्रह स्पष्ट करने की विधि |
110 |
24 |
नवांश कुण्डली |
111 |
25 |
विषम राशियों में त्रिशांश |
112 |
26 |
कारकांश कुण्डली |
113 |
27 |
दशा विचार |
114 |
28 |
विंशोत्तरी दशा |
114 |
29 |
विंशोत्तरी अंतरदशा |
116 |
30 |
विंशोत्तरी प्रत्यंतर दशा |
117 |
31 |
अष्टोत्तरी दशा विचार |
129 |
32 |
अष्टोत्तरी अंतरदशा |
130 |
33 |
योगिनी दशा विचार |
131 |
34 |
योगिनी अंतर्दशा विचार |
132 |
35 |
ग्रहों के मूल त्रिकोण एवं स्वक्षेत्र बल |
133 |
36 |
अंग विचार |
133 |
37 |
कालपुरुष विचार |
133 |
38 |
कालपुरुष का निर्धारण |
134 |
39 |
अरिष्ट विचार |
135 |
40 |
अरिष्ट नाशक योग |
137 |
41 |
ग्रहों की उच्चबल सारिणी |
139 |
चतुर्थ अध्याय (विशिष्ट फल एवं योग) |
||
1 |
फल विचार के सिद्धान्त |
146 |
2 |
फलगणना से सम्बन्धित विशेष जानकारियाँ |
151 |
3 |
नवग्रहों के विचारणीय विषय |
151 |
4 |
द्वादशभाव के कारक ग्रह |
152 |
5 |
भावों के अधिपति और उनके नाम |
153 |
6 |
द्वादशभावों में नवग्रहों के फल |
153 |
7 |
उच्च राशि स्थित ग्रहों के फल |
157 |
8 |
नीच राशि स्थित ग्रहों के फल |
158 |
9 |
मित्र क्षेत्र के ग्रहों के फल |
158 |
10 |
शत्रुक्षेत्र के ग्रहों के फल |
158 |
11 |
स्वक्षेत्रगत ग्रहों के फल |
158 |
12 |
मूलत्रिकोण में ग्रहों के फल |
159 |
13 |
लग्न में द्वादशराशियों के नवग्रहों के फल |
159 |
14 |
भावानुसार नवग्रहों के दृष्टिफल |
162 |
15 |
द्वादशभाव में भावेश की स्थिति के फल |
168 |
16 |
ग्रहों पर ग्रहों की दृष्टि के प्रभाव |
204 |
17 |
आयुविचार |
232 |
18 |
राजयोग |
240 |
19 |
धनयोग |
244 |
20 |
जीविकायोग |
247 |
21 |
सुखयोग |
248 |
22 |
संतानयोग |
249 |
23 |
बुद्धियोग |
252 |
24 |
व्याधियोग |
253 |
25 |
शत्रुयोग |
254 |
26 |
विवाहयोग |
255 |
27 |
भाग्ययोग |
258 |
28 |
लाभयोग |
261 |
29 |
व्यययोग |
262 |
30 |
वाहनयोग |
262 |
31 |
मकानयोग |
263 |
32 |
नौकरीयोग |
263 |
33 |
विशिष्टयोग |
264 |
34 |
शासकयोग |
274 |
35 |
भातृयोग |
278 |
36 |
माता-पितायोग |
279 |
37 |
स्त्री जातक योग |
279 |
38 |
द्वादशांश कुण्डली के फल |
286 |
39 |
चन्द्रकुण्डली के फल |
287 |
40 |
विंशोत्तरी दशा के फल |
287 |
41 |
वर-वधू विचार |
308 |
42 |
मुहूर्त्त विचार |
316 |
पंचम अध्याय : विभिन्न ग्रहों के फलादेश |
||
(राशि एवं भाव के अनुसार) |
||
1 |
मेष राशि में सूर्य का फल |
323 |
2 |
मेष राशि में चंद्रमा का फल |
237 |
3 |
मेष राशि में मंगल का फल |
331 |
4 |
मेष राशि में बुध का फल |
334 |
5 |
मेष राशि में गुरु (वृहस्पति) का फल |
338 |
6 |
मेष राशि में शुक्र का फल |
342 |
7 |
मेष राशि में शनि का फल |
345 |
8 |
मेष राशि में राहु का फल |
350 |
9 |
मेष राशि में केतु का फल |
353 |
10 |
वृष राशि में सूर्य का फल |
356 |
11 |
वृष राशि में चन्द्रमा का फल |
359 |
12 |
वृष राशि में मंगल का फल |
363 |
13 |
वृष राशि में बुध का फल |
367 |
14 |
वृष राशि में गुरु (बृहस्पति) का फल |
370 |
15 |
वृष राशि में शुक्र का फल |
374 |
16 |
वृष राशि में शनि का फल |
378 |
17 |
वृष राशि में राहु का फल |
382 |
18 |
वृष राशि में केतु का फल |
385 |
19 |
मिथुन राशि में सूर्य का फल |
388 |
20 |
मिथुन राशि में चंद्रमा का फल |
391 |
21 |
मिथुन राशि में मंगल का फल |
395 |
22 |
मिथुन राशि में बुध का फल |
399 |
23 |
मिथुन राशि में गुरु (बृहस्पति) का फल |
402 |
24 |
मिथुन राशि में शुक्र का फल |
407 |
25 |
मिथुन राशि में शनि का फल |
410 |
26 |
मिथुन राशि में राहु का फल |
411 |
27 |
मिथुन राशि में केतु का फल |
415 |
28 |
कर्क राशि में सूर्य का फल |
418 |
29 |
कर्क राशि में चन्द्र का फल |
421 |
30 |
कर्क राशि में मंगल का फल |
424 |
31 |
कर्क राशि में बुध का फल |
427 |
32 |
कर्क राशि में गुरु (बृहस्पति) का फल |
430 |
33 |
कर्क राशि में शुक्र का फल |
433 |
34 |
कर्क राशि में शनि का फल |
437 |
35 |
कर्क राशि में राहु का फल |
440 |
36 |
कर्क राशि में केतु का फल |
443 |
37 |
सिंह राशि में सूर्य का फल |
446 |
38 |
सिंह राशि में चन्द्रमा का फल |
449 |
39 |
सिंह राशि में मंगल का फल |
452 |
40 |
सिंह राशि में बुध का फल |
456 |
41 |
सिंह राशि में गुरु (बृहस्पति) का फल |
459 |
42 |
सिंह राशि में शुक्र का फल |
462 |
43 |
सिंह राशि में शनि का फल |
465 |
44 |
सिंह राशि में राहु का फल |
469 |
45 |
सिंह राशि में केतु का फल |
472 |
46 |
कन्या राशि में सूर्य का फल |
475 |
47 |
कन्या राशि में चन्द्रमा का फल |
478 |
48 |
कन्या राशि में मंगल का फल |
482 |
49 |
कन्या राशि में बुध का फल |
485 |
50 |
कन्या राशि में गुरु (बृहस्पति) का फल |
488 |
51 |
कन्या राशि में शुक्र का फल |
492 |
52 |
कन्या राशि में शनि का फल |
495 |
53 |
कन्या राशि में राहु का फल |
498 |
54 |
कन्या राशि में केतु का फल |
501 |
55 |
तुला राशि में सूर्य का फल |
504 |
56 |
तुला राशि में चन्द्रमा का फल |
507 |
57 |
तुला राशि में मंगल का फल |
510 |
58 |
तुला राशि में बुध का फल |
513 |
59 |
तुला राशि में गुरु (बृहस्पति) का फल |
516 |
60 |
तुला राशि में शुक्र का फल |
519 |
61 |
तुला राशि में शनि का फल |
522 |
62 |
तुला राशि में राहु का फल |
525 |
63 |
तुला राशि में केतु का फल |
528 |
64 |
वृश्चिक राशि में सूर्य का फल |
531 |
65 |
वृश्चिक राशि में चन्द्रमा का फल |
534 |
66 |
वृश्चिक राशि में मंगल का फल |
537 |
67 |
वृश्चिक राशि में बुध का फल |
540 |
68 |
वृश्चिक राशि में गुरु (बृहस्पति) का फल |
543 |
69 |
वृश्चिक राशि में शुक्र का फल |
546 |
70 |
वृश्चिक राशि में शनि का फल |
549 |
71 |
वृश्चिक राशि में राहु का फल |
552 |
72 |
वृश्चिक राशि में केतु का फल |
555 |
73 |
धनु राशि में सूर्य का फल |
558 |
74 |
धनु राशि में चन्द्रमा का फल |
561 |
75 |
धनु राशि में मंगल का फल |
564 |
76 |
धनु राशि में बुध का फल |
567 |
77 |
धनु राशि में गुरु (बृहस्पति) का फल |
570 |
78 |
धनु राशि में शुक्र का फल |
573 |
79 |
धनु राशि में शनि का फल |
576 |
80 |
धनु राशि में राहु का फल |
589 |
81 |
धनु राशि में केतु का फल |
582 |
82 |
मकर राशि में सूर्य का फल |
585 |
83 |
मकर राशि में चन्द्रमा का फल |
588 |
84 |
मकर राशि में मंगल का फल |
591 |
85 |
मकर राशि में बुध का फल |
594 |
86 |
मकर राशि में गुरु (बृहस्पति) का फल |
597 |
87 |
मकर राशि में शुक्र का फल |
600 |
88 |
मकर राशि में शनि का फल |
603 |
89 |
मकर राशि में राहु का फल |
606 |
90 |
मकर राशि में केतु का फल |
609 |
91 |
कुम्भ राशि मे सूर्य का फल |
612 |
92 |
कुम्भ राशि में चन्द्रमा का फल |
615 |
93 |
कुम्भ राशि में मंगल का फल |
618 |
94 |
कम्म राशि में बुध का फल |
621 |
95 |
कुम्भ राशि में गुरु (बृहस्पति) का फल |
624 |
96 |
कम्म राशि में शुक्र का फल |
627 |
97 |
कुम्भ राशि में शनि का फल |
630 |
98 |
कुम्भ राशि में राहु का फल |
633 |
99 |
कुम्भ राशि में केतु का फल |
636 |
100 |
मीन राशि में सूर्य का फल |
639 |
101 |
मीनू राशि में चन्द्रमा का फल |
642 |
102 |
मीन राशि में मंगल का फल |
645 |
103 |
मीन राशि में बुध का फल |
648 |
104 |
मीन राशि में गुरु (बृहस्पति) का फल |
651 |
105 |
मीन राशि में शुक्र का फल |
654 |
106 |
मीन राशि में शनि का फल |
657 |
107 |
मीन राशि में राहु का फल |
660 |
108 |
मीन राशि मे केतु का फल |
663 |
अष्टम अध्याय : ग्रहों की युति क् फल |
||
1 |
दो ग्रहों की युति का फलादेश |
667 |
2 |
तीन ग्रहों की युति का फलादेश |
672 |
3 |
चार ग्रहों की युति का फलादेश |
681 |
4 |
पांच ग्रहों की युति का फलादेश |
690 |
5 |
छ: ग्रहों की युति का फलादेश |
695 |
6 |
मान ग्रहों की युति का फलादेश |
697 |
सप्तम अध्याय : आधुनिक ग्रह एवं उनके फल |
||
1 |
विभिन्न राशिस्थ 'हर्शल' का फल |
698 |
2 |
विभिन्न राशिस्थ 'नेचच्यून' का फल |
701 |
3 |
हर्शल पर दृष्टि-प्रभाव |
704 |
4 |
भाव के प्रभाव (उपर्युक्त युति में) |
705 |
5 |
नेपच्यून पर दृष्टि-प्रभाव |
706 |
6 |
भावानुसार प्रभाव (युति या दृष्टि सम्बन्ध मे) |
707 |
7 |
हर्शल एवं नेपच्यून का आपसी सम्बन्ध |
707 |
अष्टम् अध्याय : उपाय |
||
1 |
सूर्य का प्रथम भाव से द्वादश भाव तक उपाय |
708 |
2 |
चन्द्रमा का प्रथम भाव से द्वादश भाव तक उपाय |
712 |
3 |
मंगल का प्रथम भाव से द्वादश भाव तक उपाय |
715 |
4 |
बुध का प्रथम भाव से द्वादश भाव तक उपाय |
719 |
5 |
गुरु (बृहस्पति) का प्रथम भाव से द्वादश भाव तक उपाय |
723 |
6 |
शुक्र का प्रथम भाव से द्वादश भाव तक उपाय |
726 |
7 |
शनि का प्रथम भाव से द्वादश भाव तक उपाय |
731 |
8 |
राहु का प्रथम भाव से द्वादश भाव तक उपाय |
734 |
9 |
केतु का प्रथम भाव से द्वादश भाव तक उपाय |
737 |
10 |
दो ग्रहों की युति का उपाय |
740 |
11 |
कुछ विशिष्ट युतियों के उपाय |
742 |
12 |
नवग्रह शान्ति: सात्विक अनुष्ठान |
744 |
13 |
नवग्रह शान्ति अनुष्ठान |
745 |
14 |
सूर्य ग्रह शांति अनुष्ठान |
746 |
15 |
चन्द्रग्रह शांति अनुष्ठान |
747 |
16 |
मंगल ग्रह शांति अनुष्ठान |
749 |
17 |
बुध ग्रह शांति अनुष्ठान |
751 |
18 |
वृहस्पति ग्रह शांति अनुष्ठान |
752 |
19 |
शुक्र ग्रह शांति अनुष्ठान |
754 |
20 |
शनि ग्रह शांति अनुष्ठान |
755 |
21 |
राहु ग्रह शांति अनुष्ठान |
757 |
22 |
केतु ग्रह शांति अनुष्ठान |
759 |
23 |
कुछ विशेष शक्तिशाली स्रोत |
760 |
24 |
ग्रह शांति के तांत्रिक उपाय |
764 |
नवम अध्याय : रत्न और ज्योतिषफल |
||
1 |
रत्न और ज्योतिष सम्बन्ध |
715 |
2 |
रत्नों की पहचान एवं मात्रा |
715 |
3 |
लग्न राशि के अनुसार रत्न |
717 |
4 |
जन्म तिथि के अनुसार रत्न |
809 |
5 |
नव रत्न अँगूठी एवं माला |
810 |
6 |
अन्य कम मूल्यों के रत्नों के प्रभाव |
810 |
7 |
रत्नों की विशिष्ट श्रेणियाँ एवं देवी-देवता |
814 |
लेखकीय
भृगुसंहिता भारतीय ज्योतिषविद्या का एक विश्व-प्रसिद्ध ग्रन्थ है। यह वह ग्रन्थ है जिसमें इस विश्व के प्रत्येक मनुष्य के भाग्य का लेखा-जोखा है। अपने आप में यह बात अविश्वसनीय लगती है पर यह सत्य है। भृगुसंहिता में प्रत्येक व्यक्ति के भाग्य को दर्पण की तरह देखा जा सकता है।
भृगुसंहिता एक विस्तृत ग्रन्थ है। आकार को लेकर नहीं बल्कि इस कारण कि इसमें भारतीय ज्योतिष के प्रत्येक पक्ष का सूक्ष्म विवरण दिया गया है । वस्तुत: यह एक तकनीकी है जिसका आविष्कार भृगु ऋषि ने किया था। इस तकनीकी के आधार पर लिखे गये प्रत्येक ग्रन्थ को भृगुसंहिता ही कहा जाता है। यह ज्योतिषविद्या की अमूल्य तकनीकी है जिसमें सारिणीबद्ध करके सभी प्रकार की कुंडलियों के फल जानने के तरीके का वर्णन है।
परन्तु आज जितनी भी भृगुसंहिता बाजार में उपलब्ध है, वे अधूरी हैं। इसमें अलग-अलग ग्रहों का फल बताया गया है और आशा की गयी है कि इनके सहारे सम्पूर्ण कुंडली का फल ज्ञात कर लिया जायेगा परन्तु कुंडली का फल अलग-अलग ग्रहों की स्थिति के फलों का संयुक्त रूप से प्रभावी समीकरण होता है। ग्रहों का प्रभाव एक दूसरे पर पड़ता है, भावों एवं राशियों का भी फल में हस्तक्षेप होता है। इन प्रचलित भृगुसंहिताओं में वह तकनीकी नहीं बतायी गयी है, जिसके द्वारा इनका सम्मलित सटीक फलादेश ज्ञात किया जा सके। इसके अतिरिक्त भी इनमें कई कमजोरियाँ एवं कमियाँ हैं जिससे प्राप्त भृगुसंहितायें निरर्थक ग्रन्थ बनकर रह गयीं है। भृगुसंहिताओं की इस कमी को देखते हुए मैंने इस ग्रन्थ को लिखने का संकल्प किया था। अन्तत: सोलह वर्षों तक प्राचीन पाण्डुलिपियोंज्योतिषाचार्यों की सलाह एवं अपने सहयोगी ज्योतिषविदों के कठिन परिश्रम के बाद यह ग्रन्थ तैयार हो पाया है । इस ग्रन्थ की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह हर ओर से सम्पूर्ण सरल एवं व्यवहारिक है। इसमें कुंडलीशुद्धि लग्नशुद्धि आदि से लेकर ग्रहों भावों एवं राशियों के सभी प्रकार के सम्बन्धों के प्रभाव को निकालने की तकनीकी बतायी गयी है। फल कथन करनेवाला यदि ज्योतिषी नहीं भी है तो वह किसी का फल सम्पूर्ण रूप से केवल इस पुस्तक की सहायता से प्राप्त कर सकता है। महादशा और अन्तर दशा सहित समस्त प्रकार के विाशिष्ट योग मुहुर्त, विवाह आदि का विस्तृत विचार एवं सभी ग्रहों की शान्ति के सभी प्रकार के (पूजा-अनुष्ठान टोटके-ताबीज तंत्रिक अनुष्ठान एवं रत्न) उपायों का भी विस्तृत विवरण दिया गया है।
भृगु संहिता का यह संस्करण एक अद्भुत, सम्पूर्ण एवं विलक्षण संस्करण है । ग्रंथ के महत्व एवं उपयोगिता का ज्ञान तो इसका सम्पूर्ण रूपेण अध्ययन करने पर ही ज्ञात हो सकता है तथापि हमारा विश्वास है कि भृगुसंहिता का कोई भी संस्करण इस ग्रंथ की उपयोगिता को प्राप्त नहीं कर सकता । आपके सुझावों का सदा स्वागत रहेगा ।
इस पुस्तक को उपयोगी स्वरूप देने में बिहार (मिथिला) के प्रसिद्ध ज्थोतिषविद् श्री विकास कुमार ठाकुर एवं श्री उमेश कुमार मिश्र के साथ-साथ भोजपुर एवं बनारस के ज्योतिषाचार्यों पंडित मुधुसूदन पाण्डे एवं पंडित अरुण बिहारी का अपूर्व परिश्रम एवं सहयोग प्राप्त हुआ है । मैं इनके सहयोग के लिये इनका कृतज्ञ हूँ ।
विषय सामग्री |
||
प्रथम अध्याय: विषय-परिचय |
||
1 |
ज्योतिषशास्त्र क्या है? |
17 |
2 |
तरंगों का महाविज्ञान |
18 |
3 |
ज्योतिष का सृष्टिसिद्धान्त |
18 |
4 |
ज्योतिष के नौ ग्रह का रहस्य |
18 |
5 |
ज्योतिष का गोपनीय रहस्य |
19 |
6 |
कुछ विशेष स्पष्टीकरण |
19 |
7 |
जातक पर जन्म के समय के प्रभाव का कारण |
20 |
8 |
जन्म स्थान के प्रभाव के कारण |
21 |
9 |
सृष्टि के निर्माण का सिद्धान्त |
21 |
10 |
कालगणना |
22 |
11 |
ज्योतिषशास्त्र का अर्थ |
23 |
12 |
ज्योतिष की उत्पत्ति |
24 |
13 |
कर्मफल का दर्शन |
25 |
14 |
ज्योतिषशास्त्र की शाखायें |
25 |
द्वितीय अध्याय:समय गणना के ज्योतिषीय माप |
||
1 |
खगोलमान |
28 |
2 |
तिथि एवं पक्ष |
29 |
3 |
तिथियों के स्वामी |
30 |
4 |
तिथियों के स्वामीदेवता |
31 |
5 |
तिथियों की संज्ञायें |
31 |
6 |
सिद्ध-तिथियां |
31 |
7 |
दग्ध तिथियाँ |
32 |
8 |
शून्यमास तिथियाँ |
32 |
9 |
मृत्यु योग तिथियाँ |
32 |
10 |
पक्षरन्ध्र तिथियां |
33 |
11 |
मास एवं वर्ष |
33 |
12 |
ऋतु अयन तथा सम्वत्सर |
35 |
13 |
बार |
36 |
14 |
नक्षत्र |
37 |
15 |
नक्षत्र और उनके स्वामी देवता |
38 |
16 |
नक्षत्र चरणाक्षर |
40 |
17 |
नक्षत्रों के स्वामीग्रह |
41 |
18 |
नक्षत्रों के प्रकार |
41 |
19 |
मासशून्य नक्षत्र |
42 |
20 |
अशुभ नक्षत्र और उनके फल |
42 |
21 |
मानव शरीर पर नक्षत्रों की स्थिति |
43 |
22 |
नक्षत्रानुसार जातकफल |
44 |
23 |
योग |
47 |
24 |
योगों के स्वामी |
47 |
25 |
करण |
48 |
26 |
राशि |
49 |
27 |
नक्षत्र चरणाक्षर और राशिज्ञान |
50 |
28 |
राशियों के स्वामीग्रह |
51 |
29 |
चर-अचर राशियां |
52 |
30 |
राशियों की प्रकृति एवं उनके प्रभाव |
52 |
31 |
शून्यसंज्ञक राशियाँ |
56 |
32 |
जन्मराशि के प्रभाव |
56 |
33 |
ग्रह |
66 |
34 |
ग्रहों की प्रवृत्ति और प्रभाव |
68 |
35 |
ग्रहों के बल |
69 |
36 |
ग्रहों की तात्कालिक मित्रता-शत्रुता |
71 |
37 |
अयन एवं अयन बल |
71 |
38 |
ग्रहों के मूलत्रिकोण |
71 |
39 |
मूलत्रिकोणस्थ ग्रहों के विशेष फल |
73 |
40 |
ग्रहों का राशिभोग काल |
74 |
41 |
ग्रहों की कक्षायें |
74 |
42 |
ग्रहों का बलाबल क्रम |
75 |
43 |
ग्रहों के बल के प्रकार |
75 |
44 |
ग्रहों के अंश और उनमें उनकी स्थिति |
75 |
45 |
स्वक्षेत्री ग्रह |
75 |
46 |
ग्रहों की उच्चस्थिति |
76 |
47 |
ग्रहों की निम्नस्थिति |
76 |
48 |
ग्रहों की गतियाँ |
77 |
49 |
ग्रहों का मैत्री-विचार |
77 |
50 |
ग्रहों की कक्षायें |
78 |
51 |
ग्रहों का उदयास्त |
78 |
52 |
ग्रहों के देवता |
78 |
53 |
सम्बन्धियों पर ग्रहों का प्रभाव |
79 |
54 |
ग्रहों का शुभाशुभ |
79 |
55 |
ग्रहों का शरीर के विभिन्न अंगों पर प्रभाव |
79 |
56 |
ग्रहों की दृष्टि |
80 |
57 |
ग्रहों की दृष्टि और स्थान-सम्बन्ध |
84 |
58 |
जातक की कुंडली की फलगणना में ग्रहों का प्रभाव |
85 |
59 |
जन्मकुंडली के द्वादशभाव और उनके विषय |
86 |
60 |
जन्मकुंडली में लग्न |
87 |
61 |
जन्मकुंडली में जन्मराशि |
87 |
62 |
जन्मकुंडली के द्वादशभाव और उनके नाम |
88 |
63 |
भावों के प्रभावानुसार विशिष्ट नाम |
89 |
64 |
भावों के अन्य विशिष्ट प्रभावानुसार नाम |
90 |
65 |
भावों के विचारणीय विषय |
90 |
66 |
भावों का शुभाशुभ ज्ञान |
93 |
तृतीय अध्याय (क्रियात्मक) |
||
1 |
फल के लिए क्यों क्रियात्मक ज्ञान आवश्यक है । |
95 |
2 |
जन्मकुण्डली में लग्न स्थापना |
95 |
3 |
जन्मकुण्डली में राशियों की स्थापना |
96 |
4 |
जन्मकुण्डली में ग्रहों की स्थापना |
96 |
5 |
लग्न शुद्धि विचार |
96 |
6 |
त्रिकुण्डली विधि से लग्न शुद्धि |
97 |
7 |
प्राणपदविधि से लग्न शुद्धि |
97 |
8 |
गुलिक विधि से लग्न शुद्धि |
98 |
9 |
ग्रहों का बलाबल निकालना |
99 |
10 |
स्थानबल साधन |
99 |
11 |
युग्मायुग्म बल साधन |
100 |
12 |
द्रेष्कान बल साधन |
101 |
13 |
सप्तवगैंक्य बल साधन |
101 |
14 |
दिग्बल साधन |
102 |
15 |
कालबल साधन |
103 |
16 |
पक्ष बल साधन |
103 |
17 |
त्रयंश बल साधन |
103 |
18 |
चेष्टा बल साधन |
105 |
19 |
मध्यम ग्रह बनाने के नियम |
105 |
20 |
नैसर्गिक बल साधन |
107 |
21 |
अष्टक वर्ग विचार |
108 |
22 |
अष्टक वर्गाक फल |
109 |
23 |
नवग्रह स्पष्ट करने की विधि |
110 |
24 |
नवांश कुण्डली |
111 |
25 |
विषम राशियों में त्रिशांश |
112 |
26 |
कारकांश कुण्डली |
113 |
27 |
दशा विचार |
114 |
28 |
विंशोत्तरी दशा |
114 |
29 |
विंशोत्तरी अंतरदशा |
116 |
30 |
विंशोत्तरी प्रत्यंतर दशा |
117 |
31 |
अष्टोत्तरी दशा विचार |
129 |
32 |
अष्टोत्तरी अंतरदशा |
130 |
33 |
योगिनी दशा विचार |
131 |
34 |
योगिनी अंतर्दशा विचार |
132 |
35 |
ग्रहों के मूल त्रिकोण एवं स्वक्षेत्र बल |
133 |
36 |
अंग विचार |
133 |
37 |
कालपुरुष विचार |
133 |
38 |
कालपुरुष का निर्धारण |
134 |
39 |
अरिष्ट विचार |
135 |
40 |
अरिष्ट नाशक योग |
137 |
41 |
ग्रहों की उच्चबल सारिणी |
139 |
चतुर्थ अध्याय (विशिष्ट फल एवं योग) |
||
1 |
फल विचार के सिद्धान्त |
146 |
2 |
फलगणना से सम्बन्धित विशेष जानकारियाँ |
151 |
3 |
नवग्रहों के विचारणीय विषय |
151 |
4 |
द्वादशभाव के कारक ग्रह |
152 |
5 |
भावों के अधिपति और उनके नाम |
153 |
6 |
द्वादशभावों में नवग्रहों के फल |
153 |
7 |
उच्च राशि स्थित ग्रहों के फल |
157 |
8 |
नीच राशि स्थित ग्रहों के फल |
158 |
9 |
मित्र क्षेत्र के ग्रहों के फल |
158 |
10 |
शत्रुक्षेत्र के ग्रहों के फल |
158 |
11 |
स्वक्षेत्रगत ग्रहों के फल |
158 |
12 |
मूलत्रिकोण में ग्रहों के फल |
159 |
13 |
लग्न में द्वादशराशियों के नवग्रहों के फल |
159 |
14 |
भावानुसार नवग्रहों के दृष्टिफल |
162 |
15 |
द्वादशभाव में भावेश की स्थिति के फल |
168 |
16 |
ग्रहों पर ग्रहों की दृष्टि के प्रभाव |
204 |
17 |
आयुविचार |
232 |
18 |
राजयोग |
240 |
19 |
धनयोग |
244 |
20 |
जीविकायोग |
247 |
21 |
सुखयोग |
248 |
22 |
संतानयोग |
249 |
23 |
बुद्धियोग |
252 |
24 |
व्याधियोग |
253 |
25 |
शत्रुयोग |
254 |
26 |
विवाहयोग |
255 |
27 |
भाग्ययोग |
258 |
28 |
लाभयोग |
261 |
29 |
व्यययोग |
262 |
30 |
वाहनयोग |
262 |
31 |
मकानयोग |
263 |
32 |
नौकरीयोग |
263 |
33 |
विशिष्टयोग |
264 |
34 |
शासकयोग |
274 |
35 |
भातृयोग |
278 |
36 |
माता-पितायोग |
279 |
37 |
स्त्री जातक योग |
279 |
38 |
द्वादशांश कुण्डली के फल |
286 |
39 |
चन्द्रकुण्डली के फल |
287 |
40 |
विंशोत्तरी दशा के फल |
287 |
41 |
वर-वधू विचार |
308 |
42 |
मुहूर्त्त विचार |
316 |
पंचम अध्याय : विभिन्न ग्रहों के फलादेश |
||
(राशि एवं भाव के अनुसार) |
||
1 |
मेष राशि में सूर्य का फल |
323 |
2 |
मेष राशि में चंद्रमा का फल |
237 |
3 |
मेष राशि में मंगल का फल |
331 |
4 |
मेष राशि में बुध का फल |
334 |
5 |
मेष राशि में गुरु (वृहस्पति) का फल |
338 |
6 |
मेष राशि में शुक्र का फल |
342 |
7 |
मेष राशि में शनि का फल |
345 |
8 |
मेष राशि में राहु का फल |
350 |
9 |
मेष राशि में केतु का फल |
353 |
10 |
वृष राशि में सूर्य का फल |
356 |
11 |
वृष राशि में चन्द्रमा का फल |
359 |
12 |
वृष राशि में मंगल का फल |
363 |
13 |
वृष राशि में बुध का फल |
367 |
14 |
वृष राशि में गुरु (बृहस्पति) का फल |
370 |
15 |
वृष राशि में शुक्र का फल |
374 |
16 |
वृष राशि में शनि का फल |
378 |
17 |
वृष राशि में राहु का फल |
382 |
18 |
वृष राशि में केतु का फल |
385 |
19 |
मिथुन राशि में सूर्य का फल |
388 |
20 |
मिथुन राशि में चंद्रमा का फल |
391 |
21 |
मिथुन राशि में मंगल का फल |
395 |
22 |
मिथुन राशि में बुध का फल |
399 |
23 |
मिथुन राशि में गुरु (बृहस्पति) का फल |
402 |
24 |
मिथुन राशि में शुक्र का फल |
407 |
25 |
मिथुन राशि में शनि का फल |
410 |
26 |
मिथुन राशि में राहु का फल |
411 |
27 |
मिथुन राशि में केतु का फल |
415 |
28 |
कर्क राशि में सूर्य का फल |
418 |
29 |
कर्क राशि में चन्द्र का फल |
421 |
30 |
कर्क राशि में मंगल का फल |
424 |
31 |
कर्क राशि में बुध का फल |
427 |
32 |
कर्क राशि में गुरु (बृहस्पति) का फल |
430 |
33 |
कर्क राशि में शुक्र का फल |
433 |
34 |
कर्क राशि में शनि का फल |
437 |
35 |
कर्क राशि में राहु का फल |
440 |
36 |
कर्क राशि में केतु का फल |
443 |
37 |
सिंह राशि में सूर्य का फल |
446 |
38 |
सिंह राशि में चन्द्रमा का फल |
449 |
39 |
सिंह राशि में मंगल का फल |
452 |
40 |
सिंह राशि में बुध का फल |
456 |
41 |
सिंह राशि में गुरु (बृहस्पति) का फल |
459 |
42 |
सिंह राशि में शुक्र का फल |
462 |
43 |
सिंह राशि में शनि का फल |
465 |
44 |
सिंह राशि में राहु का फल |
469 |
45 |
सिंह राशि में केतु का फल |
472 |
46 |
कन्या राशि में सूर्य का फल |
475 |
47 |
कन्या राशि में चन्द्रमा का फल |
478 |
48 |
कन्या राशि में मंगल का फल |
482 |
49 |
कन्या राशि में बुध का फल |
485 |
50 |
कन्या राशि में गुरु (बृहस्पति) का फल |
488 |
51 |
कन्या राशि में शुक्र का फल |
492 |
52 |
कन्या राशि में शनि का फल |
495 |
53 |
कन्या राशि में राहु का फल |
498 |
54 |
कन्या राशि में केतु का फल |
501 |
55 |
तुला राशि में सूर्य का फल |
504 |
56 |
तुला राशि में चन्द्रमा का फल |
507 |
57 |
तुला राशि में मंगल का फल |
510 |
58 |
तुला राशि में बुध का फल |
513 |
59 |
तुला राशि में गुरु (बृहस्पति) का फल |
516 |
60 |
तुला राशि में शुक्र का फल |
519 |
61 |
तुला राशि में शनि का फल |
522 |
62 |
तुला राशि में राहु का फल |
525 |
63 |
तुला राशि में केतु का फल |
528 |
64 |
वृश्चिक राशि में सूर्य का फल |
531 |
65 |
वृश्चिक राशि में चन्द्रमा का फल |
534 |
66 |
वृश्चिक राशि में मंगल का फल |
537 |
67 |
वृश्चिक राशि में बुध का फल |
540 |
68 |
वृश्चिक राशि में गुरु (बृहस्पति) का फल |
543 |
69 |
वृश्चिक राशि में शुक्र का फल |
546 |
70 |
वृश्चिक राशि में शनि का फल |
549 |
71 |
वृश्चिक राशि में राहु का फल |
552 |
72 |
वृश्चिक राशि में केतु का फल |
555 |
73 |
धनु राशि में सूर्य का फल |
558 |
74 |
धनु राशि में चन्द्रमा का फल |
561 |
75 |
धनु राशि में मंगल का फल |
564 |
76 |
धनु राशि में बुध का फल |
567 |
77 |
धनु राशि में गुरु (बृहस्पति) का फल |
570 |
78 |
धनु राशि में शुक्र का फल |
573 |
79 |
धनु राशि में शनि का फल |
576 |
80 |
धनु राशि में राहु का फल |
589 |
81 |
धनु राशि में केतु का फल |
582 |
82 |
मकर राशि में सूर्य का फल |
585 |
83 |
मकर राशि में चन्द्रमा का फल |
588 |
84 |
मकर राशि में मंगल का फल |
591 |
85 |
मकर राशि में बुध का फल |
594 |
86 |
मकर राशि में गुरु (बृहस्पति) का फल |
597 |
87 |
मकर राशि में शुक्र का फल |
600 |
88 |
मकर राशि में शनि का फल |
603 |
89 |
मकर राशि में राहु का फल |
606 |
90 |
मकर राशि में केतु का फल |
609 |
91 |
कुम्भ राशि मे सूर्य का फल |
612 |
92 |
कुम्भ राशि में चन्द्रमा का फल |
615 |
93 |
कुम्भ राशि में मंगल का फल |
618 |
94 |
कम्म राशि में बुध का फल |
621 |
95 |
कुम्भ राशि में गुरु (बृहस्पति) का फल |
624 |
96 |
कम्म राशि में शुक्र का फल |
627 |
97 |
कुम्भ राशि में शनि का फल |
630 |
98 |
कुम्भ राशि में राहु का फल |
633 |
99 |
कुम्भ राशि में केतु का फल |
636 |
100 |
मीन राशि में सूर्य का फल |
639 |
101 |
मीनू राशि में चन्द्रमा का फल |
642 |
102 |
मीन राशि में मंगल का फल |
645 |
103 |
मीन राशि में बुध का फल |
648 |
104 |
मीन राशि में गुरु (बृहस्पति) का फल |
651 |
105 |
मीन राशि में शुक्र का फल |
654 |
106 |
मीन राशि में शनि का फल |
657 |
107 |
मीन राशि में राहु का फल |
660 |
108 |
मीन राशि मे केतु का फल |
663 |
अष्टम अध्याय : ग्रहों की युति क् फल |
||
1 |
दो ग्रहों की युति का फलादेश |
667 |
2 |
तीन ग्रहों की युति का फलादेश |
672 |
3 |
चार ग्रहों की युति का फलादेश |
681 |
4 |
पांच ग्रहों की युति का फलादेश |
690 |
5 |
छ: ग्रहों की युति का फलादेश |
695 |
6 |
मान ग्रहों की युति का फलादेश |
697 |
सप्तम अध्याय : आधुनिक ग्रह एवं उनके फल |
||
1 |
विभिन्न राशिस्थ 'हर्शल' का फल |
698 |
2 |
विभिन्न राशिस्थ 'नेचच्यून' का फल |
701 |
3 |
हर्शल पर दृष्टि-प्रभाव |
704 |
4 |
भाव के प्रभाव (उपर्युक्त युति में) |
705 |
5 |
नेपच्यून पर दृष्टि-प्रभाव |
706 |
6 |
भावानुसार प्रभाव (युति या दृष्टि सम्बन्ध मे) |
707 |
7 |
हर्शल एवं नेपच्यून का आपसी सम्बन्ध |
707 |
अष्टम् अध्याय : उपाय |
||
1 |
सूर्य का प्रथम भाव से द्वादश भाव तक उपाय |
708 |
2 |
चन्द्रमा का प्रथम भाव से द्वादश भाव तक उपाय |
712 |
3 |
मंगल का प्रथम भाव से द्वादश भाव तक उपाय |
715 |
4 |
बुध का प्रथम भाव से द्वादश भाव तक उपाय |
719 |
5 |
गुरु (बृहस्पति) का प्रथम भाव से द्वादश भाव तक उपाय |
723 |
6 |
शुक्र का प्रथम भाव से द्वादश भाव तक उपाय |
726 |
7 |
शनि का प्रथम भाव से द्वादश भाव तक उपाय |
731 |
8 |
राहु का प्रथम भाव से द्वादश भाव तक उपाय |
734 |
9 |
केतु का प्रथम भाव से द्वादश भाव तक उपाय |
737 |
10 |
दो ग्रहों की युति का उपाय |
740 |
11 |
कुछ विशिष्ट युतियों के उपाय |
742 |
12 |
नवग्रह शान्ति: सात्विक अनुष्ठान |
744 |
13 |
नवग्रह शान्ति अनुष्ठान |
745 |
14 |
सूर्य ग्रह शांति अनुष्ठान |
746 |
15 |
चन्द्रग्रह शांति अनुष्ठान |
747 |
16 |
मंगल ग्रह शांति अनुष्ठान |
749 |
17 |
बुध ग्रह शांति अनुष्ठान |
751 |
18 |
वृहस्पति ग्रह शांति अनुष्ठान |
752 |
19 |
शुक्र ग्रह शांति अनुष्ठान |
754 |
20 |
शनि ग्रह शांति अनुष्ठान |
755 |
21 |
राहु ग्रह शांति अनुष्ठान |
757 |
22 |
केतु ग्रह शांति अनुष्ठान |
759 |
23 |
कुछ विशेष शक्तिशाली स्रोत |
760 |
24 |
ग्रह शांति के तांत्रिक उपाय |
764 |
नवम अध्याय : रत्न और ज्योतिषफल |
||
1 |
रत्न और ज्योतिष सम्बन्ध |
715 |
2 |
रत्नों की पहचान एवं मात्रा |
715 |
3 |
लग्न राशि के अनुसार रत्न |
717 |
4 |
जन्म तिथि के अनुसार रत्न |
809 |
5 |
नव रत्न अँगूठी एवं माला |
810 |
6 |
अन्य कम मूल्यों के रत्नों के प्रभाव |
810 |
7 |
रत्नों की विशिष्ट श्रेणियाँ एवं देवी-देवता |
814 |