पुस्तक के विषय में
छउ लोकनृत्य हमारे देश के सांस्कृतिक जीवन का एक अभिन्न अंग है। झारखंड के जनजातीय क्षेत्रों विशेष रूप से पूर्ववर्ती छोटा नागपुर क्षेत्र में सदियों से इस नृत्य की परम्परा चली आ रही है। सराईकेला, पुरूलिया और मयूरभंज के छउनृत्य का इतिहास शताब्दियों पुराना है। लोकजीवन से जुड़े इस नृत्य में कलाकारों की भावभंगिमा, लय-ताल और उमंग देखते ही बनती है। इसमें मार्शलाआर्ट, मुखौटों तथा देश के विभिन्न क्षेत्रों के प्रसिद्ध कलात्मक नृत्यों-ओडिसी, कथकली और भरतनाट्यम की गति मुद्राओं का सुंदर संयोजन देखने को मिलता है। पिछले कुछ दशकों में इस नृत्य की लोकप्रियता ने अंतर्राष्ट्रीय मंच पर अपनी विशिष्ट पहचान बनाई है। प्रस्तुत पुस्तक में छउ नृत्य के पारखी बदरी प्रसाद ने इस लोकनृत्य के इतिहास, संस्कृति और सामाजिक महत्व का विस्तृत विवेचन किया है।
पुस्तक के विषय में
छउ लोकनृत्य हमारे देश के सांस्कृतिक जीवन का एक अभिन्न अंग है। झारखंड के जनजातीय क्षेत्रों विशेष रूप से पूर्ववर्ती छोटा नागपुर क्षेत्र में सदियों से इस नृत्य की परम्परा चली आ रही है। सराईकेला, पुरूलिया और मयूरभंज के छउनृत्य का इतिहास शताब्दियों पुराना है। लोकजीवन से जुड़े इस नृत्य में कलाकारों की भावभंगिमा, लय-ताल और उमंग देखते ही बनती है। इसमें मार्शलाआर्ट, मुखौटों तथा देश के विभिन्न क्षेत्रों के प्रसिद्ध कलात्मक नृत्यों-ओडिसी, कथकली और भरतनाट्यम की गति मुद्राओं का सुंदर संयोजन देखने को मिलता है। पिछले कुछ दशकों में इस नृत्य की लोकप्रियता ने अंतर्राष्ट्रीय मंच पर अपनी विशिष्ट पहचान बनाई है। प्रस्तुत पुस्तक में छउ नृत्य के पारखी बदरी प्रसाद ने इस लोकनृत्य के इतिहास, संस्कृति और सामाजिक महत्व का विस्तृत विवेचन किया है।