भूमिका
''यद्गृहे निवसेत्तन्त्रं तत्र लक्ष्मी: स्थिरायते'' महाशय! तंत्रशास्त्रके पठन पाठन और मनन करनेसे अवश्य ही सिद्धि प्राप्त होती है। जो कार्य सहस्त्रश: व्रत करनेपर भी सिद्ध नहीं होता नहीं कार्य तंत्र शास्त्रकी केवल एक क्रियासे ही सरलता पूर्वक हो सकता है। योगिराज श्रीदत्तात्रेयप्रणीत यह ग्रन्थ यन्त्र--मन्त्राकांक्षियों कौतुकियों और रसाथमिकोंके हितार्थ अद्वितीय है। इसमें-अनेक प्रकारके उपयोगी तथा सिद्धि देनेवाले मन्त्र, मोहन, मारण, उच्चाटन, वशीफरण, स्तम्भनादि अनेक प्रकारके प्रयोग उत्तमतापूर्वक वर्णित है। इसके सिवाय अन्यान्य ग्रन्थोमें जो २ विषय अतिक्लिष्ट है उन सबका इस ग्रन्थमें भलीभांति समावेश हुआ है। मन्त्र-तन्त्रके ज्ञाता जैसा इससे लाभ उठा सकते है उतनाही लाभ इसे सामान्य व्यक्ति भी उठा सकेंगे। यह ग्रन्थ संस्कृतमें होनेसे सर्वसाधारणको इसका लाभ नहीं होता था इस कारण मुरा दाबाद निवासी श्रीयुत पं० श्यामसुन्दरलाल त्रिपाठीजीसे इसकी सरल सुबोध भाषाटीका कराय हमने निज ''श्रीवेंकटेश्वर'' मुद्रणालयमें मुद्रित कर प्रसिद्ध किया है। आशा है कि यन्त्रशास्त्र प्रेमी महाशय इसके अवलोकनसे लाभ उठावेंगे और हमारे परिश्रमको सफल करेंगे।
विषय सूची |
||
1 |
ग्रन्थोपक्रम |
5 |
2 |
मारण |
8 |
3 |
मोहन |
11 |
4 |
सतम्भन |
14 |
5 |
स्थानस्तम्भन,बुद्धिस्तम्भन |
15 |
6 |
शस्त्रस्तम्भन |
16 |
7 |
सेनास्तंभन |
17 |
8 |
सेनापलायन |
18 |
9 |
मनुष्यस्तम्भन |
19 |
10 |
गोमहिष्यादिपशुस्तम्भन |
19 |
11 |
मेघस्तम्भन, निद्रास्तम्भन |
19 |
12 |
नौकास्तम्भन |
19 |
13 |
गर्भस्तम्भन |
20 |
14 |
विद्वेषण |
21 |
15 |
उच्चाटन |
23 |
16 |
सर्वजनवशीकरण |
25 |
17 |
स्त्रीवशीकरण |
29 |
18 |
पुरुषवशीकरण |
31 |
19 |
राजवशीकरण |
32 |
20 |
आकर्षण प्रयोग |
34 |
21 |
इन्द्रजाल |
36 |
22 |
यक्षिणीसाधन |
44 |
23 |
महायक्षिणीसाधन |
45 |
24 |
सुरसुरन्दरीसाधन |
46 |
25 |
मनोहरीसाधन, कनकावतीसाधन |
47 |
26 |
कामेश्वरीसाधन |
48 |
27 |
रतिप्रियासाधन |
48 |
28 |
पद्मिनींनटीअनुरागिणीसा |
49 |
29 |
विशालासाधन |
49 |
30 |
चन्द्रिकासाधन, लक्ष्मीसाधन |
50 |
31 |
सोभनासाधन,मदनासाधन |
51 |
32 |
रसायन |
52 |
33 |
कालज्ञान |
54 |
34 |
अनाहार |
58 |
35 |
आहार |
60 |
36 |
निधिदर्शन |
61 |
37 |
वन्ध्यापुत्रवतीकरण |
62 |
38 |
मृतवत्साजीवन |
66 |
39 |
काकवन्ध्याकी चिकित्सा |
68 |
40 |
जयकी विधि |
69 |
41 |
वाजीकरण |
70 |
42 |
द्रावणादिकथन |
72 |
43 |
वीर्यस्तम्भन प्रयोग |
73 |
44 |
केशरञ्चनप्रयोग |
75 |
45 |
लोमशातन |
76 |
46 |
लिंगवर्द्धन भूतग्रहादिनिवारण |
77 |
47 |
सिंहव्याघ्रादिनिवारण |
79 |
48 |
सर्पभयनिवारण |
79 |
49 |
वृश्चिकभयनिवारण |
80 |
50 |
अग्निभयनिवारण |
80 |
|
।।इत्यनुक्रमणिका समाप्त।। |
भूमिका
''यद्गृहे निवसेत्तन्त्रं तत्र लक्ष्मी: स्थिरायते'' महाशय! तंत्रशास्त्रके पठन पाठन और मनन करनेसे अवश्य ही सिद्धि प्राप्त होती है। जो कार्य सहस्त्रश: व्रत करनेपर भी सिद्ध नहीं होता नहीं कार्य तंत्र शास्त्रकी केवल एक क्रियासे ही सरलता पूर्वक हो सकता है। योगिराज श्रीदत्तात्रेयप्रणीत यह ग्रन्थ यन्त्र--मन्त्राकांक्षियों कौतुकियों और रसाथमिकोंके हितार्थ अद्वितीय है। इसमें-अनेक प्रकारके उपयोगी तथा सिद्धि देनेवाले मन्त्र, मोहन, मारण, उच्चाटन, वशीफरण, स्तम्भनादि अनेक प्रकारके प्रयोग उत्तमतापूर्वक वर्णित है। इसके सिवाय अन्यान्य ग्रन्थोमें जो २ विषय अतिक्लिष्ट है उन सबका इस ग्रन्थमें भलीभांति समावेश हुआ है। मन्त्र-तन्त्रके ज्ञाता जैसा इससे लाभ उठा सकते है उतनाही लाभ इसे सामान्य व्यक्ति भी उठा सकेंगे। यह ग्रन्थ संस्कृतमें होनेसे सर्वसाधारणको इसका लाभ नहीं होता था इस कारण मुरा दाबाद निवासी श्रीयुत पं० श्यामसुन्दरलाल त्रिपाठीजीसे इसकी सरल सुबोध भाषाटीका कराय हमने निज ''श्रीवेंकटेश्वर'' मुद्रणालयमें मुद्रित कर प्रसिद्ध किया है। आशा है कि यन्त्रशास्त्र प्रेमी महाशय इसके अवलोकनसे लाभ उठावेंगे और हमारे परिश्रमको सफल करेंगे।
विषय सूची |
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1 |
ग्रन्थोपक्रम |
5 |
2 |
मारण |
8 |
3 |
मोहन |
11 |
4 |
सतम्भन |
14 |
5 |
स्थानस्तम्भन,बुद्धिस्तम्भन |
15 |
6 |
शस्त्रस्तम्भन |
16 |
7 |
सेनास्तंभन |
17 |
8 |
सेनापलायन |
18 |
9 |
मनुष्यस्तम्भन |
19 |
10 |
गोमहिष्यादिपशुस्तम्भन |
19 |
11 |
मेघस्तम्भन, निद्रास्तम्भन |
19 |
12 |
नौकास्तम्भन |
19 |
13 |
गर्भस्तम्भन |
20 |
14 |
विद्वेषण |
21 |
15 |
उच्चाटन |
23 |
16 |
सर्वजनवशीकरण |
25 |
17 |
स्त्रीवशीकरण |
29 |
18 |
पुरुषवशीकरण |
31 |
19 |
राजवशीकरण |
32 |
20 |
आकर्षण प्रयोग |
34 |
21 |
इन्द्रजाल |
36 |
22 |
यक्षिणीसाधन |
44 |
23 |
महायक्षिणीसाधन |
45 |
24 |
सुरसुरन्दरीसाधन |
46 |
25 |
मनोहरीसाधन, कनकावतीसाधन |
47 |
26 |
कामेश्वरीसाधन |
48 |
27 |
रतिप्रियासाधन |
48 |
28 |
पद्मिनींनटीअनुरागिणीसा |
49 |
29 |
विशालासाधन |
49 |
30 |
चन्द्रिकासाधन, लक्ष्मीसाधन |
50 |
31 |
सोभनासाधन,मदनासाधन |
51 |
32 |
रसायन |
52 |
33 |
कालज्ञान |
54 |
34 |
अनाहार |
58 |
35 |
आहार |
60 |
36 |
निधिदर्शन |
61 |
37 |
वन्ध्यापुत्रवतीकरण |
62 |
38 |
मृतवत्साजीवन |
66 |
39 |
काकवन्ध्याकी चिकित्सा |
68 |
40 |
जयकी विधि |
69 |
41 |
वाजीकरण |
70 |
42 |
द्रावणादिकथन |
72 |
43 |
वीर्यस्तम्भन प्रयोग |
73 |
44 |
केशरञ्चनप्रयोग |
75 |
45 |
लोमशातन |
76 |
46 |
लिंगवर्द्धन भूतग्रहादिनिवारण |
77 |
47 |
सिंहव्याघ्रादिनिवारण |
79 |
48 |
सर्पभयनिवारण |
79 |
49 |
वृश्चिकभयनिवारण |
80 |
50 |
अग्निभयनिवारण |
80 |
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।।इत्यनुक्रमणिका समाप्त।। |