About the Book
'हमज़ाद' कहानी है उस 'कमीनगी' की जो अपने ठोस आत्मविश्वास के बल पर सबसे पहली चोट हमारे उन विभ्रमों पर करती है जो हम अपने 'अबोध आशावाद' के चलते अपने इर्द - गिर्द पाले रखते है | इसे पढ़ते हुए आ अचानक असहाय महसूस करेगे और एक रूहानी शैथिल्य आपको घेर लेगा; आप पाएँगे की आपका समय वास्तव में उससे कही ज्यादा घटिया, क्रूर और लिजलिजा है जितना आप आज तक अफवाहों और अखबारों के माध्यम से जानते आए है| बेशक़ यह कथा उम्मीद का अंत कर देनेवाली है, इसका एक भी चरित्र ऐसा नही जो सीख देता हो, 'सुंदर भविष्य' का कोई सपना बनता हो; सब अपने-अपने नरक में इतने गहरे डूबे हुए है की उन्हें अपने अलावा किसी और इकाई का ख़्याल तक नही आता | लेकिन क्या थोड़ी-सी झूठी इंसानियत के साथ यह हम ही नही है ? 'हमज़ाद' के चरित्र इस थोड़ी-सी इंसानियत से भी परे जा चुके है जिनके भीतर- बाहर को जोशीजी ने अपने सघन पाठ में अदभुद ढंग से रूपायित किया है |
About the Book
'हमज़ाद' कहानी है उस 'कमीनगी' की जो अपने ठोस आत्मविश्वास के बल पर सबसे पहली चोट हमारे उन विभ्रमों पर करती है जो हम अपने 'अबोध आशावाद' के चलते अपने इर्द - गिर्द पाले रखते है | इसे पढ़ते हुए आ अचानक असहाय महसूस करेगे और एक रूहानी शैथिल्य आपको घेर लेगा; आप पाएँगे की आपका समय वास्तव में उससे कही ज्यादा घटिया, क्रूर और लिजलिजा है जितना आप आज तक अफवाहों और अखबारों के माध्यम से जानते आए है| बेशक़ यह कथा उम्मीद का अंत कर देनेवाली है, इसका एक भी चरित्र ऐसा नही जो सीख देता हो, 'सुंदर भविष्य' का कोई सपना बनता हो; सब अपने-अपने नरक में इतने गहरे डूबे हुए है की उन्हें अपने अलावा किसी और इकाई का ख़्याल तक नही आता | लेकिन क्या थोड़ी-सी झूठी इंसानियत के साथ यह हम ही नही है ? 'हमज़ाद' के चरित्र इस थोड़ी-सी इंसानियत से भी परे जा चुके है जिनके भीतर- बाहर को जोशीजी ने अपने सघन पाठ में अदभुद ढंग से रूपायित किया है |