पुस्तक के विषय में
मुगलकाल के दो बादशाहों-बाबर और हुमायूं के देश-काल-परिस्थितियों का एकमात्र प्रामाणिक विवरण प्रस्तुत करता है गुलबदन बेगम कृत 'हुमायूंनामा' । गुलबदन बेगम का पालन-पोषण हुमायूं की मां माहम बेगम ने किया था और तभी गुलबदन का हुमायूं के प्रति विशेष लगाव था। अकबर उनका बहुत आदर करते थे । उनकी मौत पर अकबर ने उनके जनाजे को स्वयं कंधा दिया था। यह किताब 1576 में गुलबदन ने तब लिखी थी, जब अकबर ने आदेश दिया था कि वे सभी लोग जो बाबर और हुमायूं से जुड़े रहे हैं, उनके संस्मरण लिखें ।
यह पुस्तक मूलरूप से फारसी में लिखी गई थी और इसके हिंदी अनुवाद को नागरी प्रचारिणी सभा, काशी ने पहली बार प्रकाशित किया था ।
प्रस्तावना
गुलबदन बेगम का 'हुमायूंनामा' एक महत्त्वपूर्ण कृति है, क्योंकि यह बाबर और हुमायूं के शासनकाल का एकमात्र विवरण है और वह भी मुगल शाही खानदान की एक प्रमुख महिला द्वारा लिखा गया है। गुलबदन बेगम का जन्म सन् 1523 के लगभग काबुल में हुआ था । उनकी मां दिलदार बेगम थीं, लेकिन उनका पालन-पोषण हुमायूं की मां माहम बेगम ने किया । इसलिए गुलबदन बेगम का हुमायूं के प्रति विशेष लगाव रहा, जो इस विवरण में दिखाई देता है। उनका सगा भाई हिंदाल था, जिसका जन्म सन् 1519 में हुआ, उसे भी वह बहुत प्रेम करती थी, जिसकी सन् 1551 में हुई मौत से उन्हें गहरा आघात लगा ।
अकबर उनका बहुत आदर करता था । उनकी मौत पर अकबर ने उनके जनाजे को स्वयं उठाया और कुछ दूर तक उसका साथ दिया । गुलबदन बेगम सन् 1603 तक जिंदा रही, लेकिन कुछ अमीरों के उकसावे में आकर सन् 1553 में हुमायूं द्वारा कामरान को अंधा कराए जाने के कारण उनके विवरण-लेखन में व्यवधान आ गया । संभव है उन्होंने विवरण का लेखन आगे भी जारी रखा हो, लेकिन इस बारे में कुछ भी नहीं कहा जा सकता, क्योंकि हमें उनकी कृति की एक. ही अधूरी पांडुलिपि उपलब्ध है, जो ब्रिटिश म्यूजियम में संरक्षित है । गुलबदन बेगम का यह हुमायूनामा दरअसल सन् 1576 में उस समय लिखा गया जब अकबर ने यह आदेश दिया कि वे सभी लोग जो बाबर और हुमायूं से जुड़े रहे हैं, उनके संस्मरण लिखें । गुलबदन बेगम के ये संस्मरण, हम नहीं जानते कि उन्होंने अपनी याददाश्त से लिखे या अपनी डायरी से या फिर शाही दस्तावेजों की मदद से लिखे । हालांकि, गुलबदन बेगम के विवरणों में तिथियों के उल्लेख का अभाव है, फिर भी ये विवरण केवल बाबर और हुमायूं की बेगमों, उनके बच्चों और परिवार के लोगों के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी ही नहीं देते, बल्कि मध्य एशिया में रह रहे तैमूरी वंश, परिवार के बारे में भी प्रकाश डालते हैं । उनके बीच के आपसी संबंध, उनके हिंदुस्तान आने-जाने की जानकारी और उस काल के शाही वर्ग के संस्कारों तथा आपसी रिश्तेदारियों को समझने में महत्वपूर्ण सहायता देते हें । इसके लिए गुलबदन बेगम ने अनेक बेगमों और रिश्तेदारों को बांटे गए उपहारों और भेंटों का सविस्तार जिक्र किया है । इसमें उन उपहारों का भी जिक्र है जो बाबर ने सुल्तान इब्राहीम लोदी की संरक्षित मशहूर नाचने-गाने वाली लड़कियों-पटारनों को दिए ।
गुलबदन बेगम ने एक जगह यह भी उल्लेख किया है कि बाबर ने पानीपत युद्ध के तत्काल बाद सभी जगह पत्र भेजकर कहा कि 'जो कोई हमारी नौकरी करेगा उस पर हमारी पूरी कृपा होगी, खास कर उन पर जिन्होंने हमारे पिता, दादा और पुरखों की सेवा की हो । यदि वे आवें तो योग्यता के अनुसार पुरस्कार पावेंगे । साहिबे किसन (तैमूर) और चंगेज खां के वंशधर हमारे यहां आवेंगे तो सर्वशक्तिमान (ईश्वर) ने जो हिंदुस्तान हमें दिया है, उस राज्य का हमारे साथ उपभोग करेंगे ।' बाबर का यह कथन उसकी संप्रभु-सत्ता की अवधारणा पर अच्छा प्रकाश डालता है।
गुलबदन बेगम ने हुमायूं के प्रारंभिक यानी शेरशाह द्वारा हिंदुस्तान से निष्कासित किए जाने से पहले के दौर का विशेष रूप से विशद विवरण दिया है, जिसमें उसकी बाबर और जहांगीर की तरह अफीम खाने की आदत के बारे में, ज्योतिष में उसकी अभिरुचि, जिसके लिए उसने तिलिस्मी महल बनवाया, के बारे में सविस्तार लिखा है । उन्होंने शाही जश्नों में बेगमों की हैसियत के अनुसार दाएं-बाएं बैठने के स्थानों के निर्धारण के बारे में भी बतलाया है ।
गुलबदन बेगम ने शेरशाह से पराजित होने के बाद हुमायूं के इधर-उधर भटकने का, और भाइयों के बीच मतभेदों का कुछ विस्तार सहित विवरण दिया है,. जबकि वे उस समय हुमायूं के साथ नहीं थीं, बल्कि उन्हें कामरान और उनके भाई हिंदाल के साथ काबुल के लिए रवाना कर दिया गया था । इसलिए उनके काबुल जाने और वहां रहने के दौरान का विवरण कहीं अधिक विश्वसनीय है । अकबर, जो उस समय बच्चा ही था, उसे बोलन दरें से काबुल भेज दिया गया था । गुलबदन बेगम के विवरण के अनुसार कामरान ने अकबर की भलीभांति देखभाल की थी ।
महिलाओं विषयक अध्ययन के बढ़ते हुए क्षेत्र के लिए 'गुलबदन बेगम का हुमायूंनामा' मुगलों के उच्च समाज में महिलाओं की स्थिति समझने के लिए एक अनुपम कृति है । इसमें बताया गया है कि मुगलों के शाही परिवार में महिलाओं को अत्यंत सम्मान प्राप्त था, इसलिए जब माहम बेगम काबुल से आगरा पहुंचीं तो बाबर स्वयं उनकी अगवानी करने आगरा से बाहर जा कर उनसे मिला और उनके लश्कर के साथ उनके ठहरने के लिए तय किए महल तक पैदल चल कर आया । मुझे पूरा विश्वास है कि फारसी मूल से प्रस्तुत यह हिंदी अनुवाद मध्यकालीन समाज में महिलाओं की स्थिति संबंधी अध्ययन को विशेष रूप से प्रेरणा प्रदान करेगा ।
वक्तव्य
यद्यपि बादशाह हुमायूं फारसी, अरबी और तुर्की भाषाओं के पूरे पंडित थे, ज्योतिष अरि भूगर्भ शास्त्रों में पारंगत थे और फारसी के कवि भी थे, पर फिर भी इन्होंने अपने पिता बाबर बादशाह के समान अपना आत्मचरित्र लिख कर उनका अनुकरण नहीं किया । जिस प्रकार बाबर ने अपने सुख-दुःख, हानि-लाभ और युद्धादि का चित्र अपनी पुस्तक में खींचकर सर्वसाधारण के सामने रख दिया है, उस प्रकार हुमायूं नहीं कर सका । यद्पि पिता-पुत्र के जीवन की घटनाओं में पूरा सादृश्य कालचक्र द्वारा प्रेरित होकर आ गया है, पर प्रथम ने अपनी लेखनी द्वारा अपने इतिहास को प्रकाशित किया है और दूसरे ने अपने इतिहास को अंधकार में छोड़ दिया है । परंतु हुमायूं के सौभाग्य से उस कमी को उसके दो समसामयिकों ने पूर्ण कर दिया । प्रथम इनकी सौतेली बहन गुलबदन बेगम थी और दूसरा इनका सेवक जौहर आफताबची था ।
जौहर ने जो पुस्तक लिखी है वह तजकिर:तुत्-वाकिआत या वाकिआते-हुमायूंनी कहलाती है और उसमें हुमायूं की राजगद्दी से लेकर उसकी मृत्यु तक का वर्णन है । इसने अपने स्वामी की सभी बातों का शुद्ध हृदय से वर्णन किया है और कुछ भी छिपाने की चेष्टा नहीं की है । परंतु जिस प्रकार सभी पुरुष इतिहासकारों ने मितियों, नामों और घटनाओं पर अधिक ध्यान दिया है, उसी प्रकार इसने भी किया है । इस विषय पर स्त्रियां कम लेखनी उठाती हैं, परंतु जब इनका रचित इतिहास देखने में आता है तब उसमें अवश्य यह विचित्रता दिखलाई देती है कि वे स्त्री-संसार की ही घटनाओं का अधिक विवरण देती हैं और पुरुष-संसार की घटनाओं का उल्लेख मात्र कर देती हैं । यही विचित्रता या अधिकता गुलबदन बेगम की पुस्तक हुमायूंनामा में भी है ।
जब इस पुस्तक को पढ़ते हैं तब ऐसा ज्ञात होने लगता है कि सहृदय प्राणियों की किसी गृहस्थी में चले आप हैं । बेगम ने अपने पिता का भी कुछ वृत्तांत लिखा है । बदख्शां की लड़ाइयों का, काबुल पर अधिकार करने का और पानीपत तथा कन्हवा की प्रसिद्ध विजयों का उल्लेख मात्र किया गया है; परंतु विवरण दिया है उन भेंटों का जो बाबर ने दिल्ली की लूट से काबुल भेजी थी और जिस प्रकार वहां खुशी मनाई गई थी । हुमायूं की मांदगी, माता-पिता का शोक, उनका अच्छा होना, बाबर की मांदगी और उनकी मृत्यु पर के शोक का पूरा विवरण दिया है क्योंकि वह स्त्रियों की दृष्टि में युद्धादि से अधिक प्रयोजनीय मालूम पड़ता है ।
जब हुमायूं का जीवनचरित्र आरंभ किया है, तब पहले तिलस्मी और हिंदाल के विवाह की मजलिसों का ही वर्णन दिया है और उनकी तैयारियों का बहुत ही अच्छा वर्णन किया है । पूर्वीय प्रांतों कै जय-पराजय चौसा और कन्नौज के युद्धों और अंत में चगत्ताइयों के लाहौर भागने का उल्लेख भी उन्होंने किया है । जब हुमायूं सिंध की ओर चले तब से फारस पहुंचने तक में जो कुछ दुःख और कठिनाइयां उन्हें भुगतनी पडी थीं. उनका बेगम ने पूरा विवरण दे दिया है । हमीदाबानू बेगम ने हुमायूं बादशाह से विवाह करने में जो कुछ कठिनाइयां दिखाई थीं, उनका पूरा वृत्तांत दिया गया है । पर विवाह का संक्षेप ही में वर्णन दे दिया गया है । फारस में गुलबदन बेगम स्वयं नहीं गई थीं; और वहां का जो कुछ वर्णन इन्होंने दिया है वह सब हमीदा बानू बेगम का ही बताया हुआ है । इन्होंने बादशाहों के मिलने और स्वागत का संक्षेप में और बातचीत का तथा किस प्रकार हुमायूं की मानहानि की गई थी, इसका कुछ भी वर्णन नहीं किया है, पर लालों के चोरी जाने और मिलने का पूरा हाल लिखा है ।
हुमायूं के लौटने के साथ बेगम का इतिहास अब फिर से अफगानिस्तान में आरंभ होता है । संक्षेप ही में दोनों भाइयों के झगड़े का वर्णन करते हुए अंत में मिर्जा कामरां के पकड़े जाने और अंधे किए जाने तक का हाल लिखा गया हे । पर इसके अनंतर के पृष्ठों का ही पता नहीं है जिससे कि कहा जा सके कि यह पुस्तक कहां पर समाप्त हुई है ।
मूल ग्रंथ की जो प्रति अभी तक प्राप्त हुई है, वह विलायत के ब्रिटिश म्यूजियम में सुरक्षित है और उसमें इसके आगे के पृष्ठ नहीं हैं । इस पुस्तक की दूसरी प्रति अभी तक कहीं नहीं मिली है और इससे जान पड़ता है कि इस पुस्तक की अनेक प्रतियां नहीं तैयार कराई गई थीं । हो सकता है कि यह पुस्तक बेगम के हाथ की ही लिखी हुई हो । अबुलफजल के अकबरनामे में यद्यपि इस पुस्तक के काम में लाए जाने का संकेत है । पर उसने कहीं बेगम की पुस्तक का नाम नहीं दिया है ।
कर्नल हैमिल्टन जब भारत से विलायत ''गए तब एक सहस्र पुस्तकें जिनको उन्होंने दिल्ली और लखनऊ में संग्रह किया था साथ लेते गए थे । उनकी विधवा ने 1868 में ब्रिटिश म्मूजियम के हाथ चुनी हुई 352 पुस्तकें बेच दीं जिनमें यह भी थी । डॉक्टर (यू जिन्होंने इन पुस्तकों की सूची बनाई थी इस पुस्तक को सर्वोत्तम पुस्तकों में परिगणित किया है । मिस्टर अर्सकिन और प्रोफेसर ब्लौकमैन ने फारसी पुस्तकों का यद्यपि बहुत मनन किया था, पर उन्हें भी इस पुस्तक का पता नहीं था । अंग्रेजी अनुवादिका के लेखानुसार बेगम का हुमायूंनामा उस समय तक पर्दानशीन ही रहा जब तक डॉक्टर यू ने सूची में उसका नाम नहीं दिया था । उसके अनंतर भी वह उसी हालत में ही पड़ा रहा । मिसेज बेवरिज ने उन्नीसवीं शताब्दी के बिल्कुल अंत में इस पुस्तक को अपने हाथ में लिया और इसके अनुवाद को टिप्पणी और परिशिष्ट आदि से विभूषित करके रायल एशियाटिक सोसाइटी के ओरिएंटल ट्रांसलेशन फंड की नई माला में छपवाया ।
गुलबदन बेगम ने यह इतिहास लिख कर सबसे अधिक आवश्यक कार्य यह पूरा किया है कि अपने वंश के और कई दूसरे सामयिक घरों के संबंधों का परिचय करा दिया है । अंग्रेजी अनुवादिका को इन संबंधों के नाम देने में बड़ी कठिनाई पड़ी है; क्योंकि यूरोप में एक शब्द जितने संबंधों के लिए काम में लाया जाता है, प्राय: उतने के लिए एशिया में लगभग आधे दर्जन पृथक्-पृथक् शब्द व्यवहार में लाए जाते हैं । बेगम ने तारीखों और घटनाओं में कहीं-कहीं अशुद्धि की है । इनका उल्लेख संदर्भ-सूची में कर दिया गया है ।
यह हिंदी अनुवाद अंग्रेजी अनुवाद से बिल्कुल स्वतंत्र है और मूल फारसी से अनूदित है; इसलिए यदि कहीं कुछ विभिन्नता है तो वह मूल के ही कारण हुई है । बहुत से नोट जो आवश्यक नहीं जान पड़े, छोड़ दिए गए हैं और बहुत से नए नोट भी बढ़ाए गए हैं । अंग्रेजी अनुवाद में एक बड़ा परिशिष्ट दिया गया है जिसमें बेगमों आदि के छोटे-छोटे जीवन-चरित्र दिए गए हैं । परंतु मैंने पाठकों के सुभीते के लिए हिंदी अनुवाद में जहां बेगमों के नाम आए हैं, उन्हें संदर्भ-सूची में उनका जीवन-चरित्र दे दिया है । ये जीवन-चरित्र मुख्यतया अंग्रेजी अनुवादिका के ही श्रम के फल हैं ।
विषय-सूची |
||
1 |
प्रस्तावना |
सात |
2 |
वक्तव्य |
ग्यारह |
3 |
गुलबदन बेगम का जीवनचरित्र |
पंद्रह |
4 |
हुमायूंनामा |
1 |
5 |
सदंर्भ-सूची |
71 |
6 |
अनुक्रमणिका |
105 |
पुस्तक के विषय में
मुगलकाल के दो बादशाहों-बाबर और हुमायूं के देश-काल-परिस्थितियों का एकमात्र प्रामाणिक विवरण प्रस्तुत करता है गुलबदन बेगम कृत 'हुमायूंनामा' । गुलबदन बेगम का पालन-पोषण हुमायूं की मां माहम बेगम ने किया था और तभी गुलबदन का हुमायूं के प्रति विशेष लगाव था। अकबर उनका बहुत आदर करते थे । उनकी मौत पर अकबर ने उनके जनाजे को स्वयं कंधा दिया था। यह किताब 1576 में गुलबदन ने तब लिखी थी, जब अकबर ने आदेश दिया था कि वे सभी लोग जो बाबर और हुमायूं से जुड़े रहे हैं, उनके संस्मरण लिखें ।
यह पुस्तक मूलरूप से फारसी में लिखी गई थी और इसके हिंदी अनुवाद को नागरी प्रचारिणी सभा, काशी ने पहली बार प्रकाशित किया था ।
प्रस्तावना
गुलबदन बेगम का 'हुमायूंनामा' एक महत्त्वपूर्ण कृति है, क्योंकि यह बाबर और हुमायूं के शासनकाल का एकमात्र विवरण है और वह भी मुगल शाही खानदान की एक प्रमुख महिला द्वारा लिखा गया है। गुलबदन बेगम का जन्म सन् 1523 के लगभग काबुल में हुआ था । उनकी मां दिलदार बेगम थीं, लेकिन उनका पालन-पोषण हुमायूं की मां माहम बेगम ने किया । इसलिए गुलबदन बेगम का हुमायूं के प्रति विशेष लगाव रहा, जो इस विवरण में दिखाई देता है। उनका सगा भाई हिंदाल था, जिसका जन्म सन् 1519 में हुआ, उसे भी वह बहुत प्रेम करती थी, जिसकी सन् 1551 में हुई मौत से उन्हें गहरा आघात लगा ।
अकबर उनका बहुत आदर करता था । उनकी मौत पर अकबर ने उनके जनाजे को स्वयं उठाया और कुछ दूर तक उसका साथ दिया । गुलबदन बेगम सन् 1603 तक जिंदा रही, लेकिन कुछ अमीरों के उकसावे में आकर सन् 1553 में हुमायूं द्वारा कामरान को अंधा कराए जाने के कारण उनके विवरण-लेखन में व्यवधान आ गया । संभव है उन्होंने विवरण का लेखन आगे भी जारी रखा हो, लेकिन इस बारे में कुछ भी नहीं कहा जा सकता, क्योंकि हमें उनकी कृति की एक. ही अधूरी पांडुलिपि उपलब्ध है, जो ब्रिटिश म्यूजियम में संरक्षित है । गुलबदन बेगम का यह हुमायूनामा दरअसल सन् 1576 में उस समय लिखा गया जब अकबर ने यह आदेश दिया कि वे सभी लोग जो बाबर और हुमायूं से जुड़े रहे हैं, उनके संस्मरण लिखें । गुलबदन बेगम के ये संस्मरण, हम नहीं जानते कि उन्होंने अपनी याददाश्त से लिखे या अपनी डायरी से या फिर शाही दस्तावेजों की मदद से लिखे । हालांकि, गुलबदन बेगम के विवरणों में तिथियों के उल्लेख का अभाव है, फिर भी ये विवरण केवल बाबर और हुमायूं की बेगमों, उनके बच्चों और परिवार के लोगों के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी ही नहीं देते, बल्कि मध्य एशिया में रह रहे तैमूरी वंश, परिवार के बारे में भी प्रकाश डालते हैं । उनके बीच के आपसी संबंध, उनके हिंदुस्तान आने-जाने की जानकारी और उस काल के शाही वर्ग के संस्कारों तथा आपसी रिश्तेदारियों को समझने में महत्वपूर्ण सहायता देते हें । इसके लिए गुलबदन बेगम ने अनेक बेगमों और रिश्तेदारों को बांटे गए उपहारों और भेंटों का सविस्तार जिक्र किया है । इसमें उन उपहारों का भी जिक्र है जो बाबर ने सुल्तान इब्राहीम लोदी की संरक्षित मशहूर नाचने-गाने वाली लड़कियों-पटारनों को दिए ।
गुलबदन बेगम ने एक जगह यह भी उल्लेख किया है कि बाबर ने पानीपत युद्ध के तत्काल बाद सभी जगह पत्र भेजकर कहा कि 'जो कोई हमारी नौकरी करेगा उस पर हमारी पूरी कृपा होगी, खास कर उन पर जिन्होंने हमारे पिता, दादा और पुरखों की सेवा की हो । यदि वे आवें तो योग्यता के अनुसार पुरस्कार पावेंगे । साहिबे किसन (तैमूर) और चंगेज खां के वंशधर हमारे यहां आवेंगे तो सर्वशक्तिमान (ईश्वर) ने जो हिंदुस्तान हमें दिया है, उस राज्य का हमारे साथ उपभोग करेंगे ।' बाबर का यह कथन उसकी संप्रभु-सत्ता की अवधारणा पर अच्छा प्रकाश डालता है।
गुलबदन बेगम ने हुमायूं के प्रारंभिक यानी शेरशाह द्वारा हिंदुस्तान से निष्कासित किए जाने से पहले के दौर का विशेष रूप से विशद विवरण दिया है, जिसमें उसकी बाबर और जहांगीर की तरह अफीम खाने की आदत के बारे में, ज्योतिष में उसकी अभिरुचि, जिसके लिए उसने तिलिस्मी महल बनवाया, के बारे में सविस्तार लिखा है । उन्होंने शाही जश्नों में बेगमों की हैसियत के अनुसार दाएं-बाएं बैठने के स्थानों के निर्धारण के बारे में भी बतलाया है ।
गुलबदन बेगम ने शेरशाह से पराजित होने के बाद हुमायूं के इधर-उधर भटकने का, और भाइयों के बीच मतभेदों का कुछ विस्तार सहित विवरण दिया है,. जबकि वे उस समय हुमायूं के साथ नहीं थीं, बल्कि उन्हें कामरान और उनके भाई हिंदाल के साथ काबुल के लिए रवाना कर दिया गया था । इसलिए उनके काबुल जाने और वहां रहने के दौरान का विवरण कहीं अधिक विश्वसनीय है । अकबर, जो उस समय बच्चा ही था, उसे बोलन दरें से काबुल भेज दिया गया था । गुलबदन बेगम के विवरण के अनुसार कामरान ने अकबर की भलीभांति देखभाल की थी ।
महिलाओं विषयक अध्ययन के बढ़ते हुए क्षेत्र के लिए 'गुलबदन बेगम का हुमायूंनामा' मुगलों के उच्च समाज में महिलाओं की स्थिति समझने के लिए एक अनुपम कृति है । इसमें बताया गया है कि मुगलों के शाही परिवार में महिलाओं को अत्यंत सम्मान प्राप्त था, इसलिए जब माहम बेगम काबुल से आगरा पहुंचीं तो बाबर स्वयं उनकी अगवानी करने आगरा से बाहर जा कर उनसे मिला और उनके लश्कर के साथ उनके ठहरने के लिए तय किए महल तक पैदल चल कर आया । मुझे पूरा विश्वास है कि फारसी मूल से प्रस्तुत यह हिंदी अनुवाद मध्यकालीन समाज में महिलाओं की स्थिति संबंधी अध्ययन को विशेष रूप से प्रेरणा प्रदान करेगा ।
वक्तव्य
यद्यपि बादशाह हुमायूं फारसी, अरबी और तुर्की भाषाओं के पूरे पंडित थे, ज्योतिष अरि भूगर्भ शास्त्रों में पारंगत थे और फारसी के कवि भी थे, पर फिर भी इन्होंने अपने पिता बाबर बादशाह के समान अपना आत्मचरित्र लिख कर उनका अनुकरण नहीं किया । जिस प्रकार बाबर ने अपने सुख-दुःख, हानि-लाभ और युद्धादि का चित्र अपनी पुस्तक में खींचकर सर्वसाधारण के सामने रख दिया है, उस प्रकार हुमायूं नहीं कर सका । यद्पि पिता-पुत्र के जीवन की घटनाओं में पूरा सादृश्य कालचक्र द्वारा प्रेरित होकर आ गया है, पर प्रथम ने अपनी लेखनी द्वारा अपने इतिहास को प्रकाशित किया है और दूसरे ने अपने इतिहास को अंधकार में छोड़ दिया है । परंतु हुमायूं के सौभाग्य से उस कमी को उसके दो समसामयिकों ने पूर्ण कर दिया । प्रथम इनकी सौतेली बहन गुलबदन बेगम थी और दूसरा इनका सेवक जौहर आफताबची था ।
जौहर ने जो पुस्तक लिखी है वह तजकिर:तुत्-वाकिआत या वाकिआते-हुमायूंनी कहलाती है और उसमें हुमायूं की राजगद्दी से लेकर उसकी मृत्यु तक का वर्णन है । इसने अपने स्वामी की सभी बातों का शुद्ध हृदय से वर्णन किया है और कुछ भी छिपाने की चेष्टा नहीं की है । परंतु जिस प्रकार सभी पुरुष इतिहासकारों ने मितियों, नामों और घटनाओं पर अधिक ध्यान दिया है, उसी प्रकार इसने भी किया है । इस विषय पर स्त्रियां कम लेखनी उठाती हैं, परंतु जब इनका रचित इतिहास देखने में आता है तब उसमें अवश्य यह विचित्रता दिखलाई देती है कि वे स्त्री-संसार की ही घटनाओं का अधिक विवरण देती हैं और पुरुष-संसार की घटनाओं का उल्लेख मात्र कर देती हैं । यही विचित्रता या अधिकता गुलबदन बेगम की पुस्तक हुमायूंनामा में भी है ।
जब इस पुस्तक को पढ़ते हैं तब ऐसा ज्ञात होने लगता है कि सहृदय प्राणियों की किसी गृहस्थी में चले आप हैं । बेगम ने अपने पिता का भी कुछ वृत्तांत लिखा है । बदख्शां की लड़ाइयों का, काबुल पर अधिकार करने का और पानीपत तथा कन्हवा की प्रसिद्ध विजयों का उल्लेख मात्र किया गया है; परंतु विवरण दिया है उन भेंटों का जो बाबर ने दिल्ली की लूट से काबुल भेजी थी और जिस प्रकार वहां खुशी मनाई गई थी । हुमायूं की मांदगी, माता-पिता का शोक, उनका अच्छा होना, बाबर की मांदगी और उनकी मृत्यु पर के शोक का पूरा विवरण दिया है क्योंकि वह स्त्रियों की दृष्टि में युद्धादि से अधिक प्रयोजनीय मालूम पड़ता है ।
जब हुमायूं का जीवनचरित्र आरंभ किया है, तब पहले तिलस्मी और हिंदाल के विवाह की मजलिसों का ही वर्णन दिया है और उनकी तैयारियों का बहुत ही अच्छा वर्णन किया है । पूर्वीय प्रांतों कै जय-पराजय चौसा और कन्नौज के युद्धों और अंत में चगत्ताइयों के लाहौर भागने का उल्लेख भी उन्होंने किया है । जब हुमायूं सिंध की ओर चले तब से फारस पहुंचने तक में जो कुछ दुःख और कठिनाइयां उन्हें भुगतनी पडी थीं. उनका बेगम ने पूरा विवरण दे दिया है । हमीदाबानू बेगम ने हुमायूं बादशाह से विवाह करने में जो कुछ कठिनाइयां दिखाई थीं, उनका पूरा वृत्तांत दिया गया है । पर विवाह का संक्षेप ही में वर्णन दे दिया गया है । फारस में गुलबदन बेगम स्वयं नहीं गई थीं; और वहां का जो कुछ वर्णन इन्होंने दिया है वह सब हमीदा बानू बेगम का ही बताया हुआ है । इन्होंने बादशाहों के मिलने और स्वागत का संक्षेप में और बातचीत का तथा किस प्रकार हुमायूं की मानहानि की गई थी, इसका कुछ भी वर्णन नहीं किया है, पर लालों के चोरी जाने और मिलने का पूरा हाल लिखा है ।
हुमायूं के लौटने के साथ बेगम का इतिहास अब फिर से अफगानिस्तान में आरंभ होता है । संक्षेप ही में दोनों भाइयों के झगड़े का वर्णन करते हुए अंत में मिर्जा कामरां के पकड़े जाने और अंधे किए जाने तक का हाल लिखा गया हे । पर इसके अनंतर के पृष्ठों का ही पता नहीं है जिससे कि कहा जा सके कि यह पुस्तक कहां पर समाप्त हुई है ।
मूल ग्रंथ की जो प्रति अभी तक प्राप्त हुई है, वह विलायत के ब्रिटिश म्यूजियम में सुरक्षित है और उसमें इसके आगे के पृष्ठ नहीं हैं । इस पुस्तक की दूसरी प्रति अभी तक कहीं नहीं मिली है और इससे जान पड़ता है कि इस पुस्तक की अनेक प्रतियां नहीं तैयार कराई गई थीं । हो सकता है कि यह पुस्तक बेगम के हाथ की ही लिखी हुई हो । अबुलफजल के अकबरनामे में यद्यपि इस पुस्तक के काम में लाए जाने का संकेत है । पर उसने कहीं बेगम की पुस्तक का नाम नहीं दिया है ।
कर्नल हैमिल्टन जब भारत से विलायत ''गए तब एक सहस्र पुस्तकें जिनको उन्होंने दिल्ली और लखनऊ में संग्रह किया था साथ लेते गए थे । उनकी विधवा ने 1868 में ब्रिटिश म्मूजियम के हाथ चुनी हुई 352 पुस्तकें बेच दीं जिनमें यह भी थी । डॉक्टर (यू जिन्होंने इन पुस्तकों की सूची बनाई थी इस पुस्तक को सर्वोत्तम पुस्तकों में परिगणित किया है । मिस्टर अर्सकिन और प्रोफेसर ब्लौकमैन ने फारसी पुस्तकों का यद्यपि बहुत मनन किया था, पर उन्हें भी इस पुस्तक का पता नहीं था । अंग्रेजी अनुवादिका के लेखानुसार बेगम का हुमायूंनामा उस समय तक पर्दानशीन ही रहा जब तक डॉक्टर यू ने सूची में उसका नाम नहीं दिया था । उसके अनंतर भी वह उसी हालत में ही पड़ा रहा । मिसेज बेवरिज ने उन्नीसवीं शताब्दी के बिल्कुल अंत में इस पुस्तक को अपने हाथ में लिया और इसके अनुवाद को टिप्पणी और परिशिष्ट आदि से विभूषित करके रायल एशियाटिक सोसाइटी के ओरिएंटल ट्रांसलेशन फंड की नई माला में छपवाया ।
गुलबदन बेगम ने यह इतिहास लिख कर सबसे अधिक आवश्यक कार्य यह पूरा किया है कि अपने वंश के और कई दूसरे सामयिक घरों के संबंधों का परिचय करा दिया है । अंग्रेजी अनुवादिका को इन संबंधों के नाम देने में बड़ी कठिनाई पड़ी है; क्योंकि यूरोप में एक शब्द जितने संबंधों के लिए काम में लाया जाता है, प्राय: उतने के लिए एशिया में लगभग आधे दर्जन पृथक्-पृथक् शब्द व्यवहार में लाए जाते हैं । बेगम ने तारीखों और घटनाओं में कहीं-कहीं अशुद्धि की है । इनका उल्लेख संदर्भ-सूची में कर दिया गया है ।
यह हिंदी अनुवाद अंग्रेजी अनुवाद से बिल्कुल स्वतंत्र है और मूल फारसी से अनूदित है; इसलिए यदि कहीं कुछ विभिन्नता है तो वह मूल के ही कारण हुई है । बहुत से नोट जो आवश्यक नहीं जान पड़े, छोड़ दिए गए हैं और बहुत से नए नोट भी बढ़ाए गए हैं । अंग्रेजी अनुवाद में एक बड़ा परिशिष्ट दिया गया है जिसमें बेगमों आदि के छोटे-छोटे जीवन-चरित्र दिए गए हैं । परंतु मैंने पाठकों के सुभीते के लिए हिंदी अनुवाद में जहां बेगमों के नाम आए हैं, उन्हें संदर्भ-सूची में उनका जीवन-चरित्र दे दिया है । ये जीवन-चरित्र मुख्यतया अंग्रेजी अनुवादिका के ही श्रम के फल हैं ।
विषय-सूची |
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प्रस्तावना |
सात |
2 |
वक्तव्य |
ग्यारह |
3 |
गुलबदन बेगम का जीवनचरित्र |
पंद्रह |
4 |
हुमायूंनामा |
1 |
5 |
सदंर्भ-सूची |
71 |
6 |
अनुक्रमणिका |
105 |