प्राक्कथन
हमारे सुधी पाठक इस तथ्य से भली भाँति परिचित है कि संस्कृत भाषा में निबद्ध योग से सम्बन्धित ग्रन्थों की विषय वस्तु को समझने, उसे सरल एवं सुबोध बनाने तथा आधुनिक जीवन की समस्याओं के परिप्रेक्ष्य में उसकी उपयोगिता को जनसामान्य तक ले जाने में कैवल्यधान के दार्शनिक साहित्यानुसन्धान विभाग का अपना योगदान रहा है। इस प्रक्रिया में योग्य के अन्यान्य ग्रन्थों के साथ साथ स्वात्मारामसूरि कृत हठप्रदीपिका, जो हठयोग की अभ्यास पुस्तिका के रूप में स्वीकृत हैं, का आलोचनात्मक संस्करण 1970 में अंग्रेजी अनुवाद के साथ तथा 1980 में हिन्दी अनुवाद में हिन्दी अनुवाद के साथ प्रकाशित किया जा चुका है। हमारे द्वारा प्रकाशित इन दोनों संस्करणों में इस ग्रन्थ की विषयवस्तु को' समझने में; सम्पादकों ने प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से ब्रह्मानन्द द्वारा रचित ज्योत्स्ना टीका को अपना आधार बनाया है । अत: ज्योत्सना टीका की महत्ता तथा इस महत्त्वपूर्ण टीका के आलोचनात्मक संस्करण की अनुपलब्धि को ध्यान में रखते हुए विभाग ने इस टीका के आलोचनात्मक संस्करण की योजना बनाई । तदनुसार ईश्वरीय अनुकम्पा के फलस्वरूप इसे पाठकों के सम्मुख रखने में हम सफल हो पाये हैं । हमें आशा ही नहीं, पूर्ण विश्वास है कि हमारे हिन्दीभाषी सुधी पाठक अभ्यासपरक टीका के इस संस्करण से लाभान्वित होंगे । इस संस्करण को आप तक पहुँचाने का सम्पूर्ण श्रेय इस विभाग के विभागाध्यक्ष डा. बाबूराम शर्मा तथा उनके सहयोगी अनुसन्धान अधिकारी श्री. ज्ञान शंकर सहाय तथा श्री. रविन्द्रनाथ बोधे को जाता है जिन्होंने अपने अथक परिश्रम द्वारा अल्प समय में इसे पूरा किया । अत: वे हमारी बधाई के पात्र हैं।
इस आलोचनात्मक संस्करण के निर्माणरूपी महायज्ञ में अनेक लोगों ने अपने सहयोग की आहुतियां दी है जिन्हें स्मरण करना तथा उनके प्रति अपनी कृतज्ञता ज्ञापित करना हम अपना कर्तव्य समझते हैं । इस श्रृंखला में, सर्वप्रथम हम उन समस्त पुस्तकालयों का धन्यवाद ज्ञापित करते हैं जिन्होंने इस टीका के हस्तलेखों की छाया प्रतियां हमें उपलब्ध करवायी हैं जिनका विवरण प्रस्तावना में यथास्थान दिया गया है । इसी कम में हम श्री औदुम्बर क्षेत्रान्तर्गत श्रीब्रह्मानन्द मठ के वर्तमान मठाधीश प.पू. स्वामी पूर्णानन्दजी तथा पद्मश्री से विभूषित कवि सुधांशुजी (श्री. हन. जोशी) के प्रति हम अपना आभार प्रकट करते हैं जिन्होंने ज्योत्स्नाकार ब्रह्मानन्द के जीवन चरित के सम्बन्ध में हमें समय दिया तथा सम्बन्धित जानकारी उपलब्ध करवायी । इस श्रीपावनक्षेत्र औदुम्बर तक पहुँचने में डा. दत्तात्रेय वझे तथा उनके सम्बन्धी श्रीमती व श्री अवनीश पारसनीस ने हमारी सहायता की, जिसके लिए हम उनके प्रति हद्या आभारी है ।
मैं विशेषरूप से हमारे अनुसन्धानकर्त्ताओं के प्रेरणास्रोत, वर्तमान समय के साक्षात् कर्मयोगी, कैवल्यधाम के सचिव श्री ओम् प्रकाश तिवारीजी के प्रति अपना आभार प्रकट करता हूँ जिन्होंने चतुर्थ अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन की शुभ बेला पर इस पुस्तक के उद्घाटन के प्रस्ताव द्वारा न केवल विभाग का उत्साहवर्धन किया अपितु पुस्तक निर्माण कार्य में शीघ्रता लाने की प्रेरणा भी दी । साथ ही पुस्तक प्रकाशन हेतु आवश्यक धनराशि का प्रबन्ध किया जिस के अभाव में पुस्तक का प्रकाशन ही सम्भव न हो पाता । हम कैवल्यधाम के प्रशासनिक अधिकारी श्री सुबोध तिवारी का हृदय से आभार प्रकट करते हैं जिन्होंने पुस्तक में दिये गये आसनों के चित्रों को प्रस्तुत करने में हमारा सहयोग दिया है । हम कैवल्यधाम समिति के कार्यालय की अधीक्षिका श्रीमती पुष्पा मांडकेजी का आभार प्रकट करते हैं जिन्होंने सम्पादक मण्डल एवं मुद्रक के बीच सेतु का कार्य तत्परतापूवक निभाया है । कैवल्यधाम पुस्तकालय के श्री बण्डू कुटे तथा श्रीमती अर्चना सिन्हा के हम आभारी हैं जिन्होंने इस संस्करण हेतु आवश्यक सामग्रीउपलब्ध करवा कर हमारा सहयोग किया । इस ग्रन्थ के संगणकीय टंकण का कार्य सुश्री शबाना कान्ट्रेक्टर, श्रीमती नाझिमा सौदागर तथा विशेषरूप से श्री पद्माकर राऊतजी ने बड़ी ही तत्परता एवं कुशलता से पूरा करने में हमारा सहयोग दिया जिसके लिये हम इन सभी के प्रति अपना आभार प्रकट करते हैं। इस आलोचनात्मक संस्करण के निर्माण में कैवल्यधाम के सभी आश्रम बन्धुओं का हृदय से आभार प्रकट करते हैं जिन्होंने प्रत्यक्षा/अप्रत्यक्ष रूप से अपना अमूल्य सहयोग दिया । हम 'एस् एन्टरप्राइजेस् के संचालक श्री तनपुरेजी का हृदय से आभार प्रकट करते हैं जिन्होंने कुशलतापूर्वक अल्पसमय में इस संस्करण को मुद्रित करने का कार्य सम्पत्र किया । अन्तमें, अपने सुधी पाठकों से निवेदन करना चाहेंगे कि वे इस प्रकाशन में रह गई हमारी त्रुटियों को उसी प्रकार स्वीकार करेंगे जिस प्रकार स्वयं ज्योत्स्नाकार यति ब्रह्मानन्द ने निम्न श्लोक द्वारा अपने पाठकों से निवेदन किया है—
विषय सूची |
|
प्राक्कथन |
|
प्रस्तावना |
1 51 |
ग्रन्थ विषय वस्तु प्रथम से चतुर्थ उपदेश |
1 392 |
परिशिष्ट 1 कैवल्यधाम द्वारा प्रकाशित हठप्रदीपिका से |
393 395 |
पञ्चम उपदेश |
|
परिशिष्ट 2 |
396 408 |
श्लोकार्ध सूची |
|
परिशिष्ट 3 हठप्रदीपिका ज्योत्सना शब्द सूची |
409 417 |
परिशिष्ट 4 चित्र सूची |
प्राक्कथन
हमारे सुधी पाठक इस तथ्य से भली भाँति परिचित है कि संस्कृत भाषा में निबद्ध योग से सम्बन्धित ग्रन्थों की विषय वस्तु को समझने, उसे सरल एवं सुबोध बनाने तथा आधुनिक जीवन की समस्याओं के परिप्रेक्ष्य में उसकी उपयोगिता को जनसामान्य तक ले जाने में कैवल्यधान के दार्शनिक साहित्यानुसन्धान विभाग का अपना योगदान रहा है। इस प्रक्रिया में योग्य के अन्यान्य ग्रन्थों के साथ साथ स्वात्मारामसूरि कृत हठप्रदीपिका, जो हठयोग की अभ्यास पुस्तिका के रूप में स्वीकृत हैं, का आलोचनात्मक संस्करण 1970 में अंग्रेजी अनुवाद के साथ तथा 1980 में हिन्दी अनुवाद में हिन्दी अनुवाद के साथ प्रकाशित किया जा चुका है। हमारे द्वारा प्रकाशित इन दोनों संस्करणों में इस ग्रन्थ की विषयवस्तु को' समझने में; सम्पादकों ने प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से ब्रह्मानन्द द्वारा रचित ज्योत्स्ना टीका को अपना आधार बनाया है । अत: ज्योत्सना टीका की महत्ता तथा इस महत्त्वपूर्ण टीका के आलोचनात्मक संस्करण की अनुपलब्धि को ध्यान में रखते हुए विभाग ने इस टीका के आलोचनात्मक संस्करण की योजना बनाई । तदनुसार ईश्वरीय अनुकम्पा के फलस्वरूप इसे पाठकों के सम्मुख रखने में हम सफल हो पाये हैं । हमें आशा ही नहीं, पूर्ण विश्वास है कि हमारे हिन्दीभाषी सुधी पाठक अभ्यासपरक टीका के इस संस्करण से लाभान्वित होंगे । इस संस्करण को आप तक पहुँचाने का सम्पूर्ण श्रेय इस विभाग के विभागाध्यक्ष डा. बाबूराम शर्मा तथा उनके सहयोगी अनुसन्धान अधिकारी श्री. ज्ञान शंकर सहाय तथा श्री. रविन्द्रनाथ बोधे को जाता है जिन्होंने अपने अथक परिश्रम द्वारा अल्प समय में इसे पूरा किया । अत: वे हमारी बधाई के पात्र हैं।
इस आलोचनात्मक संस्करण के निर्माणरूपी महायज्ञ में अनेक लोगों ने अपने सहयोग की आहुतियां दी है जिन्हें स्मरण करना तथा उनके प्रति अपनी कृतज्ञता ज्ञापित करना हम अपना कर्तव्य समझते हैं । इस श्रृंखला में, सर्वप्रथम हम उन समस्त पुस्तकालयों का धन्यवाद ज्ञापित करते हैं जिन्होंने इस टीका के हस्तलेखों की छाया प्रतियां हमें उपलब्ध करवायी हैं जिनका विवरण प्रस्तावना में यथास्थान दिया गया है । इसी कम में हम श्री औदुम्बर क्षेत्रान्तर्गत श्रीब्रह्मानन्द मठ के वर्तमान मठाधीश प.पू. स्वामी पूर्णानन्दजी तथा पद्मश्री से विभूषित कवि सुधांशुजी (श्री. हन. जोशी) के प्रति हम अपना आभार प्रकट करते हैं जिन्होंने ज्योत्स्नाकार ब्रह्मानन्द के जीवन चरित के सम्बन्ध में हमें समय दिया तथा सम्बन्धित जानकारी उपलब्ध करवायी । इस श्रीपावनक्षेत्र औदुम्बर तक पहुँचने में डा. दत्तात्रेय वझे तथा उनके सम्बन्धी श्रीमती व श्री अवनीश पारसनीस ने हमारी सहायता की, जिसके लिए हम उनके प्रति हद्या आभारी है ।
मैं विशेषरूप से हमारे अनुसन्धानकर्त्ताओं के प्रेरणास्रोत, वर्तमान समय के साक्षात् कर्मयोगी, कैवल्यधाम के सचिव श्री ओम् प्रकाश तिवारीजी के प्रति अपना आभार प्रकट करता हूँ जिन्होंने चतुर्थ अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन की शुभ बेला पर इस पुस्तक के उद्घाटन के प्रस्ताव द्वारा न केवल विभाग का उत्साहवर्धन किया अपितु पुस्तक निर्माण कार्य में शीघ्रता लाने की प्रेरणा भी दी । साथ ही पुस्तक प्रकाशन हेतु आवश्यक धनराशि का प्रबन्ध किया जिस के अभाव में पुस्तक का प्रकाशन ही सम्भव न हो पाता । हम कैवल्यधाम के प्रशासनिक अधिकारी श्री सुबोध तिवारी का हृदय से आभार प्रकट करते हैं जिन्होंने पुस्तक में दिये गये आसनों के चित्रों को प्रस्तुत करने में हमारा सहयोग दिया है । हम कैवल्यधाम समिति के कार्यालय की अधीक्षिका श्रीमती पुष्पा मांडकेजी का आभार प्रकट करते हैं जिन्होंने सम्पादक मण्डल एवं मुद्रक के बीच सेतु का कार्य तत्परतापूवक निभाया है । कैवल्यधाम पुस्तकालय के श्री बण्डू कुटे तथा श्रीमती अर्चना सिन्हा के हम आभारी हैं जिन्होंने इस संस्करण हेतु आवश्यक सामग्रीउपलब्ध करवा कर हमारा सहयोग किया । इस ग्रन्थ के संगणकीय टंकण का कार्य सुश्री शबाना कान्ट्रेक्टर, श्रीमती नाझिमा सौदागर तथा विशेषरूप से श्री पद्माकर राऊतजी ने बड़ी ही तत्परता एवं कुशलता से पूरा करने में हमारा सहयोग दिया जिसके लिये हम इन सभी के प्रति अपना आभार प्रकट करते हैं। इस आलोचनात्मक संस्करण के निर्माण में कैवल्यधाम के सभी आश्रम बन्धुओं का हृदय से आभार प्रकट करते हैं जिन्होंने प्रत्यक्षा/अप्रत्यक्ष रूप से अपना अमूल्य सहयोग दिया । हम 'एस् एन्टरप्राइजेस् के संचालक श्री तनपुरेजी का हृदय से आभार प्रकट करते हैं जिन्होंने कुशलतापूर्वक अल्पसमय में इस संस्करण को मुद्रित करने का कार्य सम्पत्र किया । अन्तमें, अपने सुधी पाठकों से निवेदन करना चाहेंगे कि वे इस प्रकाशन में रह गई हमारी त्रुटियों को उसी प्रकार स्वीकार करेंगे जिस प्रकार स्वयं ज्योत्स्नाकार यति ब्रह्मानन्द ने निम्न श्लोक द्वारा अपने पाठकों से निवेदन किया है—
विषय सूची |
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प्राक्कथन |
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प्रस्तावना |
1 51 |
ग्रन्थ विषय वस्तु प्रथम से चतुर्थ उपदेश |
1 392 |
परिशिष्ट 1 कैवल्यधाम द्वारा प्रकाशित हठप्रदीपिका से |
393 395 |
पञ्चम उपदेश |
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परिशिष्ट 2 |
396 408 |
श्लोकार्ध सूची |
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परिशिष्ट 3 हठप्रदीपिका ज्योत्सना शब्द सूची |
409 417 |
परिशिष्ट 4 चित्र सूची |