संसार के प्रत्येक प्राणी की आकांक्षा है जीवन में असीम सुख, शान्ति मान सम्मान पनपाना | पश्चिम जगत की मान्यता है की इसके लिए चाहिए जनशक्ति, धनशक्ति व् ज्ञानशक्ति | यद्दपि जगतजननी भारत ने इन तीनों शान्तियों की इतनी दें दे डाली है की जितनी संसार के किसी भी देश में उपलब्ध है | फिर भी भारतीत जीवन की मान्यता के अन्तर्गत, सुखशांति व् मन सम्मान पाने के लिए चाहिए जीवन में यगमयी भाव, पारिवारिक एकात्मता , विविधता में एकता, धर्म तथा संस्कृति के प्रति असीम श्रद्धा बी भक्ति, पूर्वजों के लिए गौरव तथा असीम राष्ट्रभाषा के आधार पर समाज सेवा तथा उत्तम संस्कारों का जीवन में जागरण करना | इसी के आधार पर हमारे देश में परमपिता परमेश्वर ने अनेक बार भिन्न भिन्न स्वरुप में जन्म लिया था | हमारे देश में अत्यंत श्रेष्ठ पूर्वज पनपे थे | भारतमाता की स्वाधीनता के लिए स्वाधीनता संग्राम के सेनानी, कान्तिकारी आंदोलनकारी भी पनपे थे | असीम श्रद्धा के आधार पर ही अपने देशवासियों भारत को भोगभूमि न मानकर उसे जगत जननी भारतमाता, गाय को गाय माता व् गंगा नदी को भी गंगा माता कहकर पुकारते है | बड़े बड़े शासकों द्वारा भी मन सम्मान un सन्यासियों को ही प्रदान किया जाता रहा है जिनके जीवन में असीम त्याग, तपस्या व् यगमयी भाव निहित है | उसी से अपने को बचाकर भारत को जीवन भर पराधीन बनना व् अपना शासन पनपाने के लिए एक अंग्रेजी शासक ने अंग्रेजी शिक्षा पद्धति इसी उद्देश्य से पनपायी थी जिससे की छात्रों (भावी नागरिकों) के जीवन में भारतीयता का भाव मिटाना, धर्म व् संस्कृति व् राष्ट्रभाषा का तिरस्कार करना, निजी स्वार्थ को प्राथमिकता देकर अंग्रेजी शासकों का सहयोगी बनना आवश्यक है | इससे भी बड़ा दुर्भाग्य है के स्वाधीनता बन जाने के बाद भी अधिकांश राजनैतिक नेताओं ने इसी को पनपाया है | इसी के कारन धर्म के स्थान पर राजनीती का तथा निजी स्वार्थ का भाव पनपने लगा है | राष्ट्रभाषा हिन्दी, देवभाषा के कारन भारत के अनेक भाग विदेशी बन गए है | bhartiy नागरिकों में एकात्मता मिट रही है | इसी सन्दर्भ में हम सभी के गम्भीर चिन्तन मनन का भाव चाहिए की शिक्षा के माध्यम से राष्ट्रभक्ति, पूर्वजों के प्रति गौरव, समाज सेवा को सर्वोच्च प्राथमिकता देना तथा धर्म व् संस्कृति के लिए निष्ठा व् भक्ति पनपाने हेतु संस्कार पनपाना आवश्यक है | इसी विषय का एक महत्वपूर्ण बिन्दु है रामायण व् महाभारत की गौरव गाथाएँ | इसी के आधार पर मैनें बल महाभारत पुस्तक लिख डाली है | सभी पाठकों से व् विद्वान कार्यकर्त्ताओं व् आचार्यों से मई विनम्र निवेदन कर रहा हूँ की लेखनकार्य में यदि कोई भूलचूक हो गयी हो, या कोई महत्वपूर्ण विषय चूत गया हो तो वे अपना निर्देश मुझे प्रदान करें |
संसार के प्रत्येक प्राणी की आकांक्षा है जीवन में असीम सुख, शान्ति मान सम्मान पनपाना | पश्चिम जगत की मान्यता है की इसके लिए चाहिए जनशक्ति, धनशक्ति व् ज्ञानशक्ति | यद्दपि जगतजननी भारत ने इन तीनों शान्तियों की इतनी दें दे डाली है की जितनी संसार के किसी भी देश में उपलब्ध है | फिर भी भारतीत जीवन की मान्यता के अन्तर्गत, सुखशांति व् मन सम्मान पाने के लिए चाहिए जीवन में यगमयी भाव, पारिवारिक एकात्मता , विविधता में एकता, धर्म तथा संस्कृति के प्रति असीम श्रद्धा बी भक्ति, पूर्वजों के लिए गौरव तथा असीम राष्ट्रभाषा के आधार पर समाज सेवा तथा उत्तम संस्कारों का जीवन में जागरण करना | इसी के आधार पर हमारे देश में परमपिता परमेश्वर ने अनेक बार भिन्न भिन्न स्वरुप में जन्म लिया था | हमारे देश में अत्यंत श्रेष्ठ पूर्वज पनपे थे | भारतमाता की स्वाधीनता के लिए स्वाधीनता संग्राम के सेनानी, कान्तिकारी आंदोलनकारी भी पनपे थे | असीम श्रद्धा के आधार पर ही अपने देशवासियों भारत को भोगभूमि न मानकर उसे जगत जननी भारतमाता, गाय को गाय माता व् गंगा नदी को भी गंगा माता कहकर पुकारते है | बड़े बड़े शासकों द्वारा भी मन सम्मान un सन्यासियों को ही प्रदान किया जाता रहा है जिनके जीवन में असीम त्याग, तपस्या व् यगमयी भाव निहित है | उसी से अपने को बचाकर भारत को जीवन भर पराधीन बनना व् अपना शासन पनपाने के लिए एक अंग्रेजी शासक ने अंग्रेजी शिक्षा पद्धति इसी उद्देश्य से पनपायी थी जिससे की छात्रों (भावी नागरिकों) के जीवन में भारतीयता का भाव मिटाना, धर्म व् संस्कृति व् राष्ट्रभाषा का तिरस्कार करना, निजी स्वार्थ को प्राथमिकता देकर अंग्रेजी शासकों का सहयोगी बनना आवश्यक है | इससे भी बड़ा दुर्भाग्य है के स्वाधीनता बन जाने के बाद भी अधिकांश राजनैतिक नेताओं ने इसी को पनपाया है | इसी के कारन धर्म के स्थान पर राजनीती का तथा निजी स्वार्थ का भाव पनपने लगा है | राष्ट्रभाषा हिन्दी, देवभाषा के कारन भारत के अनेक भाग विदेशी बन गए है | bhartiy नागरिकों में एकात्मता मिट रही है | इसी सन्दर्भ में हम सभी के गम्भीर चिन्तन मनन का भाव चाहिए की शिक्षा के माध्यम से राष्ट्रभक्ति, पूर्वजों के प्रति गौरव, समाज सेवा को सर्वोच्च प्राथमिकता देना तथा धर्म व् संस्कृति के लिए निष्ठा व् भक्ति पनपाने हेतु संस्कार पनपाना आवश्यक है | इसी विषय का एक महत्वपूर्ण बिन्दु है रामायण व् महाभारत की गौरव गाथाएँ | इसी के आधार पर मैनें बल महाभारत पुस्तक लिख डाली है | सभी पाठकों से व् विद्वान कार्यकर्त्ताओं व् आचार्यों से मई विनम्र निवेदन कर रहा हूँ की लेखनकार्य में यदि कोई भूलचूक हो गयी हो, या कोई महत्वपूर्ण विषय चूत गया हो तो वे अपना निर्देश मुझे प्रदान करें |