दो शब्द
संगीत एक गूढ़ कला है। अन्य देशों में इसकी उन्नति के लिए कलाकारों को अच्छा प्रोत्साहन दिया जाता है, परन्तु हमारा भारत इस विषय में बहुत पीछे है। जबतक संगीत के विद्वानों को, जो अनेक कठिनाइयों के कारण संगीतोन्नति में सहायक नहीं हो रहे हैं, उचित प्रोत्साहन देकर उनकी स्थिति का सुधार न किया जाएगा, तबतक हम अपने उद्देश्यों में सफल न हो सकेंगे ।
शिक्षक और विद्यार्थी, दोनों के लिए आज संगीत विषयक उपयोगी साहित्य की जरूरत है। बहुधा देखने में आता है कि शास्त्रीय संगीत में पुराने गानों की कविताएँ, जो कि आजकल की प्रचलित संगीत पुस्तकों में देखने में आती हैं, बहुत ही ऊटपटाँग तथा अश्लील हैं । बहुत से गानों का तो कुछ अर्थ ही नहीं निकलता । ऐसे गानों से न तो विद्यार्थी प्रभावित हो सकते हैं और न उनमें संगीत प्रेम ही उत्पन्न हो सकता है । हिन्दी साहित्य दिनों दिन उन्नति कर रहा है, फिर क्यों न हम पक्की चीजों के ऊटपटांग भद्दे गीत बदलकर उनकी जगह सरल, सुबोध तथा भावपूर्ण कविताएँ काम में लायें, ताकि स्वरानन्द के साथ साथ शब्दानन्द मिलकर सोने में सुगंध का काम करे। इस पुस्तक में इन बातों का भली प्रकार ध्यान रखकर श्रीमती कमलेशकुमारी कुलश्रेष्ठ आदि द्वारा रचित अच्छे सुसंस्कृत गीत दिए गए हैं।
इस पुस्तक से पूर्व संगीत कार्यालय, हाथरस द्वारा प्रारम्भिक कक्षाओं के लिए बाल संगीत शिक्षा का पहला भाग और बाद की कक्षाओं के लिए उसका दूसरा तथा तीसरा भाग प्रकाशित हो चुका है। अब, नवीं और दसवीं कक्षाओं के लिए यह संगीत किशोर प्रकाशित किया जा रहा है । इसमें पन्द्रह रागों के परीक्षोपयोगी ताल विस्तार, सरगम गतें आरोहावरोह, पकड़, आलाप तथा पृथक् तालों में दो दो गाने स्वरलिपि सहित दिए गए हैं। प्रारम्भ में पन्द्रह आवश्यक तालों का परिचय भी दे दिया गया है, जिनमें से आठ तालों की दुगुन भी दी गई है।अन्त में डॉ० लक्ष्मीनारायण गर्ग द्वारा लिखित संगीत कोश का उपयोगी अंश भी दे दिया गया है, जिससे पाठयक्रम में प्रयुक्त संगीत के पारिभाषिक शब्दों का ज्ञान सरल रूप में हो सकेगा । हाईस्कूल स्तर के समस्त विद्यार्थियों के लिए इस पुस्तक की उपयोगिता स्वयंसिद्धि है।
अनुक्रम |
||
1 |
ताल परिचय |
5 |
2 |
यमन |
10 |
3 |
बिलावल |
16 |
4 |
खमाज |
21 |
5 |
काफी |
27 |
6 |
भैरव |
34 |
7 |
भैरवी |
41 |
8 |
आसावरी |
46 |
9 |
अलैयाबिलावल |
54 |
10 |
बिहाग |
62 |
11 |
भीमपलासी |
68 |
12 |
देश |
75 |
13 |
बागेश्री |
82 |
14 |
वृदावनीसारग |
88 |
15 |
पीलू |
94 |
16 |
दुर्गा |
100 |
17 |
संगीत सम्बन्धी परिभाषिक शब्द कोश |
105 |
दो शब्द
संगीत एक गूढ़ कला है। अन्य देशों में इसकी उन्नति के लिए कलाकारों को अच्छा प्रोत्साहन दिया जाता है, परन्तु हमारा भारत इस विषय में बहुत पीछे है। जबतक संगीत के विद्वानों को, जो अनेक कठिनाइयों के कारण संगीतोन्नति में सहायक नहीं हो रहे हैं, उचित प्रोत्साहन देकर उनकी स्थिति का सुधार न किया जाएगा, तबतक हम अपने उद्देश्यों में सफल न हो सकेंगे ।
शिक्षक और विद्यार्थी, दोनों के लिए आज संगीत विषयक उपयोगी साहित्य की जरूरत है। बहुधा देखने में आता है कि शास्त्रीय संगीत में पुराने गानों की कविताएँ, जो कि आजकल की प्रचलित संगीत पुस्तकों में देखने में आती हैं, बहुत ही ऊटपटाँग तथा अश्लील हैं । बहुत से गानों का तो कुछ अर्थ ही नहीं निकलता । ऐसे गानों से न तो विद्यार्थी प्रभावित हो सकते हैं और न उनमें संगीत प्रेम ही उत्पन्न हो सकता है । हिन्दी साहित्य दिनों दिन उन्नति कर रहा है, फिर क्यों न हम पक्की चीजों के ऊटपटांग भद्दे गीत बदलकर उनकी जगह सरल, सुबोध तथा भावपूर्ण कविताएँ काम में लायें, ताकि स्वरानन्द के साथ साथ शब्दानन्द मिलकर सोने में सुगंध का काम करे। इस पुस्तक में इन बातों का भली प्रकार ध्यान रखकर श्रीमती कमलेशकुमारी कुलश्रेष्ठ आदि द्वारा रचित अच्छे सुसंस्कृत गीत दिए गए हैं।
इस पुस्तक से पूर्व संगीत कार्यालय, हाथरस द्वारा प्रारम्भिक कक्षाओं के लिए बाल संगीत शिक्षा का पहला भाग और बाद की कक्षाओं के लिए उसका दूसरा तथा तीसरा भाग प्रकाशित हो चुका है। अब, नवीं और दसवीं कक्षाओं के लिए यह संगीत किशोर प्रकाशित किया जा रहा है । इसमें पन्द्रह रागों के परीक्षोपयोगी ताल विस्तार, सरगम गतें आरोहावरोह, पकड़, आलाप तथा पृथक् तालों में दो दो गाने स्वरलिपि सहित दिए गए हैं। प्रारम्भ में पन्द्रह आवश्यक तालों का परिचय भी दे दिया गया है, जिनमें से आठ तालों की दुगुन भी दी गई है।अन्त में डॉ० लक्ष्मीनारायण गर्ग द्वारा लिखित संगीत कोश का उपयोगी अंश भी दे दिया गया है, जिससे पाठयक्रम में प्रयुक्त संगीत के पारिभाषिक शब्दों का ज्ञान सरल रूप में हो सकेगा । हाईस्कूल स्तर के समस्त विद्यार्थियों के लिए इस पुस्तक की उपयोगिता स्वयंसिद्धि है।
अनुक्रम |
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1 |
ताल परिचय |
5 |
2 |
यमन |
10 |
3 |
बिलावल |
16 |
4 |
खमाज |
21 |
5 |
काफी |
27 |
6 |
भैरव |
34 |
7 |
भैरवी |
41 |
8 |
आसावरी |
46 |
9 |
अलैयाबिलावल |
54 |
10 |
बिहाग |
62 |
11 |
भीमपलासी |
68 |
12 |
देश |
75 |
13 |
बागेश्री |
82 |
14 |
वृदावनीसारग |
88 |
15 |
पीलू |
94 |
16 |
दुर्गा |
100 |
17 |
संगीत सम्बन्धी परिभाषिक शब्द कोश |
105 |