पुस्तक के विषय में
मेरे गुरुदेव त्याग की साकार मूर्ति थे । हमारे देश में जो पुरुष संन्यासी होता है। उसके लिए यह आवश्यक होता है कि वह सारी सांसारिक सम्पत्ति तथा यश का त्याग कर दे और मेरे गुरुदेव ने इस सिद्धान्त का अक्षरश: पालन किया । ऐसे बहुतसे मनुष्य थे जो अपने को धन्य मानते यदि मेरे गुरुदेव उनसे कोई भेंट ग्रहण कर लेते और यदि वे स्वीकार करते तो वे मनुष्य उन्हें हजारों रुपये दे देते, परन्तु मेरे गुरुदेव ऐसे ही लोगों से दूर भागते थे ।
काम-कांचन पर उन्होंने पूर्ण विजय प्राप्त कर ली थी और इस बात के वे प्रत्यक्ष उदाहरण भी थे। वे इन दोनों बातों की कल्पना के भी परे थे और इस शताब्दी के लिए ऐसे ही महापुरुषों की आवश्यकता है ।
वक्तव्य
(प्रथम संस्करण)
हिन्दी जनता के सम्मुख 'मेरे गुरुदेव' यह नई पुस्तक रखते हमे बड़ी प्रसन्नता होती है ।
स्वामी विवेकानन्दजी का न्यूयार्क (अमेरिका) में दिया हुआ यह भाषण विश्वविख्यात है। स्वामीजी अपने गुरुदेव श्रीरामकृष्ण परमहंसजी के सबसे बड़े शिष्य थे और इस भाषण द्वारा उन्होने अपने पूज्य गुरुदेव की अनुपम जीवनी का सुन्दर विश्लेषण हमारे सामने रखा है। साहित्य-शास्री प्रो. विद्याभास्कर शुक्लजी, एम.एस.-सी., पी.ई.एस. के हम परम कृतज्ञ है जिन्होने भक्तिभाव से इस पुस्तक का अनुवाद हिन्दी मे करके हमे दिया है । प्रो. शुक्लजी कै इस अनुवाद में मौलिक भाषण के भाव ज्यो के त्यों रहे है तथा भाषा का ओज रखने में वे विशेषरूप से सफल हुए हैं ।
हमे विश्वास है कि इस पुस्तक से केवल हिन्दी-प्रेमियों का ही नहीं वरन् हमारे नवयुवको का भी कई दृष्टिकोणों से लाभ होगा।
पुस्तक के विषय में
मेरे गुरुदेव त्याग की साकार मूर्ति थे । हमारे देश में जो पुरुष संन्यासी होता है। उसके लिए यह आवश्यक होता है कि वह सारी सांसारिक सम्पत्ति तथा यश का त्याग कर दे और मेरे गुरुदेव ने इस सिद्धान्त का अक्षरश: पालन किया । ऐसे बहुतसे मनुष्य थे जो अपने को धन्य मानते यदि मेरे गुरुदेव उनसे कोई भेंट ग्रहण कर लेते और यदि वे स्वीकार करते तो वे मनुष्य उन्हें हजारों रुपये दे देते, परन्तु मेरे गुरुदेव ऐसे ही लोगों से दूर भागते थे ।
काम-कांचन पर उन्होंने पूर्ण विजय प्राप्त कर ली थी और इस बात के वे प्रत्यक्ष उदाहरण भी थे। वे इन दोनों बातों की कल्पना के भी परे थे और इस शताब्दी के लिए ऐसे ही महापुरुषों की आवश्यकता है ।
वक्तव्य
(प्रथम संस्करण)
हिन्दी जनता के सम्मुख 'मेरे गुरुदेव' यह नई पुस्तक रखते हमे बड़ी प्रसन्नता होती है ।
स्वामी विवेकानन्दजी का न्यूयार्क (अमेरिका) में दिया हुआ यह भाषण विश्वविख्यात है। स्वामीजी अपने गुरुदेव श्रीरामकृष्ण परमहंसजी के सबसे बड़े शिष्य थे और इस भाषण द्वारा उन्होने अपने पूज्य गुरुदेव की अनुपम जीवनी का सुन्दर विश्लेषण हमारे सामने रखा है। साहित्य-शास्री प्रो. विद्याभास्कर शुक्लजी, एम.एस.-सी., पी.ई.एस. के हम परम कृतज्ञ है जिन्होने भक्तिभाव से इस पुस्तक का अनुवाद हिन्दी मे करके हमे दिया है । प्रो. शुक्लजी कै इस अनुवाद में मौलिक भाषण के भाव ज्यो के त्यों रहे है तथा भाषा का ओज रखने में वे विशेषरूप से सफल हुए हैं ।
हमे विश्वास है कि इस पुस्तक से केवल हिन्दी-प्रेमियों का ही नहीं वरन् हमारे नवयुवको का भी कई दृष्टिकोणों से लाभ होगा।