हमारा देश ऋषियों मुनियों व संत महात्मा
हमारा देश ऋषियों मुनियों व संत महात्माओं का देश है, जिन्होंने अपने तप पूत ज्ञान से न केवल आध्यात्मिक शक्ति की ज्योति जलाई अपितु अपने श्रेष्ठ मर्यादित शील, आचरण, अहिंसा, सत्य, परोपकार, त्याग, ईश्वरभक्ति आदि के द्वारा समस्त मानव जाति के समक्ष जीवन जीने का एक अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत किया।
इन्हीं के बताए मार्ग पर चलकर, उसका आचरण करके भारत किसी समय ज्ञान विज्ञान, भक्ति और समृद्धि के चरम शिखर तक पहुंचा था। इस देश में इतने ऋषि मुनि और संत महात्मा हुए हैं कि उनका नाम गिनाना संभव नहीं है। कौन कितना बड़ा और श्रेष्ठ था, इसका मूल्यांकन करना भी संभव नहीं है।
प्रस्तुत पुस्तक में कुछ चुने हुए ऋषियों मुनियों और संत महात्माओं के बारे में संक्षेप में वर्णन किया गया है, जिन्होंने समाज को एक नयी दिशा दी, उसका मार्गदर्शन किया। पुस्तक के आरंभ में ऋषि मुनि और संत महात्मा शब्दों की व्याख्या भी दी गयी है, जिसे पढ़कर पाठक उनका अर्थ समझकर लाभान्वित होंगे। यह पुस्तक हमारे ऋषि मुनि और संत महात्मा ज्ञान पिपासुओं के लिए लाभकारी और पठनीय तो है ही, संग्रहणीय भी है।
लेखक का परिचय
65 वर्षीय सुदर्शन भाटिया की विभिन्न विषयों पर सवा सौ से अधिक पुस्तके तथा देश भर की 270 पत्र पत्रिकाओं में तीन हजार से अधिक रचनाए प्रकाशित हो चुकी हैं । हिन्दी साहित्य जगत् में भली प्रकार परिचित सुदर्शन भाटिया को हिमाचल केसरी अवार्ड (1997), आचार्य की मानद उपाधि (1999), हिम साहित्य परिषद का राज्य स्तरीय सम्मान (1999), साहित्य श्री सम्मान (2000), बीसवीं शताब्दी रत्न सम्मान (2000) पद्मश्री डी लक्ष्मी नारायण दुबे स्मृति सम्मान (2001) रामवृक्ष बेनीपुरी जन्म शताब्दी सम्मान (2002), राष्ट्रभाषा रत्न सम्मान (2003), सुभद्राकुमारी चौहान जन्म शताब्दी सम्मान (2004) हिमोत्कर्ष हिमाचल श्री सम्मान (2004 05), पद्मश्री सोहन लाल द्विवेदी जन्म शताब्दी सम्मान (2005) आदि अनेक सम्मान प्राप्त हो चुके हैं । पत्रकारिता तथा संपादन से जुडे सुदर्शन भाटिया पूर्ब अधिशासी अभियन्ता (विद्युत) हैं तथा इन दिनों अनेक समाज सेवी तथा स्वयं सेवी संस्थाओ से भी जुडे हैं । सुदर्शन भाटिया ने हिमाचल के लेखको को प्रकाश में लाने के लिए एक लंबी लेखमाला इधर भी हैं शब्द लिखी जो धारावाहिक प्रकाशित हुई ।
पुस्तक महल से प्रकाशित लेखक की अन्य कृतियां हैं 1 शिशु पालन तथा मां के दायित्व 2 रोग पहचानें उनका उपचार जानें 3 भारत की प्रसिद्ध वीरांगनाएं । लेखक की यह चौथी पुस्तक हमारे ऋषि मुनि और संत महात्मा है ।
भूमिका
ऐसे हुई इस पुस्तक की रचना
ईश्वर की महान् सत्ता में पूरी तरह आस्था रखने वाले, धार्मिक परंपराओं को समर्पित, पूर्णत शाकाहारी परिवार से संबंधित होने के कारण हिंदू देवी देवताओं, संत महात्माओं, ऋषि मुनियों । में बाल्यकाल से रुचि बनी रही । गीताप्रेस, गोरखपुर की गाड़ी अनेकानेक धार्मिक पुस्तकों को लेकर विक्रय के लिए कभी कभी हमारे उपनगर में भी आया करती थी । चूंकि ये पुस्तकें सुंदर, सचित्र तथा बहुत सस्ती हुआ करतीं थीं, इसीलिए हम छह भाई बहन अपनी दो चार दिनों की पॉकेट मनी से ही कुछ लघु पुस्तकें खरीद लिया करते थे । हमारी माताजी बहुत अधिक पुस्तकें ले लेतीं थीं । इस प्रकार हमें घर में ही काफी धार्मिक साहित्य पढ़ने के लिए मिल जाता था । यह रुचि तबसे अब तक बनी है । मामाजी के घर आध्यात्मिक मासिक पत्रिका कल्याण नियमित आती थी । ग्रीष्म अवकाश में या जब भी समय होता, इन्हें पढ़ने का अवसर भी मिलता । पूर्वजों के बताए रास्ते पर चलने के लिए दृढ़संकल्प होना सरल हो जाता था ।
कुछ परिस्थितियों ऐसी बनीं कि विद्युत अभियंता होते हुए भी मुझे साहित्य सृजन का अवसर मिल गया । मूलरूप से कहानीकार हूँ बाकी बाद में । मेरी एक सौ से अधिक प्रकाशित पुस्तकों में अनेक पुरातन धार्मिक घटनाओं पर पचास से अधिक लंबी कहानियां भी प्रकाशित हो चुकी हैं । द्वापर दर्पण तथा त्रेता दर्पण दो पुस्तकें भी अनेक उलझनों को सुलझाने में योगदान कर रही हैं । सैकड़ों लघुकथाएं तथा प्रेरक प्रसंग, जो रामायण, महाभारत, उपनिषदों तथा पुराणों के प्रसंगों पर आधारित हैं, देशभर की तमाम पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं । अत धर्म तथा संस्कृति की ओर मेरा निरंतर झुकाव बना रहा है । जन, 2004 में जब मुझे पुस्तक महल के प्रबंध निदेशक जी से मिलने का अवसर मिला, तो बातों बातों में उन्होंने मेरी मन तथा क्षमता को भांपकर, हमारे ऋषि मुनि औरसंत महात्मा नाम की पुस्तक लिखने की प्रबल प्रेरणा दी । मैंने इसे अपना सौभाग्य समझा और इस बड़े प्रोजेक्ट को सहर्ष स्वीकार कर अपने को धन्य माना । दिन रात, प्रतिदिन 10 से 12 घंटे लगातार अध्ययन व लेखन में जुट गया । इसी का परिणाम है यह पवित्र पुस्तक ।
मैंने इस पुस्तक के लिए अनेक ग्रंथों का अवलोकन किया । कुछ विद्वानों से चर्चा की । जो मार्गदर्शन तथा मैटीरियल मुझे गीताप्रेस, गोरखपुर द्वारा प्रकाशित कल्याण के संत अंक तथा भक्त चरितांक से मिला, उसने भी मेरे लक्ष्य की प्राप्ति के लिए मार्ग प्रशस्त किया । अत मैं इस संस्था का हृदय से आभारी हूं । इसमें जिन महान् लेखकों, भक्तों व विचारकों ने विस्तृत जीवन चरित दिए गए हैं, उनका भी आभार व्यक्त करता हूं । लोगों के मन में धार्मिक भावनाओं को बढ़ावा देना, अधिक से अधिक लोगों तक अपने ऋषि मुनियों, संत महात्माओं की सही जानकारी पहुंचाना लक्ष्य है इस पुस्तक का ।
सुधी पाठकों से विनम्र निवेदन है कि इस लेखन में मेरी त्रुटियों की ओर ध्यान न देते हुए मुझे अबोध मानकर, इस प्रयास को स्वीकार करें । यदि कुछ कमियां अखरें तो उन्हें सुधारने में हमें सहयोग दें । आभारी हूं पुस्तक महल प्रकाशक का, जिन्होंने इस पुनीत कार्य को हाथ में लेकर इसे पूर्ण भी किया । परिणामस्वरूप आज यह पुस्तक आपके हाथों में है । गागर में सागर भरने का यह तुच्छ प्रयास स्वीकृत हो जाए, तो बड़ा हर्ष होगा । यदि पुस्तक का सीमित आकार रखना विवशता न होती, तो कुछ अधिक जानकारियां भी जोड़ी जा सकती थीं । भारत की पवित्र धरा पर कई हजार संत महात्मा हुए हैं, जिनमें से कुछ ही नाम प्रचलित हैं । इस पुस्तक के माध्यम से अन्य संतों को सम्मानित कर इस कमी को दूर करने का प्रयास किया गया है । पाठकों को साधुवाद ।
अनुक्रम |
||
ऐसे हुई इस पुस्तक की रचना |
5 |
|
ऋषि व मुनि कौन? |
9 |
|
संत के लक्षण तथा वर्तमान में संत की स्थिति |
11 |
|
(खण्ड अ) ऋषि और मुनि |
13 |
|
1 |
देवर्षि नारद |
15 |
2 |
महर्षि भृगु |
17 |
3 |
महर्षि ऋभु |
18 |
4 |
सप्तर्षि |
20 |
मरीचि ऋषि |
20 |
|
अत्रि ऋषि |
21 |
|
अंगिरा ऋषि |
22 |
|
पुलस्त्य ऋषि |
22 |
|
पुलह ऋषि |
23 |
|
क्रतु ऋषि |
23 |
|
वसिष्ठ ऋषि |
24 |
|
5 |
महर्षि कश्यप |
26 |
6 |
देवगुरु बृहस्पति |
27 |
7 |
असुर गुरु शुक्राचार्य |
28 |
8 |
महर्षि दत्तात्रेय |
30 |
9 |
ऋषि भरद्वाज |
31 |
10 |
ऋषि नर नारायण |
32 |
11 |
ऋषि व्चवन |
33 |
12 |
ब्रह्मर्षि विश्वामित्र |
34 |
13 |
ब्रह्मनिष्ठ याज्ञवल्क्य |
35 |
14 |
ऋषि शांडिल्य |
36 |
15 |
आचार्य वैशम्पायन |
37 |
16 |
ऋषि मार्कण्डेय |
38 |
17 |
महर्षि जमदग्नि |
40 |
18 |
ऋषि सौभरि |
41 |
19 |
ऋषि गौतम |
42 |
20 |
ऋषि अष्टावक्र |
44 |
21 |
महर्षि कपिल |
45 |
22 |
महर्षि अगस्त्य |
47 |
23 |
महर्षि पतंजलि |
49 |
24 |
महर्षि वेदव्यास |
50 |
25 |
मुनि शरमंग |
52 |
26 |
महर्षि वाल्मीकि |
53 |
27 |
महर्षि दधीचि |
55 |
28 |
ऋषि जरत्कारु |
56 |
29 |
मुनि शुकदेव |
57 |
30 |
ऋषि अणिमाण्डव्य |
59 |
31 |
महात्मा गोकर्ण |
61 |
32 |
ऋषभदेव |
63 |
33 |
ब्रह्मवादिनी सुलभा |
65 |
(खण्ड ब) संत और महात्मा |
67 |
|
34 |
मुनि नृसिंह |
69 |
35 |
संत गौड़पाद |
70 |
36 |
श्री विष्णुस्वामी |
71 |
37 |
श्री यामुनाचार्य |
72 |
38 |
श्री रामानुजाचार्य |
73 |
39 |
श्री शंकराचार्य |
75 |
40 |
श्री निम्बार्काचार्य |
77 |
41 |
श्री मध्वाचार्य |
78 |
42 |
श्री वल्लभाचार्य |
80 |
43 |
श्री चैतन्य महाप्रभु |
82 |
44 |
श्री रामानंदाचार्य |
84 |
45 |
महात्मा बुद्ध |
86 |
46 |
महात्मा कस्सप |
88 |
47 |
महर्षि मेतार्य |
90 |
48 |
श्री श्रीधर स्वामी |
91 |
49 |
भगवान् महावीर |
92 |
50 |
संत ज्ञानेश्वर |
94 |
51 |
संत नामदेव |
96 |
52 |
श्री चांगदेव |
98 |
53 |
संत रैदास |
99 |
54 |
संत कबीर |
100 |
55 |
कृष्णभक्त मीरा |
101 |
56 |
संत नरसी मेहता |
102 |
57 |
श्री मधुसूदन सरस्वती |
104 |
58 |
भक्त धन्नाजाट |
105 |
59 |
गोस्वामी तुलसीदास |
106 |
60 |
श्री भानुदास |
108 |
61 |
संत एकनाथ |
109 |
62 |
श्री गुरुनानक देव |
111 |
63 |
गुरु अंगददेव |
113 |
64 |
गुरु अमरदास |
115 |
65 |
गुरु रामदास |
117 |
66 |
गुरु अर्जुनदेव |
118 |
67 |
गुरु हरगोविंद |
120 |
68 |
गुरु हरिराय |
121 |
69 |
गुरु हरिकृष्ण |
122 |
70 |
गुरु तेगबहादुर |
123 |
71 |
गुरु गोविंद सिंह |
125 |
72 |
बाबा श्रीचंद्र |
127 |
73 |
भक्त सूरदास |
128 |
74 |
संत रज्जब |
130 |
75 |
श्री रामसनेही सम्प्रदाय के |
131 |
संत श्रीहरि रामदासजी |
131 |
|
श्री रामदासजी महाराज |
131 |
|
श्री दयालुदास जी महाराज |
131 |
|
76 |
संत सिंगा |
132 |
77 |
बाबा कीनाराम अघोरी |
133 |
78 |
बाबा धरनीदास |
135 |
79 |
श्री वासुदेवानन्द सरस्वती |
136 |
80 |
संत तुकाराम |
137 |
81 |
समर्थ गुरु रामदास |
139 |
82 |
संत दादूदयाल |
141 |
हमारा देश ऋषियों मुनियों व संत महात्मा
हमारा देश ऋषियों मुनियों व संत महात्माओं का देश है, जिन्होंने अपने तप पूत ज्ञान से न केवल आध्यात्मिक शक्ति की ज्योति जलाई अपितु अपने श्रेष्ठ मर्यादित शील, आचरण, अहिंसा, सत्य, परोपकार, त्याग, ईश्वरभक्ति आदि के द्वारा समस्त मानव जाति के समक्ष जीवन जीने का एक अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत किया।
इन्हीं के बताए मार्ग पर चलकर, उसका आचरण करके भारत किसी समय ज्ञान विज्ञान, भक्ति और समृद्धि के चरम शिखर तक पहुंचा था। इस देश में इतने ऋषि मुनि और संत महात्मा हुए हैं कि उनका नाम गिनाना संभव नहीं है। कौन कितना बड़ा और श्रेष्ठ था, इसका मूल्यांकन करना भी संभव नहीं है।
प्रस्तुत पुस्तक में कुछ चुने हुए ऋषियों मुनियों और संत महात्माओं के बारे में संक्षेप में वर्णन किया गया है, जिन्होंने समाज को एक नयी दिशा दी, उसका मार्गदर्शन किया। पुस्तक के आरंभ में ऋषि मुनि और संत महात्मा शब्दों की व्याख्या भी दी गयी है, जिसे पढ़कर पाठक उनका अर्थ समझकर लाभान्वित होंगे। यह पुस्तक हमारे ऋषि मुनि और संत महात्मा ज्ञान पिपासुओं के लिए लाभकारी और पठनीय तो है ही, संग्रहणीय भी है।
लेखक का परिचय
65 वर्षीय सुदर्शन भाटिया की विभिन्न विषयों पर सवा सौ से अधिक पुस्तके तथा देश भर की 270 पत्र पत्रिकाओं में तीन हजार से अधिक रचनाए प्रकाशित हो चुकी हैं । हिन्दी साहित्य जगत् में भली प्रकार परिचित सुदर्शन भाटिया को हिमाचल केसरी अवार्ड (1997), आचार्य की मानद उपाधि (1999), हिम साहित्य परिषद का राज्य स्तरीय सम्मान (1999), साहित्य श्री सम्मान (2000), बीसवीं शताब्दी रत्न सम्मान (2000) पद्मश्री डी लक्ष्मी नारायण दुबे स्मृति सम्मान (2001) रामवृक्ष बेनीपुरी जन्म शताब्दी सम्मान (2002), राष्ट्रभाषा रत्न सम्मान (2003), सुभद्राकुमारी चौहान जन्म शताब्दी सम्मान (2004) हिमोत्कर्ष हिमाचल श्री सम्मान (2004 05), पद्मश्री सोहन लाल द्विवेदी जन्म शताब्दी सम्मान (2005) आदि अनेक सम्मान प्राप्त हो चुके हैं । पत्रकारिता तथा संपादन से जुडे सुदर्शन भाटिया पूर्ब अधिशासी अभियन्ता (विद्युत) हैं तथा इन दिनों अनेक समाज सेवी तथा स्वयं सेवी संस्थाओ से भी जुडे हैं । सुदर्शन भाटिया ने हिमाचल के लेखको को प्रकाश में लाने के लिए एक लंबी लेखमाला इधर भी हैं शब्द लिखी जो धारावाहिक प्रकाशित हुई ।
पुस्तक महल से प्रकाशित लेखक की अन्य कृतियां हैं 1 शिशु पालन तथा मां के दायित्व 2 रोग पहचानें उनका उपचार जानें 3 भारत की प्रसिद्ध वीरांगनाएं । लेखक की यह चौथी पुस्तक हमारे ऋषि मुनि और संत महात्मा है ।
भूमिका
ऐसे हुई इस पुस्तक की रचना
ईश्वर की महान् सत्ता में पूरी तरह आस्था रखने वाले, धार्मिक परंपराओं को समर्पित, पूर्णत शाकाहारी परिवार से संबंधित होने के कारण हिंदू देवी देवताओं, संत महात्माओं, ऋषि मुनियों । में बाल्यकाल से रुचि बनी रही । गीताप्रेस, गोरखपुर की गाड़ी अनेकानेक धार्मिक पुस्तकों को लेकर विक्रय के लिए कभी कभी हमारे उपनगर में भी आया करती थी । चूंकि ये पुस्तकें सुंदर, सचित्र तथा बहुत सस्ती हुआ करतीं थीं, इसीलिए हम छह भाई बहन अपनी दो चार दिनों की पॉकेट मनी से ही कुछ लघु पुस्तकें खरीद लिया करते थे । हमारी माताजी बहुत अधिक पुस्तकें ले लेतीं थीं । इस प्रकार हमें घर में ही काफी धार्मिक साहित्य पढ़ने के लिए मिल जाता था । यह रुचि तबसे अब तक बनी है । मामाजी के घर आध्यात्मिक मासिक पत्रिका कल्याण नियमित आती थी । ग्रीष्म अवकाश में या जब भी समय होता, इन्हें पढ़ने का अवसर भी मिलता । पूर्वजों के बताए रास्ते पर चलने के लिए दृढ़संकल्प होना सरल हो जाता था ।
कुछ परिस्थितियों ऐसी बनीं कि विद्युत अभियंता होते हुए भी मुझे साहित्य सृजन का अवसर मिल गया । मूलरूप से कहानीकार हूँ बाकी बाद में । मेरी एक सौ से अधिक प्रकाशित पुस्तकों में अनेक पुरातन धार्मिक घटनाओं पर पचास से अधिक लंबी कहानियां भी प्रकाशित हो चुकी हैं । द्वापर दर्पण तथा त्रेता दर्पण दो पुस्तकें भी अनेक उलझनों को सुलझाने में योगदान कर रही हैं । सैकड़ों लघुकथाएं तथा प्रेरक प्रसंग, जो रामायण, महाभारत, उपनिषदों तथा पुराणों के प्रसंगों पर आधारित हैं, देशभर की तमाम पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं । अत धर्म तथा संस्कृति की ओर मेरा निरंतर झुकाव बना रहा है । जन, 2004 में जब मुझे पुस्तक महल के प्रबंध निदेशक जी से मिलने का अवसर मिला, तो बातों बातों में उन्होंने मेरी मन तथा क्षमता को भांपकर, हमारे ऋषि मुनि औरसंत महात्मा नाम की पुस्तक लिखने की प्रबल प्रेरणा दी । मैंने इसे अपना सौभाग्य समझा और इस बड़े प्रोजेक्ट को सहर्ष स्वीकार कर अपने को धन्य माना । दिन रात, प्रतिदिन 10 से 12 घंटे लगातार अध्ययन व लेखन में जुट गया । इसी का परिणाम है यह पवित्र पुस्तक ।
मैंने इस पुस्तक के लिए अनेक ग्रंथों का अवलोकन किया । कुछ विद्वानों से चर्चा की । जो मार्गदर्शन तथा मैटीरियल मुझे गीताप्रेस, गोरखपुर द्वारा प्रकाशित कल्याण के संत अंक तथा भक्त चरितांक से मिला, उसने भी मेरे लक्ष्य की प्राप्ति के लिए मार्ग प्रशस्त किया । अत मैं इस संस्था का हृदय से आभारी हूं । इसमें जिन महान् लेखकों, भक्तों व विचारकों ने विस्तृत जीवन चरित दिए गए हैं, उनका भी आभार व्यक्त करता हूं । लोगों के मन में धार्मिक भावनाओं को बढ़ावा देना, अधिक से अधिक लोगों तक अपने ऋषि मुनियों, संत महात्माओं की सही जानकारी पहुंचाना लक्ष्य है इस पुस्तक का ।
सुधी पाठकों से विनम्र निवेदन है कि इस लेखन में मेरी त्रुटियों की ओर ध्यान न देते हुए मुझे अबोध मानकर, इस प्रयास को स्वीकार करें । यदि कुछ कमियां अखरें तो उन्हें सुधारने में हमें सहयोग दें । आभारी हूं पुस्तक महल प्रकाशक का, जिन्होंने इस पुनीत कार्य को हाथ में लेकर इसे पूर्ण भी किया । परिणामस्वरूप आज यह पुस्तक आपके हाथों में है । गागर में सागर भरने का यह तुच्छ प्रयास स्वीकृत हो जाए, तो बड़ा हर्ष होगा । यदि पुस्तक का सीमित आकार रखना विवशता न होती, तो कुछ अधिक जानकारियां भी जोड़ी जा सकती थीं । भारत की पवित्र धरा पर कई हजार संत महात्मा हुए हैं, जिनमें से कुछ ही नाम प्रचलित हैं । इस पुस्तक के माध्यम से अन्य संतों को सम्मानित कर इस कमी को दूर करने का प्रयास किया गया है । पाठकों को साधुवाद ।
अनुक्रम |
||
ऐसे हुई इस पुस्तक की रचना |
5 |
|
ऋषि व मुनि कौन? |
9 |
|
संत के लक्षण तथा वर्तमान में संत की स्थिति |
11 |
|
(खण्ड अ) ऋषि और मुनि |
13 |
|
1 |
देवर्षि नारद |
15 |
2 |
महर्षि भृगु |
17 |
3 |
महर्षि ऋभु |
18 |
4 |
सप्तर्षि |
20 |
मरीचि ऋषि |
20 |
|
अत्रि ऋषि |
21 |
|
अंगिरा ऋषि |
22 |
|
पुलस्त्य ऋषि |
22 |
|
पुलह ऋषि |
23 |
|
क्रतु ऋषि |
23 |
|
वसिष्ठ ऋषि |
24 |
|
5 |
महर्षि कश्यप |
26 |
6 |
देवगुरु बृहस्पति |
27 |
7 |
असुर गुरु शुक्राचार्य |
28 |
8 |
महर्षि दत्तात्रेय |
30 |
9 |
ऋषि भरद्वाज |
31 |
10 |
ऋषि नर नारायण |
32 |
11 |
ऋषि व्चवन |
33 |
12 |
ब्रह्मर्षि विश्वामित्र |
34 |
13 |
ब्रह्मनिष्ठ याज्ञवल्क्य |
35 |
14 |
ऋषि शांडिल्य |
36 |
15 |
आचार्य वैशम्पायन |
37 |
16 |
ऋषि मार्कण्डेय |
38 |
17 |
महर्षि जमदग्नि |
40 |
18 |
ऋषि सौभरि |
41 |
19 |
ऋषि गौतम |
42 |
20 |
ऋषि अष्टावक्र |
44 |
21 |
महर्षि कपिल |
45 |
22 |
महर्षि अगस्त्य |
47 |
23 |
महर्षि पतंजलि |
49 |
24 |
महर्षि वेदव्यास |
50 |
25 |
मुनि शरमंग |
52 |
26 |
महर्षि वाल्मीकि |
53 |
27 |
महर्षि दधीचि |
55 |
28 |
ऋषि जरत्कारु |
56 |
29 |
मुनि शुकदेव |
57 |
30 |
ऋषि अणिमाण्डव्य |
59 |
31 |
महात्मा गोकर्ण |
61 |
32 |
ऋषभदेव |
63 |
33 |
ब्रह्मवादिनी सुलभा |
65 |
(खण्ड ब) संत और महात्मा |
67 |
|
34 |
मुनि नृसिंह |
69 |
35 |
संत गौड़पाद |
70 |
36 |
श्री विष्णुस्वामी |
71 |
37 |
श्री यामुनाचार्य |
72 |
38 |
श्री रामानुजाचार्य |
73 |
39 |
श्री शंकराचार्य |
75 |
40 |
श्री निम्बार्काचार्य |
77 |
41 |
श्री मध्वाचार्य |
78 |
42 |
श्री वल्लभाचार्य |
80 |
43 |
श्री चैतन्य महाप्रभु |
82 |
44 |
श्री रामानंदाचार्य |
84 |
45 |
महात्मा बुद्ध |
86 |
46 |
महात्मा कस्सप |
88 |
47 |
महर्षि मेतार्य |
90 |
48 |
श्री श्रीधर स्वामी |
91 |
49 |
भगवान् महावीर |
92 |
50 |
संत ज्ञानेश्वर |
94 |
51 |
संत नामदेव |
96 |
52 |
श्री चांगदेव |
98 |
53 |
संत रैदास |
99 |
54 |
संत कबीर |
100 |
55 |
कृष्णभक्त मीरा |
101 |
56 |
संत नरसी मेहता |
102 |
57 |
श्री मधुसूदन सरस्वती |
104 |
58 |
भक्त धन्नाजाट |
105 |
59 |
गोस्वामी तुलसीदास |
106 |
60 |
श्री भानुदास |
108 |
61 |
संत एकनाथ |
109 |
62 |
श्री गुरुनानक देव |
111 |
63 |
गुरु अंगददेव |
113 |
64 |
गुरु अमरदास |
115 |
65 |
गुरु रामदास |
117 |
66 |
गुरु अर्जुनदेव |
118 |
67 |
गुरु हरगोविंद |
120 |
68 |
गुरु हरिराय |
121 |
69 |
गुरु हरिकृष्ण |
122 |
70 |
गुरु तेगबहादुर |
123 |
71 |
गुरु गोविंद सिंह |
125 |
72 |
बाबा श्रीचंद्र |
127 |
73 |
भक्त सूरदास |
128 |
74 |
संत रज्जब |
130 |
75 |
श्री रामसनेही सम्प्रदाय के |
131 |
संत श्रीहरि रामदासजी |
131 |
|
श्री रामदासजी महाराज |
131 |
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श्री दयालुदास जी महाराज |
131 |
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76 |
संत सिंगा |
132 |
77 |
बाबा कीनाराम अघोरी |
133 |
78 |
बाबा धरनीदास |
135 |
79 |
श्री वासुदेवानन्द सरस्वती |
136 |
80 |
संत तुकाराम |
137 |
81 |
समर्थ गुरु रामदास |
139 |
82 |
संत दादूदयाल |
141 |