पुस्तक के विषय में
जन्म से लेकर परिनिर्वाण-प्राप्ति तक की यात्रा के दौरान भगवान बुद्ध का भारत के जिन प्रमुख स्थानों से संबंध रहा, उनके बारे में जानकारी उपलव्य कराना इस पुस्तक का मुख्य उद्देश्य है । प्रयास किया गया है कि महत्वपूर्ण बौद्ध स्थलों के बारे में व्यवस्थित, तथ्यात्मक, संदर्भ-आधारित जानकारी सरल और आम-जन की भाषा में सुलभ हो सके ।
लेखक-द्वय ने इन तेरह स्थलों की यात्रा करके उपलब्ध साक्ष्यों और जानकारियों के आधार पर यह पुस्तक तैयार की है । उन स्थलों पर बुद्ध के समय और उसके बाद के निर्माण-कार्यो के पुरातात्विक अवशेषों को एक कथा-सूत्र में पिरोया है।
दिल्ली विश्वविद्यालय में बौद्ध अध्ययन के विभागाध्यक्ष रहे विद्वान प्रोफेसर संघसेन सिंह और डॉ. प्रियसेन सिंह ने इस विषय पर पत्र-पत्रिकाओं में अनेक लेख और रेडियो-दूरदर्शन के लिए वार्ताएं लिखी हैं।
प्राक्कथन
हमने पत्र-पत्रिकाओं में लेख, रेडियो-दूरदर्शन वार्ताओं के संबंध में बौद्ध धर्म से संबंधित विविध विषयों पर अनेक लेख व वार्ताएं लिखी हैं। इस सिलसिले में अनेक पुस्तकों के अवलोकन का अवसर मिला। उनसे सामग्री व संदर्भ एकत्र किए और उनका लेखों, वार्ताओं में उपयोग किया । इस संबंध में सबसे आश्चर्य की बात यह लगी कि आज तक बौद्ध तीर्थ स्थलों पर कोई भी हिन्दी पुस्तक उपलब्ध नहीं है। पुरातत्व विभाग ने कुछ छोटी-छोटी पुस्तिकाएं छाप रखी हैं किन्तु इन सबसे हिन्दी पाठकों का कार्य नहीं चलता। उनके ज्ञान व कौतूहल की तृप्ति इन पुस्तिकाओं से नहीं होती। ऐसी स्थिति में यह विचार आया कि हमें ऐसी पुस्तक तैयार करनी चाहिए जो पाठकों के लिए ज्ञानवर्द्धक, सूचनापरक हो और सैलानियों व तीर्थ यात्रियों के लिए गाइड-बुक तथा छात्रों के लिए सहायक ग्रंथ का कार्य करे। इस उद्देश्य को ध्यान में रखकर हमने यह पुस्तक तैयार की है। इस प्रकार इस एक ही पुस्तक से कई प्रयोजन सिद्ध हो सकते हैं।
इस पुस्तक को तैयार करने में हमने दो विधियों का उपयोग किया है । एक तो पुस्तकों, पत्र-पत्रिकाओं इत्यादि से सहायता ली है जैसा कि ऊपर निर्देश हो चुका है और दूसरे स्वयं उन स्थानों की यात्रा करके दर्शनीय स्थलों का अलग- अलग निरीक्षण आदि करके अपनी राय व्यक्त की है । इस प्रकार हमारा प्रयास अंग्रेजी में तैयार की गई अन्य पुस्तकों से भिन्न सिद्ध होगा।
पुस्तक में सरल और सुबोध भाषा का प्रयोग किया गया है। अप्रचलित व जबड़ा-तोड़ संस्कृत पदों से बचने का प्रयास किया गया है। इस संबंध में उद्देश्य यही रहा है कि हम सरलता से अपने प्रिय पाठकों तक पहुंच सकें और हमारी बात वे उसी अर्थ में ग्रहण कर सकें जिस अर्थ में हमने उन्हें व्यक्त किया है। इस संबंध में संस्कृत, अरबी, फारसी के शब्दों का जहां कहीं भी प्रयोग हुआ है उन्हें प्रचलित उच्चारण के रूप में ही प्रयोग किया गया है। इस प्रकार कहीं-कहीं संस्कृत, अरबी और फारसी की वर्तनी में भेद भी हो सकता है।
इस पुस्तक को तैयार करने में जिन महानुभावों ने हमें प्रेरणा व सहयोग दिया है उनके प्रति आभार व्यक्त करना हमारा परम कर्त्तव्य है। इस संबंध में सबसे पहले नाम श्रद्धेय भिक्षु विजितधम्म और श्रीमती बोधि श्री के आते हैं जिन्होंने हमें ऐसे लेख लिखने का अवसर प्रदान किया और प्रोत्साहन दिया । हम आभारी हैं अपने सभी मित्रों तथा परिवारजनों के प्रति जिनकी सहायता के बिना यह कार्य कभी पूरा नहीं हो पाता ।
विषय-सूची |
||
1 |
लुंबिनी |
1 |
2 |
बोध-गया |
8 |
3 |
सारनाथ |
18 |
4 |
कुशीनगर |
27 |
5 |
सांकाश्य |
37 |
6 |
वैशाली |
43 |
7 |
श्रावस्ती |
49 |
8 |
राजगीर |
59 |
9 |
नालंदा |
68 |
10 |
सांची |
74 |
11 |
कौशांबी |
84 |
12 |
अमरावती |
89 |
13 |
नागार्जुनकोंडा |
96 |
सहायकग्रंथ-सूची |
102 |
पुस्तक के विषय में
जन्म से लेकर परिनिर्वाण-प्राप्ति तक की यात्रा के दौरान भगवान बुद्ध का भारत के जिन प्रमुख स्थानों से संबंध रहा, उनके बारे में जानकारी उपलव्य कराना इस पुस्तक का मुख्य उद्देश्य है । प्रयास किया गया है कि महत्वपूर्ण बौद्ध स्थलों के बारे में व्यवस्थित, तथ्यात्मक, संदर्भ-आधारित जानकारी सरल और आम-जन की भाषा में सुलभ हो सके ।
लेखक-द्वय ने इन तेरह स्थलों की यात्रा करके उपलब्ध साक्ष्यों और जानकारियों के आधार पर यह पुस्तक तैयार की है । उन स्थलों पर बुद्ध के समय और उसके बाद के निर्माण-कार्यो के पुरातात्विक अवशेषों को एक कथा-सूत्र में पिरोया है।
दिल्ली विश्वविद्यालय में बौद्ध अध्ययन के विभागाध्यक्ष रहे विद्वान प्रोफेसर संघसेन सिंह और डॉ. प्रियसेन सिंह ने इस विषय पर पत्र-पत्रिकाओं में अनेक लेख और रेडियो-दूरदर्शन के लिए वार्ताएं लिखी हैं।
प्राक्कथन
हमने पत्र-पत्रिकाओं में लेख, रेडियो-दूरदर्शन वार्ताओं के संबंध में बौद्ध धर्म से संबंधित विविध विषयों पर अनेक लेख व वार्ताएं लिखी हैं। इस सिलसिले में अनेक पुस्तकों के अवलोकन का अवसर मिला। उनसे सामग्री व संदर्भ एकत्र किए और उनका लेखों, वार्ताओं में उपयोग किया । इस संबंध में सबसे आश्चर्य की बात यह लगी कि आज तक बौद्ध तीर्थ स्थलों पर कोई भी हिन्दी पुस्तक उपलब्ध नहीं है। पुरातत्व विभाग ने कुछ छोटी-छोटी पुस्तिकाएं छाप रखी हैं किन्तु इन सबसे हिन्दी पाठकों का कार्य नहीं चलता। उनके ज्ञान व कौतूहल की तृप्ति इन पुस्तिकाओं से नहीं होती। ऐसी स्थिति में यह विचार आया कि हमें ऐसी पुस्तक तैयार करनी चाहिए जो पाठकों के लिए ज्ञानवर्द्धक, सूचनापरक हो और सैलानियों व तीर्थ यात्रियों के लिए गाइड-बुक तथा छात्रों के लिए सहायक ग्रंथ का कार्य करे। इस उद्देश्य को ध्यान में रखकर हमने यह पुस्तक तैयार की है। इस प्रकार इस एक ही पुस्तक से कई प्रयोजन सिद्ध हो सकते हैं।
इस पुस्तक को तैयार करने में हमने दो विधियों का उपयोग किया है । एक तो पुस्तकों, पत्र-पत्रिकाओं इत्यादि से सहायता ली है जैसा कि ऊपर निर्देश हो चुका है और दूसरे स्वयं उन स्थानों की यात्रा करके दर्शनीय स्थलों का अलग- अलग निरीक्षण आदि करके अपनी राय व्यक्त की है । इस प्रकार हमारा प्रयास अंग्रेजी में तैयार की गई अन्य पुस्तकों से भिन्न सिद्ध होगा।
पुस्तक में सरल और सुबोध भाषा का प्रयोग किया गया है। अप्रचलित व जबड़ा-तोड़ संस्कृत पदों से बचने का प्रयास किया गया है। इस संबंध में उद्देश्य यही रहा है कि हम सरलता से अपने प्रिय पाठकों तक पहुंच सकें और हमारी बात वे उसी अर्थ में ग्रहण कर सकें जिस अर्थ में हमने उन्हें व्यक्त किया है। इस संबंध में संस्कृत, अरबी, फारसी के शब्दों का जहां कहीं भी प्रयोग हुआ है उन्हें प्रचलित उच्चारण के रूप में ही प्रयोग किया गया है। इस प्रकार कहीं-कहीं संस्कृत, अरबी और फारसी की वर्तनी में भेद भी हो सकता है।
इस पुस्तक को तैयार करने में जिन महानुभावों ने हमें प्रेरणा व सहयोग दिया है उनके प्रति आभार व्यक्त करना हमारा परम कर्त्तव्य है। इस संबंध में सबसे पहले नाम श्रद्धेय भिक्षु विजितधम्म और श्रीमती बोधि श्री के आते हैं जिन्होंने हमें ऐसे लेख लिखने का अवसर प्रदान किया और प्रोत्साहन दिया । हम आभारी हैं अपने सभी मित्रों तथा परिवारजनों के प्रति जिनकी सहायता के बिना यह कार्य कभी पूरा नहीं हो पाता ।
विषय-सूची |
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1 |
लुंबिनी |
1 |
2 |
बोध-गया |
8 |
3 |
सारनाथ |
18 |
4 |
कुशीनगर |
27 |
5 |
सांकाश्य |
37 |
6 |
वैशाली |
43 |
7 |
श्रावस्ती |
49 |
8 |
राजगीर |
59 |
9 |
नालंदा |
68 |
10 |
सांची |
74 |
11 |
कौशांबी |
84 |
12 |
अमरावती |
89 |
13 |
नागार्जुनकोंडा |
96 |
सहायकग्रंथ-सूची |
102 |