पुस्तक के विषय में
गरूड़ जी के सवाल
श्रीमद्भागवत, ज्ञान कथा और लोकमंगलकारी रामचरित कथा के प्रवचन में समान अधिकार रखने वाले युवा श्री किरीट 'भाई जी' का जन्म 21 जुलाई सन् 1962 को पोरबंदर (गुजरात) में हुआ। उन्होंने आत्मज्ञान और ज्ञान के लोक विकास के लिए सात वर्ष की आयु में वल्लभकुल गोस्वामी श्री गोविन्द रायजी (गुरुजी) महाराज से दीक्षा प्राप्त की। दीक्षा प्राप्त करने के तुरंत बाद इंगलैंड निवासी हुए और वहां जीविका के लिए निमित्त चार्टर्ड एकाउंटेंसी में डिग्री प्राप्त की।
'भाई जी' का लंदन आना विश्व के धर्मशील व्यक्तियों के लिए उस समय वरदान सिद्ध हुआ, जब 1987 में हुनमान जयंती के अवसर पर आपने कथा प्रवचन प्रारंभ किया। लंदन में इस कथा प्रवचन से भक्तों को एक नया प्रकाश मिला और उसके बाद विभिन्न रूपों में मारीशस, दक्षिण अफ्रीका (डर्बन), पाकिस्तान, कीनिया, इटली, हालैंड आदि स्थानों पर मधुर और अगाथ ज्ञानयुक्त कथा प्रवचन से वर्तमान जीवन की विसंगतियों से युक्त मनुष्य को धर्मशीलता का मार्ग दिखाया।
पूज्य किरीट भाई भक्तिभाव का एक ऐसा सागर है, जिसका कोई किनारा नहीं, उसकी लहर री रसामृत का पान कराने के लिए गतिमान होती है और उसकी लहर ही प्राप्ति के किनारे का आभास कराती है।
पुस्तक के विषय में
गरूड़ जी के सवाल
श्रीमद्भागवत, ज्ञान कथा और लोकमंगलकारी रामचरित कथा के प्रवचन में समान अधिकार रखने वाले युवा श्री किरीट 'भाई जी' का जन्म 21 जुलाई सन् 1962 को पोरबंदर (गुजरात) में हुआ। उन्होंने आत्मज्ञान और ज्ञान के लोक विकास के लिए सात वर्ष की आयु में वल्लभकुल गोस्वामी श्री गोविन्द रायजी (गुरुजी) महाराज से दीक्षा प्राप्त की। दीक्षा प्राप्त करने के तुरंत बाद इंगलैंड निवासी हुए और वहां जीविका के लिए निमित्त चार्टर्ड एकाउंटेंसी में डिग्री प्राप्त की।
'भाई जी' का लंदन आना विश्व के धर्मशील व्यक्तियों के लिए उस समय वरदान सिद्ध हुआ, जब 1987 में हुनमान जयंती के अवसर पर आपने कथा प्रवचन प्रारंभ किया। लंदन में इस कथा प्रवचन से भक्तों को एक नया प्रकाश मिला और उसके बाद विभिन्न रूपों में मारीशस, दक्षिण अफ्रीका (डर्बन), पाकिस्तान, कीनिया, इटली, हालैंड आदि स्थानों पर मधुर और अगाथ ज्ञानयुक्त कथा प्रवचन से वर्तमान जीवन की विसंगतियों से युक्त मनुष्य को धर्मशीलता का मार्ग दिखाया।
पूज्य किरीट भाई भक्तिभाव का एक ऐसा सागर है, जिसका कोई किनारा नहीं, उसकी लहर री रसामृत का पान कराने के लिए गतिमान होती है और उसकी लहर ही प्राप्ति के किनारे का आभास कराती है।