पुस्तक के विषय में
मानव योनि, मनुष्य के लिए ईश्वर का सब से सुंदर वरदान है। यदि एैसा है तो यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि एक संत का जीवन पूरी मानव जाति के लिए ईश्वर की सब से उमदा भेंट है; क्योंकि एैसे जीवन से प्रेम, शांति, विश्वास तथा कृपा की वह अनंत धारा बहती है जो हमें इस दुख भरे संसार में राहत और सहारा देती है। संतो के जीवन में प्रेम का वो जादू होता है कि उन के स्पर्श मात्र से ही हमारे हृदय और जीवन में परिवर्तन आ जाता है उन के पास वो शक्ति होती है जिस से वे साधारण लोगों को पाक और साफ बना कर ऊँचा उठा लेते हैं।
साधु वासवानी: उनका जीवनी और शिक्षाएं! आधुनिक काल के महान् संत साधु वासवानी की जीवनी है । इस जीवन की विशेषता यह है कि यह सीधी उन के महान शिष्य और उत्तराधिकारी दादा जे० पी० वासवानी की मधुर यादों से निकली है। इसलिए यह पुस्तक दोहरे आशीर्वाद से भरी है।
स्वर्ग इंतज़ार कर लेगा
साधु वासवाणीजी को कभी स्वर्ग के सुखों की चाह नहीं थी । उनकी, मुक्ति, मोक्ष, या जन्म मरण के चक्रों से मुक्त होने की कोई कामना नहीं किसीने उनसे जब पूछा था:- क्या मुक्ति से भी बढ़ कर कुछ और है? वे बोले :- मुझे मुक्ति नहीं चाहिए। मैं तो फिर फिर जन्म लेना चाहता हूँ ताकि दु:खियों और दर्द से कराहते लोगों के कुछ काम आ सकूँ । साधु वासवाणी हमें हमेशा उस संत की याद दिलाया करते हैं जिसने ईश्वरीय स्नेह के कारण मानवता की सेवा करने का व्रत ले लिया था। उनका जीवन सादगी और नि:स्वार्थ सेवा का उदाहरण था । वे असाधारण कार्यों को भी असाधारण बना देते थे।
उनका जीवन ऐसे ही स्नेहपूर्ण कार्यों के उदाहरणों से भरा हुआ है। उनके जीवन का दर्शन बहुत सरल था। प्रसन्नता प्राप्त करने की उनकी विधि थी :- पहले दूसरों को प्रसन्न करो, तो तुम स्वयं प्रसन्न हो जाओगे। उनका संपूर्ण जीवन साक्षी है कि ईश्वर स्वयं उनके रूप में मानव स्वरूप धारण करके आये थे।
आज भी उनके चित्र हमें नई प्रेरणा से भर देते हैं । उनकी आत्मीय पवित्र रोशनी हमें दिव्य आशाओं से भर देती है। वे मनुष्य के रूप में स्वयं ईश्वर थे।
दादा. जे. पी. वासवानी के सादी के संस्मरण, उनके गुरू के चरनों में ऐसे श्रद्धा सुभन हैं जो लाखों दिलों को इसकी पवित्र सुगंध से महकायेगें।
विषय सूची |
||
1 |
मुझे दादा कहो |
1 |
2 |
क्या वह मेरा भाई नहीं है? |
4 |
3 |
उठ जाग मुसाफिर भोर भई! |
5 |
4 |
चल अकेला |
6 |
5 |
भाग्यवान परिवार |
7 |
6 |
सब के प्रति करुणा |
13 |
7 |
अपहरण |
14 |
8 |
जैसी करनी वैसी भरनी |
15 |
9 |
शिवरात्री का मेला |
16 |
10 |
गुरू नानक की भक्ति |
17 |
11 |
मैं भूखा रहूंगा |
19 |
12 |
दृढ़ता का परिचय |
21 |
13 |
अपने दिल के दाग कैसे धोऊंगा? |
22 |
14 |
प्रथम संयोग |
23 |
15 |
प्रार्थना की शक्ति |
24 |
16 |
दृढ़ संकल्प |
25 |
17 |
एक नया अभियान |
26 |
18 |
गुरू का आदर |
28 |
19 |
आदर्श विद्यार्थी |
29 |
20 |
नज़रबंद |
30 |
21 |
सच्चाई पहले, दर्जा पीछे |
32 |
22 |
पितृशोक |
33 |
23 |
गरीब के दर्द में पूरी रात बेचैन रहे |
34 |
24 |
गुरू का प्रभाव |
35 |
25 |
अग्नि परीक्षा |
37 |
26 |
एक कुशल वक्ता का उदय |
39 |
27 |
एक विलक्षण विद्यार्थी |
41 |
28 |
तरुण प्रोफेसर |
43 |
29 |
ब्रह्मचर्य व्रत की प्रतिज्ञा |
44 |
30 |
माँ के सपने |
46 |
31 |
मैं एक पथिक हूँ |
48 |
32 |
दक्षिणेश्वर मंदिर में दिन अनुभूति |
49 |
33 |
गुरू के श्री चरणों में |
51 |
34 |
प्रोफेसर अब शिष्य बना |
53 |
35 |
तिलक का कलकत्ता में आगमन |
55 |
36 |
प्रतापचंद्र मुज़मदर का प्रभाव |
57 |
37 |
रविन्द्रनाथ टैगोर के साथ |
59 |
38 |
अल्लाह का आसरा |
61 |
39 |
छुटकारा |
62 |
40 |
सच्चा आनंद |
65 |
41 |
कराची का फायदा |
67 |
42 |
एक विशेष आमंत्रण |
68 |
43 |
चट्टान की तरह दृढ़ |
69 |
44 |
दूसरी प्रतिज्ञा |
71 |
45 |
मैं आप के पास आत्मा का प्राचीन संदेश लाया हूं |
73 |
46 |
एक क्रांतिकारी मशाल |
75 |
47 |
एकता से निर्माण |
77 |
48 |
उद्दोष |
79 |
49 |
धर्म का रहस्य |
81 |
50 |
स्वयं को समर्पित करो |
82 |
51 |
विश्वास की जीत |
84 |
52 |
अहंकार से मुक्ति |
85 |
53 |
बहुत अच्छा |
86 |
54 |
माँ ने मांगी मच्छली |
87 |
55 |
माँ क्या मैं आपका सेवक नहीं हूँ? |
90 |
56 |
कूच बिहार और पटियाला में |
92 |
57 |
प्रिंसिपल का यात्रा भत्ता |
95 |
58 |
माता की अंतिम सेवा |
96 |
59 |
मुक्ताकाश |
98 |
60 |
भिक्षु वासवानी |
100 |
61 |
एक अलौकिक देश भक्त |
101 |
62 |
नव भारत के शिल्पी |
103 |
63 |
एक फकीर की दूर दृष्टि |
105 |
64 |
युवा केंद्र |
108 |
65 |
शक्ति आश्रम |
109 |
66 |
शादी का प्रस्ताव |
112 |
67 |
सखी सत्संग |
114 |
68 |
एक अलौकिक शिष्या |
119 |
69 |
अप्रत्यक्ष ईश्वर में छिपा जीवन |
125 |
70 |
उच्च आदर्श |
129 |
71 |
भाग्यशाली समय |
130 |
72 |
अछूतों की सेवा ही ईश्वर की सेवा है |
131 |
73 |
मीरा आदोलन का जन्म |
133 |
74 |
आत्मा के गीत |
140 |
75 |
मीरा की समाधि पर |
143 |
76 |
एक विशेष मेहमान |
145 |
77 |
एमरेल्ड द्वीप पर |
147 |
78 |
अनुराधापुर और कोलंबो में |
149 |
79 |
नये विश्व में नारी का स्थान |
151 |
80 |
सखी भंडार |
153 |
81 |
मित्र चिंतक और मार्ग दर्शक |
155 |
82 |
आपका सामान कहाँ है? |
157 |
83 |
मुखिया की समस्या |
159 |
84 |
बोझ उठाने वाला |
160 |
85 |
अपराधियों के बीच |
161 |
86 |
गणतंत्र अमर रहे |
163 |
87 |
मुझ पर दया करो |
164 |
88 |
सत्य की राह |
165 |
89 |
अकेली डगर |
167 |
90 |
वे सब को क्षमा करते थे |
168 |
91 |
आज का पापी कल संत भी हो सकता है |
170 |
92 |
फोटो एक धोखा |
172 |
93 |
प्रेम करना उनका स्वभाव था |
174 |
94 |
मुझे लगा मैं माँ हूँ |
176 |
95 |
एक स्वीकृति |
178 |
96 |
सब से गहरी वेदना |
180 |
97 |
भीतर जाओ |
181 |
98 |
सब कुछ एक ऋण है |
182 |
99 |
रक्षक |
183 |
100 |
नवयुवक की दुर्दशा |
184 |
101 |
सब से ज्यादा खुशी का क्षण |
185 |
102 |
जन्मदिन का संदेश |
187 |
103 |
गीता का सूक्ष्म ज्ञान |
189 |
104 |
दरिद्र नारायण |
192 |
105 |
साधु-बाबा के आश्रम में |
193 |
106 |
ऋषि दयानंद |
196 |
107 |
भारत का संदेश |
198 |
108 |
भागवत रत्न साधुवासवानी |
202 |
109 |
जमशेदपुर |
204 |
110 |
युवक जो प्रभु के दर्शन करना चाहता था |
207 |
111 |
विधवा का दान |
209 |
112 |
वह तुम्हारे साथ है |
210 |
113 |
विनित ही धन्य हैं |
212 |
114 |
पंडित मालवीयजी से मुलाकात |
214 |
115 |
शिक्षा में हिन्दू आदर्श |
217 |
116 |
रामकृष्ण मिशन में |
220 |
117 |
योग संदेश का अर्थ |
222 |
118 |
मानवता की आशा |
223 |
119 |
लालच से बचने का मार्ग |
224 |
120 |
पशु भी प्राणी हैं |
225 |
121 |
एक मजदूर के अतिथि |
226 |
122 |
स्नेह का स्तंभ |
227 |
123 |
गुरूदेव के साथ एक दिन |
228 |
124 |
स्वर्ग और नर्क |
237 |
125 |
पीर पराई जाने रे |
239 |
126 |
साधुत्व की परिभाषा |
241 |
127 |
महान दाता |
242 |
128 |
शाह लतीफ़ की मज़ार पर |
244 |
129 |
अभय |
246 |
130 |
फैसले की रात |
248 |
131 |
दरवेश दादा |
251 |
132 |
पुणे कर्म भूमि बना |
253 |
133 |
पुणे में सत्संग |
255 |
134 |
अंतर की आवाज सुनना चाहो तो बहरे हो जाओ |
257 |
135 |
मेरा कोई शत्रु नहीं |
258 |
136 |
सेवा का फल |
259 |
137 |
कहां है आपका घर |
260 |
138 |
प्रेम का चमत्कार |
262 |
139 |
करुणा का सागर |
263 |
140 |
निर्दोष क्यों कष्ट झेलते हैं? |
265 |
141 |
वृक्षों का मंदिर |
269 |
142 |
बुरा मत देखो |
272 |
143 |
दोहरा धोखा |
273 |
144 |
तुम्हें कितना मांस चाहिए? |
274 |
145 |
शक्ति आप के भीतर है |
276 |
146 |
प्यार का जादू |
278 |
147 |
सच्ची महानता |
280 |
148 |
एक भिखारिन |
281 |
149 |
पवित्र मानवीयता |
283 |
150 |
मोची को जूते सीने दो |
284 |
151 |
क्या चोर तुम्हारा भाई नहीं है? |
286 |
152 |
बच्चों की संगति |
288 |
153 |
मेरी जीवन गाथा |
298 |
154 |
यदि मेरी लाख जुबानें होतीं |
290 |
155 |
दीन बंधु |
292 |
156 |
मेरी कोई जाति नहीं |
294 |
157 |
शुक्र है शुक्र! |
296 |
158 |
एक सुंदर सपना |
298 |
159 |
होली के रंग |
301 |
160 |
एक ऐतिहासिक मिलन |
303 |
161 |
रुको सहर होने को है । |
305 |
162 |
सब में एक ही रब का प्रकाश |
308 |
163 |
राहत देने वाली परछाईं |
310 |
164 |
उनके जीवन की आकांक्षा |
313 |
165 |
ईश्वर यहं। है |
315 |
166 |
जीवन द्वारा साक्षी |
317 |
167 |
मित्रहीनों के मित्र |
318 |
168 |
जीवन सेवा को समर्पित |
322 |
169 |
दो दिन के मेहमान |
323 |
170 |
नित्य मुक्त |
324 |
171 |
साधु वासवानी अभी भी जीवित हैं? |
325 |
172 |
तलाश |
333 |
पुस्तक के विषय में
मानव योनि, मनुष्य के लिए ईश्वर का सब से सुंदर वरदान है। यदि एैसा है तो यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि एक संत का जीवन पूरी मानव जाति के लिए ईश्वर की सब से उमदा भेंट है; क्योंकि एैसे जीवन से प्रेम, शांति, विश्वास तथा कृपा की वह अनंत धारा बहती है जो हमें इस दुख भरे संसार में राहत और सहारा देती है। संतो के जीवन में प्रेम का वो जादू होता है कि उन के स्पर्श मात्र से ही हमारे हृदय और जीवन में परिवर्तन आ जाता है उन के पास वो शक्ति होती है जिस से वे साधारण लोगों को पाक और साफ बना कर ऊँचा उठा लेते हैं।
साधु वासवानी: उनका जीवनी और शिक्षाएं! आधुनिक काल के महान् संत साधु वासवानी की जीवनी है । इस जीवन की विशेषता यह है कि यह सीधी उन के महान शिष्य और उत्तराधिकारी दादा जे० पी० वासवानी की मधुर यादों से निकली है। इसलिए यह पुस्तक दोहरे आशीर्वाद से भरी है।
स्वर्ग इंतज़ार कर लेगा
साधु वासवाणीजी को कभी स्वर्ग के सुखों की चाह नहीं थी । उनकी, मुक्ति, मोक्ष, या जन्म मरण के चक्रों से मुक्त होने की कोई कामना नहीं किसीने उनसे जब पूछा था:- क्या मुक्ति से भी बढ़ कर कुछ और है? वे बोले :- मुझे मुक्ति नहीं चाहिए। मैं तो फिर फिर जन्म लेना चाहता हूँ ताकि दु:खियों और दर्द से कराहते लोगों के कुछ काम आ सकूँ । साधु वासवाणी हमें हमेशा उस संत की याद दिलाया करते हैं जिसने ईश्वरीय स्नेह के कारण मानवता की सेवा करने का व्रत ले लिया था। उनका जीवन सादगी और नि:स्वार्थ सेवा का उदाहरण था । वे असाधारण कार्यों को भी असाधारण बना देते थे।
उनका जीवन ऐसे ही स्नेहपूर्ण कार्यों के उदाहरणों से भरा हुआ है। उनके जीवन का दर्शन बहुत सरल था। प्रसन्नता प्राप्त करने की उनकी विधि थी :- पहले दूसरों को प्रसन्न करो, तो तुम स्वयं प्रसन्न हो जाओगे। उनका संपूर्ण जीवन साक्षी है कि ईश्वर स्वयं उनके रूप में मानव स्वरूप धारण करके आये थे।
आज भी उनके चित्र हमें नई प्रेरणा से भर देते हैं । उनकी आत्मीय पवित्र रोशनी हमें दिव्य आशाओं से भर देती है। वे मनुष्य के रूप में स्वयं ईश्वर थे।
दादा. जे. पी. वासवानी के सादी के संस्मरण, उनके गुरू के चरनों में ऐसे श्रद्धा सुभन हैं जो लाखों दिलों को इसकी पवित्र सुगंध से महकायेगें।
विषय सूची |
||
1 |
मुझे दादा कहो |
1 |
2 |
क्या वह मेरा भाई नहीं है? |
4 |
3 |
उठ जाग मुसाफिर भोर भई! |
5 |
4 |
चल अकेला |
6 |
5 |
भाग्यवान परिवार |
7 |
6 |
सब के प्रति करुणा |
13 |
7 |
अपहरण |
14 |
8 |
जैसी करनी वैसी भरनी |
15 |
9 |
शिवरात्री का मेला |
16 |
10 |
गुरू नानक की भक्ति |
17 |
11 |
मैं भूखा रहूंगा |
19 |
12 |
दृढ़ता का परिचय |
21 |
13 |
अपने दिल के दाग कैसे धोऊंगा? |
22 |
14 |
प्रथम संयोग |
23 |
15 |
प्रार्थना की शक्ति |
24 |
16 |
दृढ़ संकल्प |
25 |
17 |
एक नया अभियान |
26 |
18 |
गुरू का आदर |
28 |
19 |
आदर्श विद्यार्थी |
29 |
20 |
नज़रबंद |
30 |
21 |
सच्चाई पहले, दर्जा पीछे |
32 |
22 |
पितृशोक |
33 |
23 |
गरीब के दर्द में पूरी रात बेचैन रहे |
34 |
24 |
गुरू का प्रभाव |
35 |
25 |
अग्नि परीक्षा |
37 |
26 |
एक कुशल वक्ता का उदय |
39 |
27 |
एक विलक्षण विद्यार्थी |
41 |
28 |
तरुण प्रोफेसर |
43 |
29 |
ब्रह्मचर्य व्रत की प्रतिज्ञा |
44 |
30 |
माँ के सपने |
46 |
31 |
मैं एक पथिक हूँ |
48 |
32 |
दक्षिणेश्वर मंदिर में दिन अनुभूति |
49 |
33 |
गुरू के श्री चरणों में |
51 |
34 |
प्रोफेसर अब शिष्य बना |
53 |
35 |
तिलक का कलकत्ता में आगमन |
55 |
36 |
प्रतापचंद्र मुज़मदर का प्रभाव |
57 |
37 |
रविन्द्रनाथ टैगोर के साथ |
59 |
38 |
अल्लाह का आसरा |
61 |
39 |
छुटकारा |
62 |
40 |
सच्चा आनंद |
65 |
41 |
कराची का फायदा |
67 |
42 |
एक विशेष आमंत्रण |
68 |
43 |
चट्टान की तरह दृढ़ |
69 |
44 |
दूसरी प्रतिज्ञा |
71 |
45 |
मैं आप के पास आत्मा का प्राचीन संदेश लाया हूं |
73 |
46 |
एक क्रांतिकारी मशाल |
75 |
47 |
एकता से निर्माण |
77 |
48 |
उद्दोष |
79 |
49 |
धर्म का रहस्य |
81 |
50 |
स्वयं को समर्पित करो |
82 |
51 |
विश्वास की जीत |
84 |
52 |
अहंकार से मुक्ति |
85 |
53 |
बहुत अच्छा |
86 |
54 |
माँ ने मांगी मच्छली |
87 |
55 |
माँ क्या मैं आपका सेवक नहीं हूँ? |
90 |
56 |
कूच बिहार और पटियाला में |
92 |
57 |
प्रिंसिपल का यात्रा भत्ता |
95 |
58 |
माता की अंतिम सेवा |
96 |
59 |
मुक्ताकाश |
98 |
60 |
भिक्षु वासवानी |
100 |
61 |
एक अलौकिक देश भक्त |
101 |
62 |
नव भारत के शिल्पी |
103 |
63 |
एक फकीर की दूर दृष्टि |
105 |
64 |
युवा केंद्र |
108 |
65 |
शक्ति आश्रम |
109 |
66 |
शादी का प्रस्ताव |
112 |
67 |
सखी सत्संग |
114 |
68 |
एक अलौकिक शिष्या |
119 |
69 |
अप्रत्यक्ष ईश्वर में छिपा जीवन |
125 |
70 |
उच्च आदर्श |
129 |
71 |
भाग्यशाली समय |
130 |
72 |
अछूतों की सेवा ही ईश्वर की सेवा है |
131 |
73 |
मीरा आदोलन का जन्म |
133 |
74 |
आत्मा के गीत |
140 |
75 |
मीरा की समाधि पर |
143 |
76 |
एक विशेष मेहमान |
145 |
77 |
एमरेल्ड द्वीप पर |
147 |
78 |
अनुराधापुर और कोलंबो में |
149 |
79 |
नये विश्व में नारी का स्थान |
151 |
80 |
सखी भंडार |
153 |
81 |
मित्र चिंतक और मार्ग दर्शक |
155 |
82 |
आपका सामान कहाँ है? |
157 |
83 |
मुखिया की समस्या |
159 |
84 |
बोझ उठाने वाला |
160 |
85 |
अपराधियों के बीच |
161 |
86 |
गणतंत्र अमर रहे |
163 |
87 |
मुझ पर दया करो |
164 |
88 |
सत्य की राह |
165 |
89 |
अकेली डगर |
167 |
90 |
वे सब को क्षमा करते थे |
168 |
91 |
आज का पापी कल संत भी हो सकता है |
170 |
92 |
फोटो एक धोखा |
172 |
93 |
प्रेम करना उनका स्वभाव था |
174 |
94 |
मुझे लगा मैं माँ हूँ |
176 |
95 |
एक स्वीकृति |
178 |
96 |
सब से गहरी वेदना |
180 |
97 |
भीतर जाओ |
181 |
98 |
सब कुछ एक ऋण है |
182 |
99 |
रक्षक |
183 |
100 |
नवयुवक की दुर्दशा |
184 |
101 |
सब से ज्यादा खुशी का क्षण |
185 |
102 |
जन्मदिन का संदेश |
187 |
103 |
गीता का सूक्ष्म ज्ञान |
189 |
104 |
दरिद्र नारायण |
192 |
105 |
साधु-बाबा के आश्रम में |
193 |
106 |
ऋषि दयानंद |
196 |
107 |
भारत का संदेश |
198 |
108 |
भागवत रत्न साधुवासवानी |
202 |
109 |
जमशेदपुर |
204 |
110 |
युवक जो प्रभु के दर्शन करना चाहता था |
207 |
111 |
विधवा का दान |
209 |
112 |
वह तुम्हारे साथ है |
210 |
113 |
विनित ही धन्य हैं |
212 |
114 |
पंडित मालवीयजी से मुलाकात |
214 |
115 |
शिक्षा में हिन्दू आदर्श |
217 |
116 |
रामकृष्ण मिशन में |
220 |
117 |
योग संदेश का अर्थ |
222 |
118 |
मानवता की आशा |
223 |
119 |
लालच से बचने का मार्ग |
224 |
120 |
पशु भी प्राणी हैं |
225 |
121 |
एक मजदूर के अतिथि |
226 |
122 |
स्नेह का स्तंभ |
227 |
123 |
गुरूदेव के साथ एक दिन |
228 |
124 |
स्वर्ग और नर्क |
237 |
125 |
पीर पराई जाने रे |
239 |
126 |
साधुत्व की परिभाषा |
241 |
127 |
महान दाता |
242 |
128 |
शाह लतीफ़ की मज़ार पर |
244 |
129 |
अभय |
246 |
130 |
फैसले की रात |
248 |
131 |
दरवेश दादा |
251 |
132 |
पुणे कर्म भूमि बना |
253 |
133 |
पुणे में सत्संग |
255 |
134 |
अंतर की आवाज सुनना चाहो तो बहरे हो जाओ |
257 |
135 |
मेरा कोई शत्रु नहीं |
258 |
136 |
सेवा का फल |
259 |
137 |
कहां है आपका घर |
260 |
138 |
प्रेम का चमत्कार |
262 |
139 |
करुणा का सागर |
263 |
140 |
निर्दोष क्यों कष्ट झेलते हैं? |
265 |
141 |
वृक्षों का मंदिर |
269 |
142 |
बुरा मत देखो |
272 |
143 |
दोहरा धोखा |
273 |
144 |
तुम्हें कितना मांस चाहिए? |
274 |
145 |
शक्ति आप के भीतर है |
276 |
146 |
प्यार का जादू |
278 |
147 |
सच्ची महानता |
280 |
148 |
एक भिखारिन |
281 |
149 |
पवित्र मानवीयता |
283 |
150 |
मोची को जूते सीने दो |
284 |
151 |
क्या चोर तुम्हारा भाई नहीं है? |
286 |
152 |
बच्चों की संगति |
288 |
153 |
मेरी जीवन गाथा |
298 |
154 |
यदि मेरी लाख जुबानें होतीं |
290 |
155 |
दीन बंधु |
292 |
156 |
मेरी कोई जाति नहीं |
294 |
157 |
शुक्र है शुक्र! |
296 |
158 |
एक सुंदर सपना |
298 |
159 |
होली के रंग |
301 |
160 |
एक ऐतिहासिक मिलन |
303 |
161 |
रुको सहर होने को है । |
305 |
162 |
सब में एक ही रब का प्रकाश |
308 |
163 |
राहत देने वाली परछाईं |
310 |
164 |
उनके जीवन की आकांक्षा |
313 |
165 |
ईश्वर यहं। है |
315 |
166 |
जीवन द्वारा साक्षी |
317 |
167 |
मित्रहीनों के मित्र |
318 |
168 |
जीवन सेवा को समर्पित |
322 |
169 |
दो दिन के मेहमान |
323 |
170 |
नित्य मुक्त |
324 |
171 |
साधु वासवानी अभी भी जीवित हैं? |
325 |
172 |
तलाश |
333 |