Description
पुस्तक परिचय
'साहित्यदर्पण' सकलांगनिरूपक, काव्य-शास्त्रीय ग्रन्थ है , जिसमे सभी काव्यीय तत्वों का सुबोध शैली में सविस्तार विवेचन किया गया है | इसमें काव्य की, तत्कालीन प्रचलित सभी विद्याओ के अतिरिक्त नाकट (दृश्यकाव्य के सभी प्रकारों ) का भी पुंखानुपुंख विवेचन हुआ है | इसमें रीति ग्रंथो में वर्णित प्रायः सभी विषयो का समावेश किया गया है जो काव्य की रचना एवं आलोचना के लिए अपरिहार्य है | नायक-नायिकाओं की प्रमिल चेष्टाओं के अतिरिक्त रति क्रीड़ा की विविध भाव- भंगिमाओं का भी इसमें वर्णन किया गया है | इस दृष्टि से यह ग्रन्थ सम्पूर्ण काव्यशास्त्रीय परम्परा में अकेला है | विश्वनाथ कविराज ने काव्यशास्त्र के जटिल एवं दुरूह तत्वों का अत्यंत स्पष्ट स्वरुप अंकित कर इसमें साहित्यालोचन के सभी आवश्यक तत्वों को सन्निविष्ट किया है | एक ही ग्रन्थ में श्रव्य एवं दृश्यकाव्य के सभी भेद-प्रभेदों के अतिरिक्त काव्यांगों का अत्यंत प्रामाणिक विवेचन इसकी महार्घता सर्वजन-सुलभता धोतक है |
इसकी विशेषता शैली की बोधगम्यता, प्रांजलता तथा विषय की व्यापकता में निहित है | साहित्यदर्पण की रचना दस परिच्छेदों में हुई है | लेखक ने प्राचीन प्रस्थान-ग्रंथो का अनुकरण कर इसकी तीन विभाग किए-कारिका, वृति एवं उदाहरण | सम्बद्ध विषयो का लक्षण प्रस्तुत कर वृति में उनके स्वरुप का स्पष्टीकरण किया गया है | प्रसिद्द ग्रंथो से उदाहरण देकर शास्त्रीय विषयो को स्पष्ट किया गया है |
प्रस्तुत संस्करण में विद्वान लेखकगणों के संस्कृत एवं हिन्दी भाषा में दुरूह एवं विवादस्पद विषयो की समस्या पर शास्त्रीय ढंग से विस्तृत विवेचना करके साहित्यदर्पण लो और उपयोगी एवं पूर्ण बनाने का प्रयास किया है |
