प्राक्कथन
'संगीत-विशारद' का नया संस्करण संगीत-जगत् की सेवा में प्रस्तुत है विद्यार्थियों तथा शिक्षकों की मांग और कठिनाई को ध्यान में रखकर इसे प्रथम वर्ष से एम० ए० स्तर तक के पाठ्यक्रमनुसार कर दिया गया है, अत: संगीत-परीक्षाओं में आनेवाले प्राय हर प्रश्न का उत्तर इसमें प्राप्त हो जाएगा बी० ए० तथा एम० एल स्तर के पाठ्यक्रम में जो भी नया बदलाव हुआ है और नए विषय बढाए गए हैं, उन सभा के बारे में विस्तार से सामग्री दे दी गई है।
'संगीत-विशारद' एक ही ऐसा ग्रन्थ है, जिसे पढ़ लेने के बाद अन्य ग्रन्थों के अध्ययन की आवश्यकता नहीं रह जाती फिर भी यदि किसी प्रश्न का उत्तर 'संगीत-विशारद' न दे सके तो पाठक हमें इसकी सूचना दे सकते हैं, ताकि आगामी संस्करण में उस कमी को पूरा किया जा सके । परिवर्तन और संशोधन कभी समाप्त नहीं होते, काल-चक्र की तरह उनका पहिया निरन्तर विकासोन्मुख रहकर गतिशील रहता है, यही कला और संस्कृति के उत्थान का रहस्य है । अनेक बार पाठ्यक्रम में कुछ ऐसे परिवर्धन या परिवर्तन कर दिए जाते हैं, जिनका मूल-विषय तो एक ही रहता है; परन्तु उसे प्रस्तुत करने का तरीका शब्दों के हेर-फेर से ऐसा प्रतीत होता है, जैसे वह कोई नया विषय हो। ऐसी प्रतीति होने पर विद्यार्थी योग्य शिक्षक से सम्पर्क स्थापित करके इस पुस्तक में उसके समाधान की खोज भी कर सकते हैं।हम चाहेंगे कि 'संगीत-विशारद का पाठक अपने लक्ष्य में अग्रसर होते हुए कला के उच्चतम शिखर की ओर बढ़ता जाए, तभी हमारा परिश्रम सार्थक होगा।
इस पुस्तक को भाषा, विषय-वस्तु और सामग्री की दृष्टि से काफी समृद्ध कर दिया गया है, जिसमें श्री भगवतशरण शर्मा और 'संगीत' मासिक पत्र के प्रधान सम्पादक डॉ० लक्ष्मीनारायण गर्ग का विशेष सहयोग प्राप्त हुआ है उनके प्रति कृतज्ञताज्ञापन करना यदि मेरे लिए समीचीन नहीं होगा और स्नेह की अभिव्यक्ति राग का प्रतीक कहलाएगी, अत: यही कहा जा सकता है कि संगीत की आराधना के निमित्त भगवती सरस्वती के मन्दिर में मेरे पुष्पार्चन के साथ मेरे दो प्रियजन का नैवेद्य भी समर्पित है। वास्तव में संगीत एक यज्ञ है और हम सब यज्ञी।
अनुक्रम |
||
1 |
संगीत की धरोहर |
9 |
2 |
भारतीय संगीत की उत्पत्ति |
12 |
3 |
उत्तर भारतीय संगीत का संक्षिप्त इतिहास |
14 |
4 |
सौंदर्य-शास्त्र |
29 |
5 |
संगीत का स्वर-पक्ष |
33 |
6 |
सारणा चतुष्टयी |
48 |
7 |
दक्षिणी (कर्नाटिकी) और उत्तरी (हिन्दुस्तानी) संगीत-पद्धतियाँ |
52 |
8 |
उत्तर और दक्षिण भारत का संगीत |
55 |
दक्षिणी ताल- पद्धति |
64 |
|
9 |
ध्वनि-विज्ञान |
71 |
10 |
ध्वनि तरंग और उपकरण |
90 |
11 |
संगीत वाद्य और ध्वनि तरंग |
94 |
12 |
वाद्य-यन्त्रों की कंपन संख्या |
101 |
13 |
ध्वनि अभिलेखन तथा पुनरुत्पादन |
106 |
14 |
भवन ध्वनिकी |
115 |
15 |
स्वर-शास्त्र |
122 |
16 |
संगीत के सप्तक का विकास |
145 |
17 |
संगीत में ठांठ(थाट) पद्धति का विकास |
155 |
18 |
उत्तर-भारतीय संगीत पद्धति के बारह स्वरों से बत्तीस ठाठ |
161 |
19 |
उत्तर भारतीय संगीत-पद्धति के दस ठाठों से उत्पन्न कुछ राग |
164 |
20 |
वेंकट मखी पंडित के बहत्तर मेल (ठाठ) |
166 |
21 |
नाद-स्था, सप्तक, वर्ण, अलंकार, राग और ग्राम मूर्च्छना |
175 |
22 |
जाति गायन |
185 |
23 |
रागों का लक्षण |
189 |
24 |
अध्वदर्शक स्वर 'मध्यम' का महत्त्व |
198 |
25 |
हिंदुस्तानी संगीत-पद्धति के चालीस सिद्धांत |
200 |
26 |
राग में वादी स्वर का महत्त्व |
204 |
27 |
राग-रागिनी-पद्धति |
207 |
28 |
गायकों के गुण-अवगुण |
212 |
29 |
यंत्र-वादकों के गुण-दोष |
217 |
30 |
नायक वे गाय आदि के भेद |
218 |
31 |
गीत, गांधर्व, गान, मार्ग संगीत, देशी संगीत, ग्रह, अंश और न्यास |
222 |
32 |
चतुर्दण्डी और उसकी अवधारणा |
225 |
33 |
प्राचीन प्रबंध-गायन अथवा शैलियाँ |
227 |
34 |
आधुनिक प्रबन्ध-गायन या संगीत शैलियाँ |
232 |
35 |
प्राचीन आलाप-तान तथा अन्य परिभाषाएँ |
241 |
36 |
सामवेदकालीन संगीत |
248 |
37 |
आधुनिक आलाप-तान |
255 |
38 |
रागों का दस विभागों वर्गीकरण में करने का प्राचीन सिद्धांत |
260 |
39 |
आदत-जिगर-हिसाब |
263 |
40 |
भारतीय स्वरलिपि पद्धति |
265 |
41 |
144 रागों का वर्णन (प्रथम वर्ष से अष्टम वर्ष तक) |
269-336 |
42 |
ताल-मात्रा-लय विवरण |
325 |
43 |
उत्तर भारतीय संगीत-पद्धति की कुछ मुख्य तालें |
337 |
44 |
तबला एवं पखावज पर दोनों हाथों के अलग-अलग तथा संयुक्त आघात का वर्णन |
343 |
45 |
ताल वाद्य-वादकों के गुण-दोष |
348 |
46 |
वाद्यमंत्र परिचय, वाद्यों के प्रकार |
349 |
47 |
गायकों के प्रमुख घराने |
380 |
48 |
संगीत के विभिन्न घरानों की परम्परा |
386 |
49 |
कथक नृत्य के घराने |
410 |
50 |
ताल-वाद्यों की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और पखावज के घराने |
413 |
51 |
छह राष्ट्रों का संगीत (चीन, जापान, ग्रीस, मिश्र, अरब, ईरान) |
416 |
52 |
पाश्चात्य स्वरलिपि-पद्धति |
432 |
53 |
पाश्चात्य संगीत में रिदम |
447 |
54 |
पाश्चात्य संगीत में हारमाँनी और मैलॉडी |
449 |
55 |
पाश्चात्य संगीत-पद्धति में ठाठ व रागों का स्वरांकन |
459 |
56 |
पाश्चात्य स्वरलिपि-लेखन |
463 |
57 |
भारतीय वृन्दवादन का ऐतिहासिक विवेचन |
465 |
58 |
संगीत के कुछ प्रसिद्ध ग्रन्थ |
470 |
59 |
संगीतकारों का संक्षिप्त परिचय |
480 |
60 |
पाश्चात्य संगीतकार |
522 |
61 |
संगीत और जीवन |
524 |
62 |
संगीत की शक्ति |
527 |
63 |
संगीत और छन्दशास्त्र |
531 |
64 |
रागों का रस एवं भावों से सम्बन्ध |
543 |
65 |
राग और ऋतुएँ |
546 |
66 |
संगीत और रस |
548 |
67 |
ताल और रस |
551 |
68 |
ललित कलाओं में संगीत का स्थान |
559 |
69 |
विभिन्न प्रदेशों की लोकप्रिय गीत शैली (धुनें) व नृत्य |
562 |
70 |
लोक संगीत का भाव पक्ष |
566 |
71 |
भारतीय वाद्य-परम्परा |
568 |
72 |
लोक-संगीत के वाद्ययंत्र |
575 |
73 |
पाश्चात्य संगीत के वाद्ययंत्र |
585 |
74 |
संगीत में काकु |
591 |
75 |
भारतीय संगीत में सौंदर्य-बोध |
594 |
76 |
काव्य और संगीत |
598 |
77 |
शास्त्रीय संगीत और लोक-संगीत |
599 |
78 |
कंठ संस्कार |
600 |
79 |
कंठ-साधना और पार्श्व-गायन |
612 |
80 |
राग, निर्माण और स्वर-रचना के सिद्धांत |
617 |
81 |
संगीत निर्देशन और उसकी कला |
621 |
82 |
फिल्म संगीत की ऐतिहासिक परम्परा और उसके घराने |
630 |
83 |
नटराज-उपाधि का रहस्य |
649 |
84 |
तांडव और लास्य की उत्पत्ति |
650 |
85 |
नृत्य-निर्देशन की कला |
651 |
86 |
सरल एवं शास्त्रीय संगीत की तुलना |
658 |
87 |
संगीत का मनोविज्ञान |
659 |
88 |
वृन्दगान, वाद्यवृन्द गीत-नाट्य और नृत्य-नाट्य |
662 |
89 |
गाथागान, नृत्यगीत और गीतकाव्य भारतीय नृत्य-कला |
668 |
90 |
भारतीय नृ्त्य-कला |
671 |
91 |
नृत्याचार्य, नर्तक तथा नर्तकी के गुण दोष |
677 |
92 |
वैणिक(वीणावादक), वांशिक (बाँसुरी वादक), कविताकार, नर्तक, नर्तकी के गुण-दोष एवं कलाकारों के भेद |
679 |
93 |
रवीन्द्र संगीत |
680 |
94 |
नज़रूल संगीत |
695 |
95 |
बंगाल का लोक संगीत (भवइया, गंभीरा, बाउल, भटियाली, चटका और कीर्तन) |
706 |
96 |
मंच-प्रर्दशन और संगीत-समारोह |
713 |
97 |
चित्रपट-संगीत, नाट्य-संगीत और ऑडियो-विजुअल-विद्या |
720 |
98 |
नाट्य संगीत विद्या |
726 |
99 |
शोध प्रबन्ध और उनकी रूपरेखा |
734 |
100 |
कर्नाटिक संगीत की स्वरलिपि पद्धति |
738 |
101 |
पाश्चात्य देशों में अवनद्ध वाद्यों का विकास |
747 |
102 |
पंजाब का गुरमति संगीत |
754 |
103 |
संगीत वाद्यों में ध्वनि तरंगे |
762 |
104 |
ध्वनि विज्ञान से सम्बन्धित महत्वपूर्ण तथ्य |
768 |
105 |
विभिन्न माध्यमों में ध्वनि का वेग तथा प्रसारण |
771 |
106 |
पाश्चात्य संगीत के कुछ शब्दों का स्पष्टीकरण |
773 |
107 |
स्वरलिपि चिन्ह परिचय |
785 |
प्राक्कथन
'संगीत-विशारद' का नया संस्करण संगीत-जगत् की सेवा में प्रस्तुत है विद्यार्थियों तथा शिक्षकों की मांग और कठिनाई को ध्यान में रखकर इसे प्रथम वर्ष से एम० ए० स्तर तक के पाठ्यक्रमनुसार कर दिया गया है, अत: संगीत-परीक्षाओं में आनेवाले प्राय हर प्रश्न का उत्तर इसमें प्राप्त हो जाएगा बी० ए० तथा एम० एल स्तर के पाठ्यक्रम में जो भी नया बदलाव हुआ है और नए विषय बढाए गए हैं, उन सभा के बारे में विस्तार से सामग्री दे दी गई है।
'संगीत-विशारद' एक ही ऐसा ग्रन्थ है, जिसे पढ़ लेने के बाद अन्य ग्रन्थों के अध्ययन की आवश्यकता नहीं रह जाती फिर भी यदि किसी प्रश्न का उत्तर 'संगीत-विशारद' न दे सके तो पाठक हमें इसकी सूचना दे सकते हैं, ताकि आगामी संस्करण में उस कमी को पूरा किया जा सके । परिवर्तन और संशोधन कभी समाप्त नहीं होते, काल-चक्र की तरह उनका पहिया निरन्तर विकासोन्मुख रहकर गतिशील रहता है, यही कला और संस्कृति के उत्थान का रहस्य है । अनेक बार पाठ्यक्रम में कुछ ऐसे परिवर्धन या परिवर्तन कर दिए जाते हैं, जिनका मूल-विषय तो एक ही रहता है; परन्तु उसे प्रस्तुत करने का तरीका शब्दों के हेर-फेर से ऐसा प्रतीत होता है, जैसे वह कोई नया विषय हो। ऐसी प्रतीति होने पर विद्यार्थी योग्य शिक्षक से सम्पर्क स्थापित करके इस पुस्तक में उसके समाधान की खोज भी कर सकते हैं।हम चाहेंगे कि 'संगीत-विशारद का पाठक अपने लक्ष्य में अग्रसर होते हुए कला के उच्चतम शिखर की ओर बढ़ता जाए, तभी हमारा परिश्रम सार्थक होगा।
इस पुस्तक को भाषा, विषय-वस्तु और सामग्री की दृष्टि से काफी समृद्ध कर दिया गया है, जिसमें श्री भगवतशरण शर्मा और 'संगीत' मासिक पत्र के प्रधान सम्पादक डॉ० लक्ष्मीनारायण गर्ग का विशेष सहयोग प्राप्त हुआ है उनके प्रति कृतज्ञताज्ञापन करना यदि मेरे लिए समीचीन नहीं होगा और स्नेह की अभिव्यक्ति राग का प्रतीक कहलाएगी, अत: यही कहा जा सकता है कि संगीत की आराधना के निमित्त भगवती सरस्वती के मन्दिर में मेरे पुष्पार्चन के साथ मेरे दो प्रियजन का नैवेद्य भी समर्पित है। वास्तव में संगीत एक यज्ञ है और हम सब यज्ञी।
अनुक्रम |
||
1 |
संगीत की धरोहर |
9 |
2 |
भारतीय संगीत की उत्पत्ति |
12 |
3 |
उत्तर भारतीय संगीत का संक्षिप्त इतिहास |
14 |
4 |
सौंदर्य-शास्त्र |
29 |
5 |
संगीत का स्वर-पक्ष |
33 |
6 |
सारणा चतुष्टयी |
48 |
7 |
दक्षिणी (कर्नाटिकी) और उत्तरी (हिन्दुस्तानी) संगीत-पद्धतियाँ |
52 |
8 |
उत्तर और दक्षिण भारत का संगीत |
55 |
दक्षिणी ताल- पद्धति |
64 |
|
9 |
ध्वनि-विज्ञान |
71 |
10 |
ध्वनि तरंग और उपकरण |
90 |
11 |
संगीत वाद्य और ध्वनि तरंग |
94 |
12 |
वाद्य-यन्त्रों की कंपन संख्या |
101 |
13 |
ध्वनि अभिलेखन तथा पुनरुत्पादन |
106 |
14 |
भवन ध्वनिकी |
115 |
15 |
स्वर-शास्त्र |
122 |
16 |
संगीत के सप्तक का विकास |
145 |
17 |
संगीत में ठांठ(थाट) पद्धति का विकास |
155 |
18 |
उत्तर-भारतीय संगीत पद्धति के बारह स्वरों से बत्तीस ठाठ |
161 |
19 |
उत्तर भारतीय संगीत-पद्धति के दस ठाठों से उत्पन्न कुछ राग |
164 |
20 |
वेंकट मखी पंडित के बहत्तर मेल (ठाठ) |
166 |
21 |
नाद-स्था, सप्तक, वर्ण, अलंकार, राग और ग्राम मूर्च्छना |
175 |
22 |
जाति गायन |
185 |
23 |
रागों का लक्षण |
189 |
24 |
अध्वदर्शक स्वर 'मध्यम' का महत्त्व |
198 |
25 |
हिंदुस्तानी संगीत-पद्धति के चालीस सिद्धांत |
200 |
26 |
राग में वादी स्वर का महत्त्व |
204 |
27 |
राग-रागिनी-पद्धति |
207 |
28 |
गायकों के गुण-अवगुण |
212 |
29 |
यंत्र-वादकों के गुण-दोष |
217 |
30 |
नायक वे गाय आदि के भेद |
218 |
31 |
गीत, गांधर्व, गान, मार्ग संगीत, देशी संगीत, ग्रह, अंश और न्यास |
222 |
32 |
चतुर्दण्डी और उसकी अवधारणा |
225 |
33 |
प्राचीन प्रबंध-गायन अथवा शैलियाँ |
227 |
34 |
आधुनिक प्रबन्ध-गायन या संगीत शैलियाँ |
232 |
35 |
प्राचीन आलाप-तान तथा अन्य परिभाषाएँ |
241 |
36 |
सामवेदकालीन संगीत |
248 |
37 |
आधुनिक आलाप-तान |
255 |
38 |
रागों का दस विभागों वर्गीकरण में करने का प्राचीन सिद्धांत |
260 |
39 |
आदत-जिगर-हिसाब |
263 |
40 |
भारतीय स्वरलिपि पद्धति |
265 |
41 |
144 रागों का वर्णन (प्रथम वर्ष से अष्टम वर्ष तक) |
269-336 |
42 |
ताल-मात्रा-लय विवरण |
325 |
43 |
उत्तर भारतीय संगीत-पद्धति की कुछ मुख्य तालें |
337 |
44 |
तबला एवं पखावज पर दोनों हाथों के अलग-अलग तथा संयुक्त आघात का वर्णन |
343 |
45 |
ताल वाद्य-वादकों के गुण-दोष |
348 |
46 |
वाद्यमंत्र परिचय, वाद्यों के प्रकार |
349 |
47 |
गायकों के प्रमुख घराने |
380 |
48 |
संगीत के विभिन्न घरानों की परम्परा |
386 |
49 |
कथक नृत्य के घराने |
410 |
50 |
ताल-वाद्यों की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और पखावज के घराने |
413 |
51 |
छह राष्ट्रों का संगीत (चीन, जापान, ग्रीस, मिश्र, अरब, ईरान) |
416 |
52 |
पाश्चात्य स्वरलिपि-पद्धति |
432 |
53 |
पाश्चात्य संगीत में रिदम |
447 |
54 |
पाश्चात्य संगीत में हारमाँनी और मैलॉडी |
449 |
55 |
पाश्चात्य संगीत-पद्धति में ठाठ व रागों का स्वरांकन |
459 |
56 |
पाश्चात्य स्वरलिपि-लेखन |
463 |
57 |
भारतीय वृन्दवादन का ऐतिहासिक विवेचन |
465 |
58 |
संगीत के कुछ प्रसिद्ध ग्रन्थ |
470 |
59 |
संगीतकारों का संक्षिप्त परिचय |
480 |
60 |
पाश्चात्य संगीतकार |
522 |
61 |
संगीत और जीवन |
524 |
62 |
संगीत की शक्ति |
527 |
63 |
संगीत और छन्दशास्त्र |
531 |
64 |
रागों का रस एवं भावों से सम्बन्ध |
543 |
65 |
राग और ऋतुएँ |
546 |
66 |
संगीत और रस |
548 |
67 |
ताल और रस |
551 |
68 |
ललित कलाओं में संगीत का स्थान |
559 |
69 |
विभिन्न प्रदेशों की लोकप्रिय गीत शैली (धुनें) व नृत्य |
562 |
70 |
लोक संगीत का भाव पक्ष |
566 |
71 |
भारतीय वाद्य-परम्परा |
568 |
72 |
लोक-संगीत के वाद्ययंत्र |
575 |
73 |
पाश्चात्य संगीत के वाद्ययंत्र |
585 |
74 |
संगीत में काकु |
591 |
75 |
भारतीय संगीत में सौंदर्य-बोध |
594 |
76 |
काव्य और संगीत |
598 |
77 |
शास्त्रीय संगीत और लोक-संगीत |
599 |
78 |
कंठ संस्कार |
600 |
79 |
कंठ-साधना और पार्श्व-गायन |
612 |
80 |
राग, निर्माण और स्वर-रचना के सिद्धांत |
617 |
81 |
संगीत निर्देशन और उसकी कला |
621 |
82 |
फिल्म संगीत की ऐतिहासिक परम्परा और उसके घराने |
630 |
83 |
नटराज-उपाधि का रहस्य |
649 |
84 |
तांडव और लास्य की उत्पत्ति |
650 |
85 |
नृत्य-निर्देशन की कला |
651 |
86 |
सरल एवं शास्त्रीय संगीत की तुलना |
658 |
87 |
संगीत का मनोविज्ञान |
659 |
88 |
वृन्दगान, वाद्यवृन्द गीत-नाट्य और नृत्य-नाट्य |
662 |
89 |
गाथागान, नृत्यगीत और गीतकाव्य भारतीय नृत्य-कला |
668 |
90 |
भारतीय नृ्त्य-कला |
671 |
91 |
नृत्याचार्य, नर्तक तथा नर्तकी के गुण दोष |
677 |
92 |
वैणिक(वीणावादक), वांशिक (बाँसुरी वादक), कविताकार, नर्तक, नर्तकी के गुण-दोष एवं कलाकारों के भेद |
679 |
93 |
रवीन्द्र संगीत |
680 |
94 |
नज़रूल संगीत |
695 |
95 |
बंगाल का लोक संगीत (भवइया, गंभीरा, बाउल, भटियाली, चटका और कीर्तन) |
706 |
96 |
मंच-प्रर्दशन और संगीत-समारोह |
713 |
97 |
चित्रपट-संगीत, नाट्य-संगीत और ऑडियो-विजुअल-विद्या |
720 |
98 |
नाट्य संगीत विद्या |
726 |
99 |
शोध प्रबन्ध और उनकी रूपरेखा |
734 |
100 |
कर्नाटिक संगीत की स्वरलिपि पद्धति |
738 |
101 |
पाश्चात्य देशों में अवनद्ध वाद्यों का विकास |
747 |
102 |
पंजाब का गुरमति संगीत |
754 |
103 |
संगीत वाद्यों में ध्वनि तरंगे |
762 |
104 |
ध्वनि विज्ञान से सम्बन्धित महत्वपूर्ण तथ्य |
768 |
105 |
विभिन्न माध्यमों में ध्वनि का वेग तथा प्रसारण |
771 |
106 |
पाश्चात्य संगीत के कुछ शब्दों का स्पष्टीकरण |
773 |
107 |
स्वरलिपि चिन्ह परिचय |
785 |