पुस्तक के विषय में
माता भगवती त्रिपुरसुन्दरी के लाड़ले पुत्र शंकराचार्य को स्वयं भगवती ने अपना दूध पिलाकर सब विद्याओं में पारंगत होने का वरदान दिया था। भगवान् शिव की इच्छा और भगवती की आज्ञा से आपने वेदों में गुप्त रूप से निहित शताक्षरी महाविद्या का क्रमबद्ध व्यवस्थित विवरण सौन्दर्यलहरी के 100 श्लोकों में प्रस्तुत किया है।
अनुक्रमणिका |
||
श्लोक ज्योतिष संकेत मनोरथ सिद्धि |
||
1 |
सात ऊर्ध्वलोक सात ग्रह सर्वार्थसिद्धि |
9 |
2 |
शिशुमार कालिय नक्षत्रमण्डल कालभयनिवारण |
13 |
3 |
बारह सूर्य दरिद्रता निवारण, विद्या प्राप्ति |
17 |
4 |
ग्रहों और भगवती की समानता सिंहासन, पदवी पाना |
19 |
5 |
तीन जन्मलग्न मनमोहन व्यक्तित्व |
21 |
6 |
ग्रहस्पष्ट का महत्त्व विजय, सन्तान सुख |
24 |
7 |
संवत्मर के 12 मोती विरोधी विजय, सफलता |
26 |
8 |
पंचांग की महत्ता बन्धन बाधा निराकरण |
29 |
9 |
सौर परिवार के ग्रह उत्तम स्वास्थ्य, नीरोगिता |
32 |
10 |
108 नवांश शरीर शुद्धि, प्राकृतिक विकास |
36 |
11 |
भाव होरा घटी लग्न बांझपन निवारण |
38 |
12 |
लग्न का बल कविताशक्ति विद्वत्ता |
42 |
13 |
कुण्डली में ग्रहस्थिति आकर्षण, लोकप्रियता प्राप्ति |
44 |
14 |
तिथियां दुर्भिक्ष व रोग का निवारण |
46 |
15 |
विद्याविनयसम्पन्न दैवज्ञ विद्या व कवित्व प्राप्ति |
49 |
16 |
ग्रहपीड़ा का उपाय विद्या व कवित्व सिद्धि |
51 |
17 |
ज्योतिषी की योग्यता विद्वत्ता व ग्रथकार होना |
52 |
18 |
स्तुति पूजा से अनुकूल ग्रह सर्वजन वशीकरण |
55 |
19 |
कुण्डली में शिवशक्ति त्रिकोण राजा प्रजा की अनुकूलता |
56 |
20 |
ग्रहबल विचार अनिवार्य विषनाश रोगनिवारण |
59 |
21 |
लग्न योगी द्वारा ज्ञेय जनता द्वारा आदर |
61 |
22 |
मन्त्र और सदाचार से कष्ट दूर सुख सम्पदा वैभव प्राप्ति |
63 |
23 |
कुण्डली के वाम दक्षिण भाग अनिष्टनाश इष्टसिद्धि |
65 |
24 |
कुण्डली के तीन खण्ड तन मन के रोग निवारण |
67 |
25 |
उपाय ज्योतिष का महत्व उच्चपद व मनोरथ प्राप्ति |
69 |
26 |
दशान्तर्दशा शत्रुविजय सुखसमृद्धि दाम्पत्यसुख |
71 |
27 |
कर्मफल संकेत आध्यात्मिक उन्नति, साक्षात्कार |
73 |
28 |
ग्रहों की शुभाशुभता अपमृत्ये व कष्ट निवारण |
76 |
29 |
दूसरे ग्यारहवें भाव का तालमेल सर्ववशीकरण, समृद्धि |
78 |
30 |
त्रिकोणभावों में लक्ष्मी का वास अष्टसिद्धि प्राप्ति, अग्नि भयनिवृत्ति |
80 |
31 |
फलकथनं के आधार सर्वसुखभोग प्राप्ति |
64 |
32 |
कुण्डली व पोडशी मन्त्र की समानता दु:खनिवारण, विद्या में सफलता |
86 |
33 |
बारह भाव धनी होना |
89 |
34 |
ज्योतिष के नौ व्यूह विद्या बुद्धि प्राप्ति |
91 |
35 |
ग्रह और पंचतत्व रोग नाश, स्वास्थ्य लाभ |
95 |
36 |
कुण्डली रूप आज्ञाचक्र मे शिवशक्ति भय निवारण, कठिन रोग निवृत्ति |
97 |
37 |
एकादश रुद्र व तारामण्डल मनोविकारों से छुटकारा |
99 |
38 |
सूर्य चन्द्र ही शिवशक्ति विद्या ज्ञान प्राप्ति, बालारिष्ट निवारण |
102 |
39 |
होरा कुण्डली का विचार सुखशयन दुःस्वप्न, दरिद्रता निवारण |
104 |
40 |
तिथि नक्षत्रों की उत्पत्ति अभीष्ट सिद्धि |
106 |
41 |
द्रेष्काण चक प्रजननांगों के विकार, सन्ततिलाभ |
108 |
42 |
भगवती का नक्षत्रमय शरीर धनसमृद्धि उदर रोगों की शान्ति |
111 |
43 |
राशिचक्र के दो भाग सबका सहयोग अजातशत्रु होना |
113 |
44 |
वैदिक चित्रापक्षीय अयनांश सर्वविध कल्याण, बाधा निवारण |
115 |
45 |
नक्षत्र प्रजापति वाक् सिद्धि भविष्यकथन की शक्ति |
117 |
46 |
ग्रहबल व राजयोग प्रियतम से मिलन, सन्तानसुख |
119 |
47 |
सूर्य चन्द्र के दो पात सर्वजन अनुकूलता, निर्भयता |
121 |
48 |
यह काल का नियमन सब ग्रहों की प्रसन्नता |
123 |
49 |
ग्रहों का सम्बनध व दृष्टि सौभाग्यवृद्धि, धनवृद्धि |
124 |
50 |
दैवज्ञ की मूल योग्यता खसरा चेचक शान्ति, विरोधियों में फूट |
126 |
51 |
नवग्रह व द्वादशभाव इष्टसिद्धि, जनसहयोग |
127 |
52 |
श्रवण धनिष्ठा का महत्त्व नेत्रकर्णरोग शान्ति, अधिकारी अनुकूल |
129 |
53 |
लग्न चन्द्र व सूर्य कुण्डली ज्ञान प्राप्ति |
131 |
54 |
ज्योतिष के तीन स्कन्ध पापनाश गुप्तरोग निवारण |
132 |
55 |
ग्रहों का उदयास्त सुरक्षा, अण्डकोष विकार की शान्ति |
134 |
56 |
मीनान्त बिन्दु व दक्षिणोत्तर गोल सफलता में रुकावट दूर, वर्षा होना |
135 |
57 |
दिन रात का घटना बढ़ना भाग्यवृद्धि, संकट निवारण |
137 |
58 |
श्रवण धनिष्ठा नक्षत्र जनसहयोग, रोग निवारण |
139 |
59 |
शतभिषा पूर्वोत्तराभाद्रपद विजय |
140 |
60 |
रेवती अश्विनी विद्याप्राप्ति |
142 |
61 |
अश्विनी भरणी नक्षत्र ऐश्वर्य की प्राप्ति |
144 |
62 |
कृत्तिका रोहिणी सौभाग्यवृद्धि, जीवनसाथी का सहयोग |
146 |
63 |
मृगशिरा नक्षत्र, तिथियां सौभाग्यवृद्धि, सहयोगी की प्राप्ति |
148 |
64 |
आर्द्रा पुनर्वसु नक्षत्र, व्याध तारा भविष्य कथन शक्ति, सर्वत्र प्रशंसा |
151 |
65 |
पुष्य श्लेषा मघा नक्षत्र सर्वत्र विजय |
152 |
66 |
पूर्वोत्तरा फाल्गुनी गीतसंगीत में सफलता |
154 |
67 |
हस्त चित्रा नक्षत्र ऐश्वर्य ओर सब लोगों का सहयोग |
156 |
68 |
स्वाती नक्षत्र लक्ष्मी प्राप्ति |
158 |
69 |
विशाखा व गण्डान्त नक्षत्र संगीत में सफलता |
160 |
70 |
अनुराधा नक्षत्र संकट निवारण,अपराध क्षमा |
161 |
71 |
ज्येष्ठा नक्षत्र सौभाग्य वृद्धि, प्रतिष्ठा प्राप्ति |
163 |
72 |
मूल नक्षत्र, क्षयमास का आधार वैभव प्राप्ति, अकेलापन निवारण |
165 |
73 |
पूर्वोत्तराषाढ़, वर्षाकारक सूर्य मंगल सन्तुष्टि, स्तनों में दूध, धाय मिलना |
167 |
74 |
अभिजित् नक्षत्र यश प्राप्ति, खोई प्रतिष्ठा की प्राप्ति |
169 |
75 |
आकाश में दूध का समुद्र कवित्व शक्ति, भाषणकला |
171 |
76 |
अभिजित् मण्डल में नीहारिका भयनिवारण, सबके हृदय में बसना |
173 |
77 |
आकाश में वैतरणी नदी सरकारी काम में सफलता अनुकूलता |
175 |
78 |
ध्रुव तारा व सप्तर्षि अभीष्ट सिद्धि |
177 |
79 |
द्विपुष्कर नक्षत्र सुख सम्पदा शुभता |
180 |
80 |
त्रिपुष्कर नक्षत्र, द्वादश भावस्पष्ट विरोध के स्वर शान्त |
181 |
81 |
अयन व गोल लगाव, आकर्षण, लगन पैदा करना |
183 |
82 |
अयन संक्रान्ति सर्वत्र विजय |
185 |
83 |
चन्द्रमा के पात, ग्रहों के शर छापे से सुरक्षा, विरोधी के प्रहार निष्फल |
186 |
84 |
आकाशीय ध्रुव अभीष्ट लाभ, जनता का आदर |
188 |
85 |
ध्रुवस्थानों की विशेपता सौभाग्यवृद्धि,सुखी विवाहित जीवन |
189 |
86 |
ध्रुव तारे का खिसकना विजय, सफलता, वाधानिवारण |
191 |
87 |
ध्रुवतारा,. अयनचलन मान सम्मान प्रतिष्ठा धन |
192 |
88 |
ध्रुव व पृथ्वी का सम्बध यशोलाभ, अभीष्ट सिद्धि |
194 |
89 |
भक्ति से कष्ट निवारण मानसम्मान, धनसम्पदा, मनोरथ पूर्ति |
196 |
90 |
नौ भेदों से कष्टनिवारण अभाव दरिद्रता, बाधाओं का अन्त |
197 |
91 |
सख्यभाव भक्ति से कष्टनिवारण नृत्य संगीत में सफलता, सम्पत्ति |
198 |
92 |
दास्य भक्ति से कष्टनिवारण राज्यलाभ, अभीष्ट प्राप्ति |
200 |
93 |
वन्दना भक्ति मे कष्टनिवारण अभीष्ट मनोरथ पूर्ण |
201 |
94 |
पूजा अर्चना, रत्न से लाभ अभाव की पूर्ति, मनोरथप्राप्ति |
203 |
95 |
चरणसेवा से कष्टनिवारण कष्टकारी घाव ठीक, सफलता |
205 |
96 |
नाम स्मरण से कष्टनिवारण धन विद्या, रोग शान्ति |
207 |
97 |
कीर्तिन भक्ति से कष्टनिवारण सन्तानोत्पत्ति, स्वस्थ शरीर |
208 |
98 |
श्रवण भक्ति से कष्टनिवारण सन्तानबाधा दूर, विद्या शिक्षा |
210 |
99 |
निर्गुण निराकार भक्ति पराक्रम, शौर्य, प्रतिष्ठा |
211 |
100 |
ज्योतिष संकेत सब कार्य सिद्ध |
213 |
दिव्य शताक्षरी मन्त्र |
215 |
|
अधिक तीन श्लोक |
216 |
|
पुष्पिका, श्लोकानुक्रमणी |
218-219 |
|
संक्षिप्त श्रीयन्त्र पूजन, श्रीयन्त्र |
220-224 |
पुस्तक के विषय में
माता भगवती त्रिपुरसुन्दरी के लाड़ले पुत्र शंकराचार्य को स्वयं भगवती ने अपना दूध पिलाकर सब विद्याओं में पारंगत होने का वरदान दिया था। भगवान् शिव की इच्छा और भगवती की आज्ञा से आपने वेदों में गुप्त रूप से निहित शताक्षरी महाविद्या का क्रमबद्ध व्यवस्थित विवरण सौन्दर्यलहरी के 100 श्लोकों में प्रस्तुत किया है।
अनुक्रमणिका |
||
श्लोक ज्योतिष संकेत मनोरथ सिद्धि |
||
1 |
सात ऊर्ध्वलोक सात ग्रह सर्वार्थसिद्धि |
9 |
2 |
शिशुमार कालिय नक्षत्रमण्डल कालभयनिवारण |
13 |
3 |
बारह सूर्य दरिद्रता निवारण, विद्या प्राप्ति |
17 |
4 |
ग्रहों और भगवती की समानता सिंहासन, पदवी पाना |
19 |
5 |
तीन जन्मलग्न मनमोहन व्यक्तित्व |
21 |
6 |
ग्रहस्पष्ट का महत्त्व विजय, सन्तान सुख |
24 |
7 |
संवत्मर के 12 मोती विरोधी विजय, सफलता |
26 |
8 |
पंचांग की महत्ता बन्धन बाधा निराकरण |
29 |
9 |
सौर परिवार के ग्रह उत्तम स्वास्थ्य, नीरोगिता |
32 |
10 |
108 नवांश शरीर शुद्धि, प्राकृतिक विकास |
36 |
11 |
भाव होरा घटी लग्न बांझपन निवारण |
38 |
12 |
लग्न का बल कविताशक्ति विद्वत्ता |
42 |
13 |
कुण्डली में ग्रहस्थिति आकर्षण, लोकप्रियता प्राप्ति |
44 |
14 |
तिथियां दुर्भिक्ष व रोग का निवारण |
46 |
15 |
विद्याविनयसम्पन्न दैवज्ञ विद्या व कवित्व प्राप्ति |
49 |
16 |
ग्रहपीड़ा का उपाय विद्या व कवित्व सिद्धि |
51 |
17 |
ज्योतिषी की योग्यता विद्वत्ता व ग्रथकार होना |
52 |
18 |
स्तुति पूजा से अनुकूल ग्रह सर्वजन वशीकरण |
55 |
19 |
कुण्डली में शिवशक्ति त्रिकोण राजा प्रजा की अनुकूलता |
56 |
20 |
ग्रहबल विचार अनिवार्य विषनाश रोगनिवारण |
59 |
21 |
लग्न योगी द्वारा ज्ञेय जनता द्वारा आदर |
61 |
22 |
मन्त्र और सदाचार से कष्ट दूर सुख सम्पदा वैभव प्राप्ति |
63 |
23 |
कुण्डली के वाम दक्षिण भाग अनिष्टनाश इष्टसिद्धि |
65 |
24 |
कुण्डली के तीन खण्ड तन मन के रोग निवारण |
67 |
25 |
उपाय ज्योतिष का महत्व उच्चपद व मनोरथ प्राप्ति |
69 |
26 |
दशान्तर्दशा शत्रुविजय सुखसमृद्धि दाम्पत्यसुख |
71 |
27 |
कर्मफल संकेत आध्यात्मिक उन्नति, साक्षात्कार |
73 |
28 |
ग्रहों की शुभाशुभता अपमृत्ये व कष्ट निवारण |
76 |
29 |
दूसरे ग्यारहवें भाव का तालमेल सर्ववशीकरण, समृद्धि |
78 |
30 |
त्रिकोणभावों में लक्ष्मी का वास अष्टसिद्धि प्राप्ति, अग्नि भयनिवृत्ति |
80 |
31 |
फलकथनं के आधार सर्वसुखभोग प्राप्ति |
64 |
32 |
कुण्डली व पोडशी मन्त्र की समानता दु:खनिवारण, विद्या में सफलता |
86 |
33 |
बारह भाव धनी होना |
89 |
34 |
ज्योतिष के नौ व्यूह विद्या बुद्धि प्राप्ति |
91 |
35 |
ग्रह और पंचतत्व रोग नाश, स्वास्थ्य लाभ |
95 |
36 |
कुण्डली रूप आज्ञाचक्र मे शिवशक्ति भय निवारण, कठिन रोग निवृत्ति |
97 |
37 |
एकादश रुद्र व तारामण्डल मनोविकारों से छुटकारा |
99 |
38 |
सूर्य चन्द्र ही शिवशक्ति विद्या ज्ञान प्राप्ति, बालारिष्ट निवारण |
102 |
39 |
होरा कुण्डली का विचार सुखशयन दुःस्वप्न, दरिद्रता निवारण |
104 |
40 |
तिथि नक्षत्रों की उत्पत्ति अभीष्ट सिद्धि |
106 |
41 |
द्रेष्काण चक प्रजननांगों के विकार, सन्ततिलाभ |
108 |
42 |
भगवती का नक्षत्रमय शरीर धनसमृद्धि उदर रोगों की शान्ति |
111 |
43 |
राशिचक्र के दो भाग सबका सहयोग अजातशत्रु होना |
113 |
44 |
वैदिक चित्रापक्षीय अयनांश सर्वविध कल्याण, बाधा निवारण |
115 |
45 |
नक्षत्र प्रजापति वाक् सिद्धि भविष्यकथन की शक्ति |
117 |
46 |
ग्रहबल व राजयोग प्रियतम से मिलन, सन्तानसुख |
119 |
47 |
सूर्य चन्द्र के दो पात सर्वजन अनुकूलता, निर्भयता |
121 |
48 |
यह काल का नियमन सब ग्रहों की प्रसन्नता |
123 |
49 |
ग्रहों का सम्बनध व दृष्टि सौभाग्यवृद्धि, धनवृद्धि |
124 |
50 |
दैवज्ञ की मूल योग्यता खसरा चेचक शान्ति, विरोधियों में फूट |
126 |
51 |
नवग्रह व द्वादशभाव इष्टसिद्धि, जनसहयोग |
127 |
52 |
श्रवण धनिष्ठा का महत्त्व नेत्रकर्णरोग शान्ति, अधिकारी अनुकूल |
129 |
53 |
लग्न चन्द्र व सूर्य कुण्डली ज्ञान प्राप्ति |
131 |
54 |
ज्योतिष के तीन स्कन्ध पापनाश गुप्तरोग निवारण |
132 |
55 |
ग्रहों का उदयास्त सुरक्षा, अण्डकोष विकार की शान्ति |
134 |
56 |
मीनान्त बिन्दु व दक्षिणोत्तर गोल सफलता में रुकावट दूर, वर्षा होना |
135 |
57 |
दिन रात का घटना बढ़ना भाग्यवृद्धि, संकट निवारण |
137 |
58 |
श्रवण धनिष्ठा नक्षत्र जनसहयोग, रोग निवारण |
139 |
59 |
शतभिषा पूर्वोत्तराभाद्रपद विजय |
140 |
60 |
रेवती अश्विनी विद्याप्राप्ति |
142 |
61 |
अश्विनी भरणी नक्षत्र ऐश्वर्य की प्राप्ति |
144 |
62 |
कृत्तिका रोहिणी सौभाग्यवृद्धि, जीवनसाथी का सहयोग |
146 |
63 |
मृगशिरा नक्षत्र, तिथियां सौभाग्यवृद्धि, सहयोगी की प्राप्ति |
148 |
64 |
आर्द्रा पुनर्वसु नक्षत्र, व्याध तारा भविष्य कथन शक्ति, सर्वत्र प्रशंसा |
151 |
65 |
पुष्य श्लेषा मघा नक्षत्र सर्वत्र विजय |
152 |
66 |
पूर्वोत्तरा फाल्गुनी गीतसंगीत में सफलता |
154 |
67 |
हस्त चित्रा नक्षत्र ऐश्वर्य ओर सब लोगों का सहयोग |
156 |
68 |
स्वाती नक्षत्र लक्ष्मी प्राप्ति |
158 |
69 |
विशाखा व गण्डान्त नक्षत्र संगीत में सफलता |
160 |
70 |
अनुराधा नक्षत्र संकट निवारण,अपराध क्षमा |
161 |
71 |
ज्येष्ठा नक्षत्र सौभाग्य वृद्धि, प्रतिष्ठा प्राप्ति |
163 |
72 |
मूल नक्षत्र, क्षयमास का आधार वैभव प्राप्ति, अकेलापन निवारण |
165 |
73 |
पूर्वोत्तराषाढ़, वर्षाकारक सूर्य मंगल सन्तुष्टि, स्तनों में दूध, धाय मिलना |
167 |
74 |
अभिजित् नक्षत्र यश प्राप्ति, खोई प्रतिष्ठा की प्राप्ति |
169 |
75 |
आकाश में दूध का समुद्र कवित्व शक्ति, भाषणकला |
171 |
76 |
अभिजित् मण्डल में नीहारिका भयनिवारण, सबके हृदय में बसना |
173 |
77 |
आकाश में वैतरणी नदी सरकारी काम में सफलता अनुकूलता |
175 |
78 |
ध्रुव तारा व सप्तर्षि अभीष्ट सिद्धि |
177 |
79 |
द्विपुष्कर नक्षत्र सुख सम्पदा शुभता |
180 |
80 |
त्रिपुष्कर नक्षत्र, द्वादश भावस्पष्ट विरोध के स्वर शान्त |
181 |
81 |
अयन व गोल लगाव, आकर्षण, लगन पैदा करना |
183 |
82 |
अयन संक्रान्ति सर्वत्र विजय |
185 |
83 |
चन्द्रमा के पात, ग्रहों के शर छापे से सुरक्षा, विरोधी के प्रहार निष्फल |
186 |
84 |
आकाशीय ध्रुव अभीष्ट लाभ, जनता का आदर |
188 |
85 |
ध्रुवस्थानों की विशेपता सौभाग्यवृद्धि,सुखी विवाहित जीवन |
189 |
86 |
ध्रुव तारे का खिसकना विजय, सफलता, वाधानिवारण |
191 |
87 |
ध्रुवतारा,. अयनचलन मान सम्मान प्रतिष्ठा धन |
192 |
88 |
ध्रुव व पृथ्वी का सम्बध यशोलाभ, अभीष्ट सिद्धि |
194 |
89 |
भक्ति से कष्ट निवारण मानसम्मान, धनसम्पदा, मनोरथ पूर्ति |
196 |
90 |
नौ भेदों से कष्टनिवारण अभाव दरिद्रता, बाधाओं का अन्त |
197 |
91 |
सख्यभाव भक्ति से कष्टनिवारण नृत्य संगीत में सफलता, सम्पत्ति |
198 |
92 |
दास्य भक्ति से कष्टनिवारण राज्यलाभ, अभीष्ट प्राप्ति |
200 |
93 |
वन्दना भक्ति मे कष्टनिवारण अभीष्ट मनोरथ पूर्ण |
201 |
94 |
पूजा अर्चना, रत्न से लाभ अभाव की पूर्ति, मनोरथप्राप्ति |
203 |
95 |
चरणसेवा से कष्टनिवारण कष्टकारी घाव ठीक, सफलता |
205 |
96 |
नाम स्मरण से कष्टनिवारण धन विद्या, रोग शान्ति |
207 |
97 |
कीर्तिन भक्ति से कष्टनिवारण सन्तानोत्पत्ति, स्वस्थ शरीर |
208 |
98 |
श्रवण भक्ति से कष्टनिवारण सन्तानबाधा दूर, विद्या शिक्षा |
210 |
99 |
निर्गुण निराकार भक्ति पराक्रम, शौर्य, प्रतिष्ठा |
211 |
100 |
ज्योतिष संकेत सब कार्य सिद्ध |
213 |
दिव्य शताक्षरी मन्त्र |
215 |
|
अधिक तीन श्लोक |
216 |
|
पुष्पिका, श्लोकानुक्रमणी |
218-219 |
|
संक्षिप्त श्रीयन्त्र पूजन, श्रीयन्त्र |
220-224 |