लेखिका के विषय में
डॉ. शाहीना तबस्सुम
जन्म: दिल्ली
शिक्षा: एम ए., एम फिल पीएच डी, दिल्ली विश्वविद्यालय उर्दू पुस्तकें फरहग-ए-कलाम-ए-मीर (आलोचनात्मक भूमिका सहित), उर्दू में जदीद शेअरी रिवायत तसलसुल और इन्हिराफ़ (आलोचना) इक्कीसवीं सदी की शायरी (संपादन), मिस्टर जिनाह (अनुवाद) शेअर-ओ-अदब के बाब में (आलोचना), मेवे के पेड़ (अनुवाद) हिंदी पुस्तकें कुर्रतुल-ऐन-हैदर की श्रेष्ठ कहानियाँ (अनुवाद) उड़ान की शर्त, हिंदी कहानियाँ (संपादन), ज़ाफ़री की शायरी (संपादन), कुछ गजलें कुछ गीत (संपादन) पुरस्कार' मिर्जा गालिब प्रोईज़ (दिल्ली विश्वविद्यालय), दिल्ली, उर्दू अकादमी तथा उतर प्रदेश उर्दू अकादमी द्वारा पुस्तकों पर पुरस्कार ।
संप्रति: असिस्टेंट प्रोफेसर, जाकिर हुसैन पोस्ट ग्रेजुएट इवनिंग कॉलेज (दिल्ली विश्वविद्यालय) दिल्ली।
लेखक के विषय में
डॉ. कुलदीप सलिल
जन्म: 30 दिसंबर, 1938, सियालकोट (पाकिस्तान)
कुलदीप सलिल का पहला कवितासंग्रह 'बीस साल का सफर' सन् 1979 में प्रकाशित हुआ था कवि-समीक्षक सर्वेश्वर दयाल सक्सेना ने जो उन दिनों सारिका के संपादक थे, अपनी वार्षिक समीक्षा में इसकी गणना वर्ष के सर्वश्रेष्ठ पुस्तकों में की यह संग्रह काफी चर्चित रहा । कुलदीप सलिल की दूसरी काव्य पुस्तक 'हवस के शहर में' जो कि एक गजल सग्रह है सन् 1987 में सामने आया पुस्तकाकार होने से पहले इस पूरे सग्रह को 'दीर्घा' ने अपने एक विशेषांक में प्रकाशित किया। दिल्ली हिंदी अकादमी ने 'साहित्यिक कृति पुरस्कार' के अंतर्गत इस सग्रहको सम्मानित किया । 'हवस के शहर में' से एक ग़ज़लकार के रूप में कुलदीप सलिल की पहचान बन गई। इनकी तीसरी पुस्तक ( और द्वय ग़ज़ल संग्रह) 'जो कह न सके' सर 2000 में प्रकाशित हुआ। और सन् 2004 में 'आवाज का रिश्ता' शीर्षक से तीसरा ग़ज़ल संग्रहवाणी प्रकाशन से सामने आया सन् 2005 में 20 अंग्रेज़ी काइयों का हिंदी काव्यानुवाद अग्रेजी के श्रेष्ठ कवि और उनकी श्रेष्ठ 'कविताएँ' के नाम से छपा हिंदी के अलावा अनेक पत्र-पत्रिकाओं मे इनकी अंग्रेज़ी कविताएँ हिंदी काव्यानुवाद सहित नियमित रूप मे कई वर्षों से प्रकाशित हो रही हैं । हाल में ही कुलदीप सलिल के ग़ालिब, फ़ैज, इक़बाल और अहमद फ़राज़ की कविता के अंग्रेज़ी काव्यानुवाद सामने आए हैं इस अनुवाद के लिए इन्हें साहित्य अकादमी और डी. ए. वी. लिटरेरी अवार्डसे कमेटी ने पुरस्कृत किया।
कुलदीप सलिल ने दिल्ली विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र और अंग्रेज़ी में एम. ए. किया वे दिल्ली विश्वविद्यालय के हंसराज कॉलेज से अंग्रेज़ी विभाग से रीडर के पद से सेवामुक्त हुए हैं।
प्रकाशकीय
यह प्रसन्नता का विषय है कि नई पीढी में उर्दू शायरों को पढने-समझने का शौक बढ़ रहा है हम सभी का अनुभव यही है कि एक नया पाठकसमाज सामने आ रहा है और इस समाज की जड़ीभूत सौंदर्याभिरुचियाँ टूटी हैं रोजमर्रा की जिदगी में उर्दू-शायरी का बोलबाला बढा है और प्रबुद्ध वर्ग भाषणों-वार्ताओं में उर्दू शेर बोलता है उर्दूकी सबसे कीमती चीज है-उर्दू-ग़ज़ल उर्दू-ग़ज़ल का चस्का हिंदी-पाठकों कवियों को ऐसा लग गया है कि हिंदी के अनेक कवि उर्दू गजल की तर्ज पर हिंदी में ग़ज़ल लिख रहे हैं और हिंदी कवि सम्मेलनों में उर्दू ग़ज़ल की धूम रहती है । हिंदी के कवि उर्दू-ग़ज़ल मे नए-नए प्रयोग कर रहे हैं और इसमें नया भाव-बोध आ रहा है उर्दू जानने वालों की सख्या कम हो रही हे, लेकिन उर्दू शायरी के संकलन भारतीय भाषाओं के बाजार में खूब बिक रहे हैं इसका कारण है कि खडी बोली में हिंदी उर्दू दोनों भाषाओं के शब्द एकखास रग और लय का आनंद बढ़ा रहे हैं यह बात कितनी दिलचस्प है कि खड़ी बोली का पहला नमूना अमीर खुसरो में मिलता है।
आज उर्दू शायरी के नाम पर केवल जाम-ओ-मीना का, कोरे इश्क-मुहब्बत की सात खत्म हो चुकी है भारत में उर्दू सांस्कृतिक नवजागरण में सहयोग देनेवाली भाषा रही है आजादी के आंदोलन का एक बड़ा देशभक्ति, प्रकृति प्रेम का अरमान उर्दू-कविता में मिलता है। उर्दू में हिंदी की तरह हमारी जातीय अस्मिता निखरकर सामने आती है। सौंदर्य-बोध का नया गुलदस्ता उर्दू सजाती-सँवारती है । इस संकलन में वली दकनी से लेकर फ़ैज अहमद फ़ैज, बशीर बद्र, निदा फ़ाज़ली तक को आप एक साथ पाएँगे । मैं हिंदी-उर्दू-अंग्रेजी के विद्वान प्रो. कुलदीप सलिल के प्रति अपनी हार्दिक कृतज्ञता व्यक्त करता हूँ जिन्होंने एक विशिष्ट भूमिका के साथ यह संकलन पाठकों तक पहुँचाने का अविस्मरणीय श्रम किया है । हमें विश्वास है कि इस संकलन का पाठक खुले दिल से स्वागत करेंगे।
अनुक्रम |
||
1 |
दो शब्द |
13 |
2 |
वली दकनी |
27 |
3 |
जिसे इश्क का तीर कारी लगे |
28 |
4 |
कूच: ए-यार ऐन कासी है |
29 |
5 |
मीर तक़ी मीर |
30 |
6 |
यारो, मुझे मुआफ रखो, मैं नशे में हूँ |
32 |
7 |
ग़फ़िल हैं ऐसे सोते हैं गोया जहाँ के लोग |
33 |
8 |
फ़क़ीराना आए सदा कर चले |
34 |
9 |
उल्टी हो गईं सब तदबीरें कुछ न दवा ने काम किया |
35 |
10 |
पत्ता-पत्ता बूटा-बूटा हाल हमारा जाने है |
36 |
11 |
सोज़िशे-दिल से मुफ्त गलते हैं |
37 |
12 |
आ जाएँ हम नज़र कोई दम ये बहुत है याँ |
38 |
13 |
नजीर अकबराबादी |
39 |
14 |
बुढ़ापा |
40 |
15 |
मुहम्मद रफ़ी 'सौदा' |
42 |
16 |
गुल फेंके हैं औरों की तरफ बल्कि समर भी |
44 |
17 |
बदला तेरे सितम का कोई तुझसे क्या करे |
45 |
18 |
ख़्वाजा मीर दर्द |
46 |
19 |
तोहमतें चंद अपने जिम्मे धर चले |
47 |
20 |
हम तुझसे किस हवस की फलक जुस्तजू करें |
48 |
21 |
इन्शा अल्लाह ख़ाँ 'इन्शा' |
49 |
22 |
कमर बाँधे हुए चलने को याँ सब यार बैठे हैं |
50 |
23 |
असद उल्लाह ख़ाँ 'ग़ालिब' |
51 |
24 |
ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाले-यार होता |
53 |
25 |
आह को चाहिए इक उम्र, असर होने तक |
54 |
26 |
किसी को देके दिल कोई नवा संजे-फुग़ाँ क्यों हो |
55 |
27 |
वो फ़िराक़ और वो विसाल कहाँ |
56 |
28 |
नुक्ताचीं है ग़मे-दिल उसको सुनाए न बने |
57 |
29 |
दिल ही तो है, न संगो-ख़िश्त दर्द से भर न आए क्यों |
58 |
30 |
बाज़ीच-ए- अत्फ़ाल है दुनिया, मिरे आगे |
59 |
31 |
सब कहाँ-कुछ लाला- ओ-गुल में नुमायाँ हो गईं |
60 |
32 |
शेख़ मोहम्मद इब्राहीम ज़ौक |
61 |
33 |
लाई हयात आए क़ज़ा ले चली, चले |
63 |
34 |
अब तो घबरा के ये कहते हैं कि मर जाएँगे |
64 |
35 |
मोमिन ख़ाँ मोमिन |
65 |
36 |
वो जो हम में तुम में क़रार था, तुम्हें याद हो कि न याद हो |
67 |
37 |
नावक-अंदाज़ जिधर दीद:-ए-जानाँ होंगे |
68 |
38 |
बहादुर शाह ज़फ़र |
69 |
39 |
न किसी की आख का नूर हूँ न किसी के दिल का क़रार हूँ |
71 |
40 |
लगता नहीं है दिल मेरा, उजड़े दयार में |
72 |
41 |
दाग़ देहलवी |
73 |
42 |
ख़ातिर से या लिहाज़ से मैं मान तो गया |
75 |
43 |
दिल गया, तुमने लिया हम क्या करें |
76 |
44 |
हसरत मोहानी |
77 |
45 |
भुलाता लाख हूँ लेकिन बराबर याद आते हैं |
78 |
46 |
मोहम्मद इक़बाल |
79 |
47 |
साक़ी नामा |
81 |
48 |
सितारों से आगे जहाँ और भी हैं |
84 |
49 |
तराना-ए-हिंदी |
85 |
50 |
नया शिवाला |
87 |
51 |
तस्वीरे-दर्द |
89 |
52 |
अकबर इलाहाबादी |
92 |
53 |
दुनिया में हूँ दुनिया का तलबगार नहीं हूँ |
94 |
54 |
फ़लसफ़ी को बहस के अंदर खुदा मिलता नहीं |
95 |
55 |
एक फ़रज़ी लतीफ़ा |
96 |
56 |
हंगामा है क्यों बरपा |
97 |
57 |
अख़्तर शीरानी |
98 |
58 |
ओ देस से आनेवाले बता |
99 |
59 |
मजाज़ लखनवी |
101 |
60 |
जमाले-इश्क़ में दीवाना |
103 |
61 |
आवारा |
104 |
62 |
नौजवान ख़ातून से |
107 |
63 |
जुनूने-शौक़ अब भी कम नहीं है |
109 |
64 |
इज़्मे-ख़िराम लेते हुए आस्माँ से हम |
110 |
65 |
जोश मलीहाबादी |
111 |
66 |
शिकस्ते-ज़िंदाँ |
113 |
67 |
एक गीत |
114 |
68 |
सोज़े-ग़म दे के मुझे उसने ये इर्शाद किया |
116 |
69 |
गुंचे! तेरी सादगी पे दिल हिलता है |
117 |
70 |
जिगर मुरादाबादी |
118 |
71 |
इक लफ़्ज़-ए-मुहब्बत का अदना यह फ़साना है |
120 |
72 |
मोहब्बत में क्या-क्या मुक़ाम आ रहे हैं |
121 |
73 |
साक़ी की हर निगाह पे बल खा के पी गया |
122 |
74 |
दुनिया के सितम याद, न अपनी ही वफ़ा याद |
123 |
75 |
हफ़ीज़ जालंधरी |
124 |
76 |
अभी तो मैं जवान हूँ |
126 |
77 |
हम ही में थी न कोई बात याद न तुम को आ सके |
130 |
78 |
फ़िराक़ गोरखपुरी |
131 |
79 |
किसी का यूँ तो हुआ कौन उम्र भर फिर भी |
133 |
80 |
सितारों से उलझता जा रहा हूँ |
134 |
81 |
सुकूते-शाम मिटाओ, बहुत अँधेरा है |
135 |
82 |
शाम भी थी बुआ धुआँ? हुस्न भी था उदास उदास |
136 |
83 |
शामे-ग़म कुछ उस निगाहे-नाज़ की बातें करो |
137 |
84 |
सर में सौदा भी नहीं, दिल में तमन्ना भी नहीं |
138 |
85 |
शकील बदायूनी |
139 |
86 |
ग़म-ए-आशिक़ी से कह दो रह-ए- आम तक न पहुँचे |
140 |
87 |
आज वो भी इश्क़ के मारे नज़र आने लगे |
141 |
88 |
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ |
142 |
89 |
शामे-फ़िराक़ अब न पूछ, आई और आके टल गई |
144 |
90 |
मुझसे पहली-सी मोहब्बत मेरी महबूब न माँग |
145 |
91 |
गुलों में रंग भरे बादे-नौबहार चले |
146 |
92 |
मेरे हमदम मेरे दोस्त |
147 |
93 |
निसार मैं तेरी गलियों पे |
149 |
94 |
अब वही हर्फ़े-जुनूँ सब की ज़बाँ ठहरी है |
151 |
95 |
जाँ निसार अख़्तर |
152 |
96 |
आख़िरी मुलाक़ात |
154 |
97 |
हर एक रूह में इक ग़म छिपा लगे है मुझे |
157 |
98 |
साहिर लुधियानवी |
158 |
99 |
ताजमहल |
160 |
100 |
मादाम |
162 |
101 |
जब कभी उनकी तवज्जोह में कमी पाई गई |
164 |
102 |
चंद कलियाँ निशात की चुनकर |
165 |
103 |
अख़तर-उल-ईमान |
166 |
104 |
उम्रे-गुरेज़ाँ के नाम |
168 |
105 |
एक सवाल |
170 |
106 |
कैफ़ी आज़मी |
171 |
107 |
सोमनाथ |
173 |
108 |
एक लम्हा |
174 |
109 |
ख़ारो-ख़स तो उठे, रास्ता तो चले |
175 |
110 |
अली सरदार ज़ाफ़री |
176 |
111 |
सुबहे-फ़रदा |
178 |
112 |
मेरा सफ़र |
180 |
113 |
मजरूह सुलतानपुरी |
183 |
114 |
मुझे सहल हो गईं मंजिलें वो हवा के रुख भी बदल गए |
184 |
115 |
जब हुआ इरफ़ाँ तो ग़म आराम-ए-जाँ बनता गया |
185 |
116 |
नासिर काज़मी |
186 |
117 |
गए दिनों का सुराग़ लेकर किधर से आया किधर गया वो |
188 |
118 |
दयारे-दिल की रात में चिराग़-सा जला गया |
189 |
119 |
नुशूर वाहिदी |
190 |
120 |
नई दुनिया मुजस्सम दिलकशी |
191 |
121 |
क़तील शिफ़ाई |
192 |
122 |
ये मोजिज़ा भी मुहब्बत कभी दिखाए मुझे |
194 |
123 |
उस अदा से भी हूँ मैं आशना, तुझे जिस पे इतना ग़रुर है |
195 |
124 |
अहमद फ़राज़ |
196 |
125 |
अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख्वाबों में मिलें |
198 |
126 |
रंजिश ही सही, दिल ही दुखाने के लिए आ |
199 |
127 |
अब के ऋतु बदली तो खुशबू का सफ़र देखेगा कौन |
200 |
128 |
परवीन शाकिर |
201 |
129 |
बारिश हुई तो फूलों के तन चाक हो गए |
203 |
130 |
चेहरा मेरा था निगाहें उसकी |
204 |
131 |
शहरयार |
205 |
132 |
तुम्हारे शहर में कुछ भी हुआ नहीं है क्या |
207 |
133 |
तेरे सिवा भी मुझे कोई याद आनेवाला था |
208 |
134 |
कुछ शे'र |
209 |
135 |
बशीर बद्र |
211 |
136 |
कोई फूल धूप की पत्तियों में हरे रिबन से बँधा हुआ |
213 |
137 |
यूँ ही बेसबब न फिरा करो, कोई शाम घर भी रहा करो |
214 |
138 |
निदा फ़ाज़ली |
215 |
139 |
दुनिया जिसे कहते हैं, जादू का खिलौना है |
217 |
140 |
ऐलान |
218 |
141 |
सादिक़ |
219 |
142 |
तुम्हें क्या पता है |
220 |
143 |
बिछड़ा हर एक फ़र्द भरे ख़ानदान का |
222 |
144 |
कुलदीप सलिल |
223 |
145 |
इस क़दर कोई बड़ा हो, मुझे मंज़ूर नहीं |
225 |
146 |
दिन फ़ुर्सतों के, चाँदनी की रात बेचकर |
226 |
147 |
है जो कुछ पास अपने सब लिए सरकार बैठे हैं |
227 |
लेखिका के विषय में
डॉ. शाहीना तबस्सुम
जन्म: दिल्ली
शिक्षा: एम ए., एम फिल पीएच डी, दिल्ली विश्वविद्यालय उर्दू पुस्तकें फरहग-ए-कलाम-ए-मीर (आलोचनात्मक भूमिका सहित), उर्दू में जदीद शेअरी रिवायत तसलसुल और इन्हिराफ़ (आलोचना) इक्कीसवीं सदी की शायरी (संपादन), मिस्टर जिनाह (अनुवाद) शेअर-ओ-अदब के बाब में (आलोचना), मेवे के पेड़ (अनुवाद) हिंदी पुस्तकें कुर्रतुल-ऐन-हैदर की श्रेष्ठ कहानियाँ (अनुवाद) उड़ान की शर्त, हिंदी कहानियाँ (संपादन), ज़ाफ़री की शायरी (संपादन), कुछ गजलें कुछ गीत (संपादन) पुरस्कार' मिर्जा गालिब प्रोईज़ (दिल्ली विश्वविद्यालय), दिल्ली, उर्दू अकादमी तथा उतर प्रदेश उर्दू अकादमी द्वारा पुस्तकों पर पुरस्कार ।
संप्रति: असिस्टेंट प्रोफेसर, जाकिर हुसैन पोस्ट ग्रेजुएट इवनिंग कॉलेज (दिल्ली विश्वविद्यालय) दिल्ली।
लेखक के विषय में
डॉ. कुलदीप सलिल
जन्म: 30 दिसंबर, 1938, सियालकोट (पाकिस्तान)
कुलदीप सलिल का पहला कवितासंग्रह 'बीस साल का सफर' सन् 1979 में प्रकाशित हुआ था कवि-समीक्षक सर्वेश्वर दयाल सक्सेना ने जो उन दिनों सारिका के संपादक थे, अपनी वार्षिक समीक्षा में इसकी गणना वर्ष के सर्वश्रेष्ठ पुस्तकों में की यह संग्रह काफी चर्चित रहा । कुलदीप सलिल की दूसरी काव्य पुस्तक 'हवस के शहर में' जो कि एक गजल सग्रह है सन् 1987 में सामने आया पुस्तकाकार होने से पहले इस पूरे सग्रह को 'दीर्घा' ने अपने एक विशेषांक में प्रकाशित किया। दिल्ली हिंदी अकादमी ने 'साहित्यिक कृति पुरस्कार' के अंतर्गत इस सग्रहको सम्मानित किया । 'हवस के शहर में' से एक ग़ज़लकार के रूप में कुलदीप सलिल की पहचान बन गई। इनकी तीसरी पुस्तक ( और द्वय ग़ज़ल संग्रह) 'जो कह न सके' सर 2000 में प्रकाशित हुआ। और सन् 2004 में 'आवाज का रिश्ता' शीर्षक से तीसरा ग़ज़ल संग्रहवाणी प्रकाशन से सामने आया सन् 2005 में 20 अंग्रेज़ी काइयों का हिंदी काव्यानुवाद अग्रेजी के श्रेष्ठ कवि और उनकी श्रेष्ठ 'कविताएँ' के नाम से छपा हिंदी के अलावा अनेक पत्र-पत्रिकाओं मे इनकी अंग्रेज़ी कविताएँ हिंदी काव्यानुवाद सहित नियमित रूप मे कई वर्षों से प्रकाशित हो रही हैं । हाल में ही कुलदीप सलिल के ग़ालिब, फ़ैज, इक़बाल और अहमद फ़राज़ की कविता के अंग्रेज़ी काव्यानुवाद सामने आए हैं इस अनुवाद के लिए इन्हें साहित्य अकादमी और डी. ए. वी. लिटरेरी अवार्डसे कमेटी ने पुरस्कृत किया।
कुलदीप सलिल ने दिल्ली विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र और अंग्रेज़ी में एम. ए. किया वे दिल्ली विश्वविद्यालय के हंसराज कॉलेज से अंग्रेज़ी विभाग से रीडर के पद से सेवामुक्त हुए हैं।
प्रकाशकीय
यह प्रसन्नता का विषय है कि नई पीढी में उर्दू शायरों को पढने-समझने का शौक बढ़ रहा है हम सभी का अनुभव यही है कि एक नया पाठकसमाज सामने आ रहा है और इस समाज की जड़ीभूत सौंदर्याभिरुचियाँ टूटी हैं रोजमर्रा की जिदगी में उर्दू-शायरी का बोलबाला बढा है और प्रबुद्ध वर्ग भाषणों-वार्ताओं में उर्दू शेर बोलता है उर्दूकी सबसे कीमती चीज है-उर्दू-ग़ज़ल उर्दू-ग़ज़ल का चस्का हिंदी-पाठकों कवियों को ऐसा लग गया है कि हिंदी के अनेक कवि उर्दू गजल की तर्ज पर हिंदी में ग़ज़ल लिख रहे हैं और हिंदी कवि सम्मेलनों में उर्दू ग़ज़ल की धूम रहती है । हिंदी के कवि उर्दू-ग़ज़ल मे नए-नए प्रयोग कर रहे हैं और इसमें नया भाव-बोध आ रहा है उर्दू जानने वालों की सख्या कम हो रही हे, लेकिन उर्दू शायरी के संकलन भारतीय भाषाओं के बाजार में खूब बिक रहे हैं इसका कारण है कि खडी बोली में हिंदी उर्दू दोनों भाषाओं के शब्द एकखास रग और लय का आनंद बढ़ा रहे हैं यह बात कितनी दिलचस्प है कि खड़ी बोली का पहला नमूना अमीर खुसरो में मिलता है।
आज उर्दू शायरी के नाम पर केवल जाम-ओ-मीना का, कोरे इश्क-मुहब्बत की सात खत्म हो चुकी है भारत में उर्दू सांस्कृतिक नवजागरण में सहयोग देनेवाली भाषा रही है आजादी के आंदोलन का एक बड़ा देशभक्ति, प्रकृति प्रेम का अरमान उर्दू-कविता में मिलता है। उर्दू में हिंदी की तरह हमारी जातीय अस्मिता निखरकर सामने आती है। सौंदर्य-बोध का नया गुलदस्ता उर्दू सजाती-सँवारती है । इस संकलन में वली दकनी से लेकर फ़ैज अहमद फ़ैज, बशीर बद्र, निदा फ़ाज़ली तक को आप एक साथ पाएँगे । मैं हिंदी-उर्दू-अंग्रेजी के विद्वान प्रो. कुलदीप सलिल के प्रति अपनी हार्दिक कृतज्ञता व्यक्त करता हूँ जिन्होंने एक विशिष्ट भूमिका के साथ यह संकलन पाठकों तक पहुँचाने का अविस्मरणीय श्रम किया है । हमें विश्वास है कि इस संकलन का पाठक खुले दिल से स्वागत करेंगे।
अनुक्रम |
||
1 |
दो शब्द |
13 |
2 |
वली दकनी |
27 |
3 |
जिसे इश्क का तीर कारी लगे |
28 |
4 |
कूच: ए-यार ऐन कासी है |
29 |
5 |
मीर तक़ी मीर |
30 |
6 |
यारो, मुझे मुआफ रखो, मैं नशे में हूँ |
32 |
7 |
ग़फ़िल हैं ऐसे सोते हैं गोया जहाँ के लोग |
33 |
8 |
फ़क़ीराना आए सदा कर चले |
34 |
9 |
उल्टी हो गईं सब तदबीरें कुछ न दवा ने काम किया |
35 |
10 |
पत्ता-पत्ता बूटा-बूटा हाल हमारा जाने है |
36 |
11 |
सोज़िशे-दिल से मुफ्त गलते हैं |
37 |
12 |
आ जाएँ हम नज़र कोई दम ये बहुत है याँ |
38 |
13 |
नजीर अकबराबादी |
39 |
14 |
बुढ़ापा |
40 |
15 |
मुहम्मद रफ़ी 'सौदा' |
42 |
16 |
गुल फेंके हैं औरों की तरफ बल्कि समर भी |
44 |
17 |
बदला तेरे सितम का कोई तुझसे क्या करे |
45 |
18 |
ख़्वाजा मीर दर्द |
46 |
19 |
तोहमतें चंद अपने जिम्मे धर चले |
47 |
20 |
हम तुझसे किस हवस की फलक जुस्तजू करें |
48 |
21 |
इन्शा अल्लाह ख़ाँ 'इन्शा' |
49 |
22 |
कमर बाँधे हुए चलने को याँ सब यार बैठे हैं |
50 |
23 |
असद उल्लाह ख़ाँ 'ग़ालिब' |
51 |
24 |
ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाले-यार होता |
53 |
25 |
आह को चाहिए इक उम्र, असर होने तक |
54 |
26 |
किसी को देके दिल कोई नवा संजे-फुग़ाँ क्यों हो |
55 |
27 |
वो फ़िराक़ और वो विसाल कहाँ |
56 |
28 |
नुक्ताचीं है ग़मे-दिल उसको सुनाए न बने |
57 |
29 |
दिल ही तो है, न संगो-ख़िश्त दर्द से भर न आए क्यों |
58 |
30 |
बाज़ीच-ए- अत्फ़ाल है दुनिया, मिरे आगे |
59 |
31 |
सब कहाँ-कुछ लाला- ओ-गुल में नुमायाँ हो गईं |
60 |
32 |
शेख़ मोहम्मद इब्राहीम ज़ौक |
61 |
33 |
लाई हयात आए क़ज़ा ले चली, चले |
63 |
34 |
अब तो घबरा के ये कहते हैं कि मर जाएँगे |
64 |
35 |
मोमिन ख़ाँ मोमिन |
65 |
36 |
वो जो हम में तुम में क़रार था, तुम्हें याद हो कि न याद हो |
67 |
37 |
नावक-अंदाज़ जिधर दीद:-ए-जानाँ होंगे |
68 |
38 |
बहादुर शाह ज़फ़र |
69 |
39 |
न किसी की आख का नूर हूँ न किसी के दिल का क़रार हूँ |
71 |
40 |
लगता नहीं है दिल मेरा, उजड़े दयार में |
72 |
41 |
दाग़ देहलवी |
73 |
42 |
ख़ातिर से या लिहाज़ से मैं मान तो गया |
75 |
43 |
दिल गया, तुमने लिया हम क्या करें |
76 |
44 |
हसरत मोहानी |
77 |
45 |
भुलाता लाख हूँ लेकिन बराबर याद आते हैं |
78 |
46 |
मोहम्मद इक़बाल |
79 |
47 |
साक़ी नामा |
81 |
48 |
सितारों से आगे जहाँ और भी हैं |
84 |
49 |
तराना-ए-हिंदी |
85 |
50 |
नया शिवाला |
87 |
51 |
तस्वीरे-दर्द |
89 |
52 |
अकबर इलाहाबादी |
92 |
53 |
दुनिया में हूँ दुनिया का तलबगार नहीं हूँ |
94 |
54 |
फ़लसफ़ी को बहस के अंदर खुदा मिलता नहीं |
95 |
55 |
एक फ़रज़ी लतीफ़ा |
96 |
56 |
हंगामा है क्यों बरपा |
97 |
57 |
अख़्तर शीरानी |
98 |
58 |
ओ देस से आनेवाले बता |
99 |
59 |
मजाज़ लखनवी |
101 |
60 |
जमाले-इश्क़ में दीवाना |
103 |
61 |
आवारा |
104 |
62 |
नौजवान ख़ातून से |
107 |
63 |
जुनूने-शौक़ अब भी कम नहीं है |
109 |
64 |
इज़्मे-ख़िराम लेते हुए आस्माँ से हम |
110 |
65 |
जोश मलीहाबादी |
111 |
66 |
शिकस्ते-ज़िंदाँ |
113 |
67 |
एक गीत |
114 |
68 |
सोज़े-ग़म दे के मुझे उसने ये इर्शाद किया |
116 |
69 |
गुंचे! तेरी सादगी पे दिल हिलता है |
117 |
70 |
जिगर मुरादाबादी |
118 |
71 |
इक लफ़्ज़-ए-मुहब्बत का अदना यह फ़साना है |
120 |
72 |
मोहब्बत में क्या-क्या मुक़ाम आ रहे हैं |
121 |
73 |
साक़ी की हर निगाह पे बल खा के पी गया |
122 |
74 |
दुनिया के सितम याद, न अपनी ही वफ़ा याद |
123 |
75 |
हफ़ीज़ जालंधरी |
124 |
76 |
अभी तो मैं जवान हूँ |
126 |
77 |
हम ही में थी न कोई बात याद न तुम को आ सके |
130 |
78 |
फ़िराक़ गोरखपुरी |
131 |
79 |
किसी का यूँ तो हुआ कौन उम्र भर फिर भी |
133 |
80 |
सितारों से उलझता जा रहा हूँ |
134 |
81 |
सुकूते-शाम मिटाओ, बहुत अँधेरा है |
135 |
82 |
शाम भी थी बुआ धुआँ? हुस्न भी था उदास उदास |
136 |
83 |
शामे-ग़म कुछ उस निगाहे-नाज़ की बातें करो |
137 |
84 |
सर में सौदा भी नहीं, दिल में तमन्ना भी नहीं |
138 |
85 |
शकील बदायूनी |
139 |
86 |
ग़म-ए-आशिक़ी से कह दो रह-ए- आम तक न पहुँचे |
140 |
87 |
आज वो भी इश्क़ के मारे नज़र आने लगे |
141 |
88 |
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ |
142 |
89 |
शामे-फ़िराक़ अब न पूछ, आई और आके टल गई |
144 |
90 |
मुझसे पहली-सी मोहब्बत मेरी महबूब न माँग |
145 |
91 |
गुलों में रंग भरे बादे-नौबहार चले |
146 |
92 |
मेरे हमदम मेरे दोस्त |
147 |
93 |
निसार मैं तेरी गलियों पे |
149 |
94 |
अब वही हर्फ़े-जुनूँ सब की ज़बाँ ठहरी है |
151 |
95 |
जाँ निसार अख़्तर |
152 |
96 |
आख़िरी मुलाक़ात |
154 |
97 |
हर एक रूह में इक ग़म छिपा लगे है मुझे |
157 |
98 |
साहिर लुधियानवी |
158 |
99 |
ताजमहल |
160 |
100 |
मादाम |
162 |
101 |
जब कभी उनकी तवज्जोह में कमी पाई गई |
164 |
102 |
चंद कलियाँ निशात की चुनकर |
165 |
103 |
अख़तर-उल-ईमान |
166 |
104 |
उम्रे-गुरेज़ाँ के नाम |
168 |
105 |
एक सवाल |
170 |
106 |
कैफ़ी आज़मी |
171 |
107 |
सोमनाथ |
173 |
108 |
एक लम्हा |
174 |
109 |
ख़ारो-ख़स तो उठे, रास्ता तो चले |
175 |
110 |
अली सरदार ज़ाफ़री |
176 |
111 |
सुबहे-फ़रदा |
178 |
112 |
मेरा सफ़र |
180 |
113 |
मजरूह सुलतानपुरी |
183 |
114 |
मुझे सहल हो गईं मंजिलें वो हवा के रुख भी बदल गए |
184 |
115 |
जब हुआ इरफ़ाँ तो ग़म आराम-ए-जाँ बनता गया |
185 |
116 |
नासिर काज़मी |
186 |
117 |
गए दिनों का सुराग़ लेकर किधर से आया किधर गया वो |
188 |
118 |
दयारे-दिल की रात में चिराग़-सा जला गया |
189 |
119 |
नुशूर वाहिदी |
190 |
120 |
नई दुनिया मुजस्सम दिलकशी |
191 |
121 |
क़तील शिफ़ाई |
192 |
122 |
ये मोजिज़ा भी मुहब्बत कभी दिखाए मुझे |
194 |
123 |
उस अदा से भी हूँ मैं आशना, तुझे जिस पे इतना ग़रुर है |
195 |
124 |
अहमद फ़राज़ |
196 |
125 |
अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख्वाबों में मिलें |
198 |
126 |
रंजिश ही सही, दिल ही दुखाने के लिए आ |
199 |
127 |
अब के ऋतु बदली तो खुशबू का सफ़र देखेगा कौन |
200 |
128 |
परवीन शाकिर |
201 |
129 |
बारिश हुई तो फूलों के तन चाक हो गए |
203 |
130 |
चेहरा मेरा था निगाहें उसकी |
204 |
131 |
शहरयार |
205 |
132 |
तुम्हारे शहर में कुछ भी हुआ नहीं है क्या |
207 |
133 |
तेरे सिवा भी मुझे कोई याद आनेवाला था |
208 |
134 |
कुछ शे'र |
209 |
135 |
बशीर बद्र |
211 |
136 |
कोई फूल धूप की पत्तियों में हरे रिबन से बँधा हुआ |
213 |
137 |
यूँ ही बेसबब न फिरा करो, कोई शाम घर भी रहा करो |
214 |
138 |
निदा फ़ाज़ली |
215 |
139 |
दुनिया जिसे कहते हैं, जादू का खिलौना है |
217 |
140 |
ऐलान |
218 |
141 |
सादिक़ |
219 |
142 |
तुम्हें क्या पता है |
220 |
143 |
बिछड़ा हर एक फ़र्द भरे ख़ानदान का |
222 |
144 |
कुलदीप सलिल |
223 |
145 |
इस क़दर कोई बड़ा हो, मुझे मंज़ूर नहीं |
225 |
146 |
दिन फ़ुर्सतों के, चाँदनी की रात बेचकर |
226 |
147 |
है जो कुछ पास अपने सब लिए सरकार बैठे हैं |
227 |