पुस्तक के विषय में
'वाङ्चू' सुख्यात कथाकार भीष्म साहनी की ग्यारह कहानियों का संग्रह है | इन कहानियों में सोददेश्यता निर्वहन के साथ साथ हृदयग्राही अंतरगता और रसमयता दर्शनीय है | इन्हें व्यापक सामाजिक परिप्रेक्ष्य में लिखा गया है, किन्तु जीवन सन्दर्भ के चयन में विविधता राखी गयी है जिससे रोचकता और प्रभाव में वृद्धि हुई है | इस प्रसंग में संग्रह की एक कहानी 'वाङ्चू' जिसके आधार पे पुस्तक का नामकरण हुआ है और दूसरी कहानी 'राधा अनुराधा' को ले सकते है | पहली में एक विस्थापित चीनी मानस की निरीहता का चित्रण है तो दूसरी, अभावों और यातनाओं में पली एक निम्नवर्गीय किशोरी नायिका के रोमांस की करूँ उच्छ्वास कथा है | 'ओ हरामजादे' शीर्षक व्यंग्यात्मक है, किन्तु कहानी प्रवासी भारतीय मानस की पीड़ा की परतों को खोलती है | इसी तरह अन्य कहानियाँ भी मन पर अलग अलग प्रभाव छोड़ती है तथा आज के सामाजिक जीवन की विषमताओं को रेखांकित करती है |
पुस्तक के विषय में
'वाङ्चू' सुख्यात कथाकार भीष्म साहनी की ग्यारह कहानियों का संग्रह है | इन कहानियों में सोददेश्यता निर्वहन के साथ साथ हृदयग्राही अंतरगता और रसमयता दर्शनीय है | इन्हें व्यापक सामाजिक परिप्रेक्ष्य में लिखा गया है, किन्तु जीवन सन्दर्भ के चयन में विविधता राखी गयी है जिससे रोचकता और प्रभाव में वृद्धि हुई है | इस प्रसंग में संग्रह की एक कहानी 'वाङ्चू' जिसके आधार पे पुस्तक का नामकरण हुआ है और दूसरी कहानी 'राधा अनुराधा' को ले सकते है | पहली में एक विस्थापित चीनी मानस की निरीहता का चित्रण है तो दूसरी, अभावों और यातनाओं में पली एक निम्नवर्गीय किशोरी नायिका के रोमांस की करूँ उच्छ्वास कथा है | 'ओ हरामजादे' शीर्षक व्यंग्यात्मक है, किन्तु कहानी प्रवासी भारतीय मानस की पीड़ा की परतों को खोलती है | इसी तरह अन्य कहानियाँ भी मन पर अलग अलग प्रभाव छोड़ती है तथा आज के सामाजिक जीवन की विषमताओं को रेखांकित करती है |