पुस्तक परिचय
प्रस्तुत पुस्तक योग महाविज्ञान प्राचीन ऋषि परंपरा से आविभूर्त योग विद्या का सरल एवं व्यावहारिक स्वरुप प्रस्तुत करने का एक अपूर्व प्रयास है । इस ग्रंथ के अर्न्तगत वेद, उपनिषद, योगवशिष्ठ, श्रीमद्भगवद्गीता, पातंजल योग सूत्र एवं हठ यौगिक ग्रंथो में उपलब्ध योग विज्ञान के महत्वपूर्ण सूत्रों को प्रकाश में लाते हुए विभिन्न धर्मो के योग के स्वरुप को उजागर करने के साथ साथ महान योगियों की जीवन साधना के माध्यम से योग के प्रति आम धारणाओं से भी मुक्ति का मार्ग इस पुस्तक से प्राप्त किया जा सकेगा, विश्वास है । समाज के हित को ध्यान में रखने हुए समाज व्याप्त प्रमुख बीमारियों का योग द्वारा निदान कैसे संभव है? इस विषय पर लोगों को अपने लिए अलग अलग योगाभ्यास चुनने तथा योग की व्यावहारिक जानकारी प्राप्त करने में यह पुस्तक निश्चित रूप से एक मार्गदर्शक की भूमिका निभाएगी ।
पुस्तक को डिग्री, डिप्लोमा या योग विषय में शोध कर रहे छात्र छात्राओं को ध्यान में रखकर विशेष रुप से तैयार किया गया है । जिससे इस संदर्भ ग्रंथ के रुप में विभिन्न विश्वविद्यालयों में प्रयोग में लाया जा सकेगा ।
लेखक परिचय
लेखक योग विज्ञान के विशेषज्ञ विद्वान तथा उच्चस्तरीय शिक्षण अनुसंधान एवं चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में जाने माने व्यक्तित्व हैं । डी. कामाख्या कुमार ने टी.एम.बी. विश्वविद्यालय भागलपुर से व्यावहारिक योग चिकित्सा विज्ञान में स्नात्कोत्तर शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् तत्कालीन राष्ट्रपति डी. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम से पीं एच.डी. उपाधि प्राप्त की है । इन्होंने यौगिक वाड्मय का विस्तृत अध्ययन किया एवं अनुसंधान के क्षैत्र में उल्लेखनीय योगदान दिया है । इन्होंने योग चिकित्सा संदर्शिका, योग थैरेपी, योग महाविज्ञान, सुपर साइन्स .ऑफ योग, योग रहस्य एवं ए हेण्डबुक ऑफ योग निद्रा आदि कई पुस्तकों की ग्वना की जो खासी चर्चित हुई । इनमें से कई पुस्तकें विमिन्न विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रमों के अन्तर्गत स्नातक एवं स्नातकोत्तर स्तर पर पढ़ाई जा रही है ।
डी. कामाख्या कुमार वर्तमान में उत्तराखण्ड राज्य में विश्वविख्यात एवं प्रतिष्ठित विश्व विद्यालय के स्कूल ऑफ योग एण्ड हेल्थ के अन्तर्गत वरिष्ठ प्रवक्ता के रूप में कार्यरत है, साथ ही विश्वविद्यालय के योग आरोग्य पॉलीक्लीनिक के मुख्य समन्वयक का दायित्व भी इनपर है । विभागीय शोध एवं प्रकाशन कार्यो में अभिरूचि के साथ साथ राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय संगोष्ठियों में अपने शोध पात्रों के माध्यम से निरंतर अपने विचारों से इन्होंने विद्वतजनों को प्रभावित किया है । विश्वविद्यालय के कई ट्रेनिंग प्रोग्राम इनके द्वारा सफलता पूर्वक संपन्न कगार गए हैं । आकाशवाणी से इनकी योग वार्ताए नियमित रूप से प्रसारित की जाती है । डी. कुमार विभिन्न विश्वविद्यालयों में शोध निर्देशन तथा योग शिक्षा विषय पर लेखन कर रहे हैं ।
प्रस्तावना
योग विद्या भारतीय संस्कृति के सुदृढ़ आधार स्तम्भों में से एक है । योग के द्वारा जहाँ भारतीय संस्कृति के दार्शनिक पक्ष की पुष्टि हुई है वहीं इसके द्वारा मनुष्य में आध्यात्मिक प्रवृत्ति का भी विकास हुआ है । गीता के आठवें अध्याय के बारहवें श्लोक के अर्थ को देखकर इसकी व्यापकता एवं जटिलता का पता चलता है, जिसमं कहा गया है कि योग की स्थिति सभी ऐन्द्रिय व्यापारों से विरक्ति में है । इन्द्रियों के सारे द्वारों को बन्द करके तथा मन को हृदय में एवं प्राण वायु को सिर की चोटी पर स्थिर करके मनुष्य अपने को योग में स्थापित करता है । मनुष्य को योग में सफलता या सिद्धि केवल तब मिलती है जब वह योग के सिद्धातों को व्यावहारिक रूप देकर उन्हें जीवन में उतार कर आत्मसात करे । योग महाविज्ञान आज की इसी आवश्यकता की पूर्ति करने में सहायक ग्रंथ है । वेद, उपनिषद् गीता एवं अन्य पुराणों में वर्णित योग विद्या के जटिल पहलुओं को प्रकाश में लाने के साथ साथ व्यावहारिक जीवन के योग का जो स्वरूप प्रस्तुत किया गया है इसके लिये डॉ. कामाख्या कुमार जी को मैं हृदय से साधुवाद देता हूँ तथा उनकी इस रचना को एक अनुपम कृति मानता हूँ ।
भारतीय ऋषि परंपरा ने जन जन के लिये प्रेरणादायी मार्ग दर्शक की भूमिका निभाई है । योगियों संतों ने जीवन साधना के जो सूत्र सिखाए वह सब उन्होंने अपने जीवन की कसौटी पर कसने के बाद ही दिए । उनकी जीवनीयों के माध्यम से योग के विभिन्न पहलुओं को जानने समझने में सहायता मिलती है । प्रस्तुत पुस्तक प्राचीन एवं समकालीन योगियों की साधना एवं उनके सिद्धांतों को प्रतिपादित करने में भी अपनी महती भूमिका निभाता है ।
पुस्तक में दार्शनिक एवं व्यावहारिक पहलुओं का जिस सतर्कता से समावेश किया गया है जिससे इसे पाठ्य पुस्तक के रूप में भी विभिन्न विश्वविद्यालयों द्वारा ग्रहण किया जा सकता है । जिन विश्वविद्यालयों में योग के स्नातक एवं परास्नातक स्तर के पाठ्यक्रम चल रहे हैं वहाँ के शिक्षकों एवं छात्रों के लिए यह निश्चित रूप से एक उपयोगी पुस्तक सिद्ध होगी, ऐसी आशा है ।
आत्मकथ्य
भारतीय संस्कृति का कोश अनेकानेक रत्नों से भरा पड़ा है । योग विज्ञान उनमें से एक है । जो व्यक्ति को उच्च से उच्चतर उच्चतम सोपानों पर चढ़ने की विद्या का प्रशिक्षण देता है । योगकी शुरूआत मानव संस्कृति के विकास के साथ आध्यात्मिक उत्थान हेतु हुई थी । भारतीय ऋषियों संतों ने इस विद्या को धीरे धीरे विकसित किया । समय के साथ गुरु शिष्य परम्परा के माध्यम से यह हम तक पहुंची । इस दौरान इसकी पद्धतियों में समय समय पर परिवर्तन भी होते रहे । परन्तु आज के इस वैज्ञानिक युग में भी इसकी प्रासंगिकता कम नहीं हुई है । इसकी मुख्य वजह यह है कि योग ने पूर्व से लेकर आज तक मानवीय समस्याओं के समाध में ही नहीं वरन् उसके नैतिक आध्यात्मिक उत्थान हेतु भी मार्गदर्शक की भूमिका निभाई है ।
जन्ममरणरोगादि से संतप्त समस्त प्राणि निकायों में मनुष्य को ही यह सौभाग्य प्राप्त है कि वह इस शरीर से परमात्मस्वरूप का अनुभव कर कैवल्य की प्राप्ति कर सके । विशुद्ध बुद्धि अथवा चित्त में उत्पन्न ज्ञान प्रकाश द्वारा ही आत्मदर्शन किया जा सकता है । सम्पूर्ण योग विद्या के अन्तर्गत इसी चित्त अथवा जीव की स्वाभाविक शक्ति के उन्मूलन हेतु साधना अभिहित है । योग शास्त्रों में बताई गई विधिा का अनुसरण करने पर जीव आत्म साक्षात्कार में समर्थ हो जाता है यही मानव जीवन का परम लक्ष्य है ।अध्यात्म सत्ता का साक्षात्कार करने के कारण अध्यात्म जगत में योग का स्थान उस केन्द्र के समान है जहाँ सम्पूर्ण दार्शनिक एवं धार्मिक सम्प्रदाय समान रूप से आकर मिलते हैं ।
योग एक चेतनापरक विज्ञान है । उसमें स्थूल सूक्ष्म और कारण शरीरों को जागृत, सशक्त और प्रखर बनाने के लिए उसी प्रकार सोपान निर्धारित है जैसे छत पर चढ़ने के लिए जीने की सीढ़ियों में सन्निहित होता है । योग आज की आवश्यकता और आने वाले कल की संस्कृति है एक परमहंस योगी की यह वाणी सिद्ध होने जा रही है । जिस रूप में आज योग विज्ञान के सिद्धान्तों एवं सूत्रों को अपनाया जा रहा है और इसके प्रति लोगों ने जो जागरूकता दिखाई है केवल बुजुर्ग ही नहीं, युवा पीढ़ी भी इस ओर मुखातिब हो रही है, इससे यह स्पष्ट हो गया है कि हम योग युग में प्रवेश कर रहे हैं । इस बात को प्रमाणित करने की आवश्यकता नहीं कि जगह जगह लोग योग सीख और सिखा रहे हैं अपितु उनमें योग विद्या की गहराइयों का नितान्त अभाव है । ऐसे में कुशल मार्गदर्शक तलाशना मुश्किल सा प्रतीत होता है ।
राजयोग, हठयोग, लययोग प्राणयोग, कुण्डिलनी योग चक्र वेधन, ज्ञानयोग भक्तियोग, कर्मयोग, ध्यानयोग आदि अनेकानेक राजमार्ग निर्धारित है । उनमें से प्रत्येक में आरम्भ से चलकर अन्त तक क्रमबद्ध रूप से निर्धारण अपनाने पड़ते हैं यथा राजयोग में यम नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार धारणा ध्यान समाधि की एक क्रमबद्ध योजना है । हठयोग में नाड़ी शोधन नेति, धौति वस्ति, नौली, कपालभाति आदि का प्रयोग है यही बात अन्यान्य योग पद्धतियों के सम्बन्ध में भी है ।
योग के माध्यम से कोई भी रोगी अपने शरीर का निरीक्षण पर्यवेक्षण करना सीखकर शरीरगत कमियों व बीमारियों का पता लगा सकता है तथा अपनी प्राण शक्ति के द्वारा उन्हें ठीक भी कर सकता है।वैज्ञानिक योग क्रिया का अब फिजियोलॉजिकल, न्यूरो फिजियोलॉजिकल तथा साइकोलॉजिकल धरातल पर अध्ययन कर रहे हैं ।समाज की इस आवश्यकता की पूर्ति हेतु कुशल प्रशिक्षक तैयार करने हेतु उच्च शिक्षण संस्थान आगे आये हैं और विश्वविद्यालय स्तर पर योग विज्ञान में स्नातक एवं परास्नातक पाठ्यक्रमों की शुरूआत भी हो गई है, यह एक सुखद अनुभूति है । उत्तर भारत में देव संस्कृति विश्वविद्यालय, हरिद्वार, पूर्व में बिहार योग भारती मुंगेर पश्चिम में कैवल्यधाम, लोणावला एवं दक्षिण में विवेकानन्द योग केन्द्र बैंगलौर ने इस ओर अग्रणी भूमिका निभाई है । जिस रूप में भारत भर के कई विश्वविद्यालयों में डिप्लोमा और डिग्री स्तर के पाठ्यक्रम प्रारम्भ हुए हैं उसकी खुले दिल में प्रशंसा की जानी चाहिए । हालांकि इसके पीछे जिस अदृश्य सत्ता का हाथ है, उसे भी हमें भूलना नहीं चाहिए क्योंकि समस्त संसार ही उसके नियंत्रण एवं स्वामित्व में है ।
समय की इस गति के साथ जो महत्त्वपूर्ण आवश्यकता आ पड़ी है वह यह कि योग विद्या के गूढ रहस्यों पर प्रकाश डाला जाए । आज सामान्य धारणाएँ योग के प्रति लोगों की यही है कि महर्षि पतंजलि प्रणीत योग सूत्र या स्वात्माराम रचित हठयोग प्रदीपिका यही दो ग्रंथ योग विज्ञान की धुरी है, इससे पूर्व या परे कुछ नहीं है, जबकि वस्तुस्थिति यह है कि भारतीय दर्शन एवं वेदादि ग्रंथ यौगिक सिद्धान्तों से भरे पड़े हैं । आवश्यकता है, उन्हें प्रकाश में लाने और जीवनोपयोगी बनाने की ।
प्रस्तुत पुस्तक आदि काल से अब तक के विभिन्न ज्ञान स्रोतों से योग विद्या को एक संकलित रूप देने का प्रयास है ।
आशा है इस ओर सहज जिज्ञासु एवं इस विद्या में निपुण होने वाले छात्र छात्राओं के साथ प्रशिक्षकों हेतु भी यह एक मार्गदर्शक पुस्तक सिद्ध होगी ।
पुस्तक प्रकाशन के इस अवसर पर मैं अन्तर्मन से नमन करता हूं गुरु चरणों में जिनके सूक्ष्म संरक्षण में यह जीवन धन्य हुआ और अध्ययन अध्यापन से लेकर पुस्तक लेखन तक की सामर्थ्य पाई । मैं इससुअवसर पर स्मरण करना चाहता हूं अपने अभिभावक आदरणीया शैल जीजी एवं श्रद्धेय डॉ. प्रवण पण्ड्या (कुलाधिपति, देव संस्कृति विश्वविद्यालय) .को जिनका सतत् प्रेम व मार्ग दर्शन हमें प्राप्त होता रहा है । योग चिकित्सा संदर्शिका नामक हमारी पहली पुस्तक के आमुख में ही आशीर्वचन स्वरूप जो शब्द उन्होंने लिखे वे चरितार्थ होते नजर आ रहे हैं ।
पूज्या माँ (श्रीमती इन्दु देवी) एवं पूज्य पिताजी (श्री सच्चिदानन्द सिंह) के पावन चरणों में सत् सत् नम करते हुए मैं अपने परिवार के अन्य सदस्यों सहित आभारी हूं अपनी धर्म पत्नी (श्रीमती प्रतिभा सिंह) का जिनका सतत् सहयोग इस पुस्तक के लेखन के दौरान प्राप्त होता रहा । मैं आभारी हूं अपने इन मित्रों और सहयोगियों का जिनका योगदान किसी न किसी रूप में हमें प्राप्त होता रहा विशेष रूप से श्री किर्तन देसाई एवं योगाभ्यासी श्री पंकज जैन को स्मरण करना मेरा परम कर्त्तव्य है । पुस्तक लेखन से लेकर प्रकाशन तक सतत् प्रोत्साहन एवं सहयोग हेतु मैं आभारी हूं श्री महेन्द्र वशिष्ठ जी का । मैं आभारी हूं उन सभी विद्वजनों एवं आचार्यो का जिनके गन्धों का सहयोग हमें पुस्तक लेखन के दौरान प्राप्त हुआ । अन्त में योग क्षेत्र के समस्त आचार्यो एवं अभ्यासियों से सतत् सहयोग की कामना से यह पुस्तक उनके हाथों सौंपता हूँ ।
विषय सूची |
||
प्रस्तावना |
7 |
|
आत्मकथ्य |
9 |
|
भाग 1 योग का ऐतिहासिक अध्ययन |
||
1 |
योग का अर्थ एवं परिभाषा |
19 |
2 |
योग का उद्गम |
27 |
3 |
योग की परम्पराएँ |
31 |
4 |
योग अध्ययन का उद्देश्य |
36 |
5 |
मानव जीवन में योग का महत्व |
40 |
6 |
योगी का व्यक्तित्व |
45 |
7 |
योग का महत्व |
49 |
8 |
वेदों में योग विद्या |
53 |
9 |
उपनिषदों में योग का स्वरूप |
58 |
10 |
योग वाशिष्ठ में योग का स्वरूप |
64 |
11 |
गीता में योग का स्वरूप |
71 |
12 |
पुराणों में योग का स्वरूप |
76 |
13 |
जैन दर्शन में योग का स्वरूप |
82 |
14 |
बौद्ध दर्शन में योग का स्वरूप |
87 |
15 |
वेदान्त दर्शन में योग का स्वरूप |
91 |
16 |
सांख्य दर्शन में योग का स्वरूप |
95 |
17 |
आयुर्वेद में योग का स्वरूप |
99 |
18 |
राजयोग |
103 |
19 |
कर्म योग |
108 |
20 |
भक्ति योग |
114 |
21 |
हठयोग |
119 |
22 |
पातंजल योग |
124 |
23 |
ज्ञान योग |
129 |
24 |
मंत्र योग |
134 |
भाग 2 प्राचीन व समकालीन योगियों की जीवनी |
||
1 |
महर्षि पतंजलि |
141 |
2 |
महर्षि वशिष्ठ |
146 |
3 |
महर्षि याज्ञवल्क्य |
150 |
4 |
आदि गुरु शंकराचार्य |
155 |
5 |
महात्मा बुद्ध |
159 |
6 |
योगीराज गोरखनाथ |
164 |
7 |
स्वामी रामकृष्ण परमहंस |
168 |
8 |
स्वामी दयानन्द |
171 |
9 |
श्री अरविंद |
176 |
10 |
पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य |
179 |
11 |
स्वामी शिवानन्द |
183 |
12 |
स्वामी कुवलयानन्द |
187 |
13 |
परमहंस स्वामी सत्यानन्द सरस्वती |
190 |
भाग 3 योग चिकित्सा |
||
1 |
स्वस्थ व्यक्तियों के लिए योगाभ्यास |
197 |
2 |
बच्चों एवं किशोरों के लिए योग |
198 |
3 |
महिलाओं के लिए योगाभ्यास |
199 |
4 |
वृद्धों के लिए योगाभ्यास |
200 |
5 |
अनिद्रा व तनाव के रोगियों के लिए योग |
201 |
6 |
अवसाद के रोगियों के लिए योगाभ्यास |
202 |
7 |
उच्च रक्तचाप एवं योगाभ्यास |
204 |
8 |
हृदय रोग एवं योगाभ्यास |
205 |
9 |
मधुमेह एवं योगाभ्यास |
207 |
10 |
मोटापा एवं योगाभ्यास |
209 |
11 |
दमा एवं योगाभ्यास |
211 |
12 |
कब्ज अपच एवं योगाभ्यास |
212 |
13 |
अर्थराइटिस एवं योगाभ्यास |
213 |
14 |
ग्रीवादंश कमर दर्द एवं योगाभ्यास |
215 |
15 |
माइग्रेन का योगापचार |
216 |
16 |
सायनस का योगोपचार |
217 |
भाग 4 योगाभ्यास विधि |
||
1 |
योगाभ्यास हेतु सामान्य निर्देश |
221 |
2 |
संधि संचालन के अभ्यास |
223 |
3 |
उदर संचालन के अभ्यास |
230 |
4 |
शक्ति बंध के अभ्यास |
233 |
5 |
विशेष अभ्यास |
236 |
6 |
सूर्य नमस्कार |
239 |
7 |
ध्यानात्मक आसन |
245 |
8 |
शरीर संवर्धनात्मक आसन |
246 |
9 |
शवासन |
251 |
10 |
प्राणायाम विधियाँ |
253 |
11 |
षट्कर्म |
257 |
12 |
सोऽहम् साधना |
259 |
13 |
योग निद्रा |
260 |
अनुक्रमणिका |
264 |
पुस्तक परिचय
प्रस्तुत पुस्तक योग महाविज्ञान प्राचीन ऋषि परंपरा से आविभूर्त योग विद्या का सरल एवं व्यावहारिक स्वरुप प्रस्तुत करने का एक अपूर्व प्रयास है । इस ग्रंथ के अर्न्तगत वेद, उपनिषद, योगवशिष्ठ, श्रीमद्भगवद्गीता, पातंजल योग सूत्र एवं हठ यौगिक ग्रंथो में उपलब्ध योग विज्ञान के महत्वपूर्ण सूत्रों को प्रकाश में लाते हुए विभिन्न धर्मो के योग के स्वरुप को उजागर करने के साथ साथ महान योगियों की जीवन साधना के माध्यम से योग के प्रति आम धारणाओं से भी मुक्ति का मार्ग इस पुस्तक से प्राप्त किया जा सकेगा, विश्वास है । समाज के हित को ध्यान में रखने हुए समाज व्याप्त प्रमुख बीमारियों का योग द्वारा निदान कैसे संभव है? इस विषय पर लोगों को अपने लिए अलग अलग योगाभ्यास चुनने तथा योग की व्यावहारिक जानकारी प्राप्त करने में यह पुस्तक निश्चित रूप से एक मार्गदर्शक की भूमिका निभाएगी ।
पुस्तक को डिग्री, डिप्लोमा या योग विषय में शोध कर रहे छात्र छात्राओं को ध्यान में रखकर विशेष रुप से तैयार किया गया है । जिससे इस संदर्भ ग्रंथ के रुप में विभिन्न विश्वविद्यालयों में प्रयोग में लाया जा सकेगा ।
लेखक परिचय
लेखक योग विज्ञान के विशेषज्ञ विद्वान तथा उच्चस्तरीय शिक्षण अनुसंधान एवं चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में जाने माने व्यक्तित्व हैं । डी. कामाख्या कुमार ने टी.एम.बी. विश्वविद्यालय भागलपुर से व्यावहारिक योग चिकित्सा विज्ञान में स्नात्कोत्तर शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् तत्कालीन राष्ट्रपति डी. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम से पीं एच.डी. उपाधि प्राप्त की है । इन्होंने यौगिक वाड्मय का विस्तृत अध्ययन किया एवं अनुसंधान के क्षैत्र में उल्लेखनीय योगदान दिया है । इन्होंने योग चिकित्सा संदर्शिका, योग थैरेपी, योग महाविज्ञान, सुपर साइन्स .ऑफ योग, योग रहस्य एवं ए हेण्डबुक ऑफ योग निद्रा आदि कई पुस्तकों की ग्वना की जो खासी चर्चित हुई । इनमें से कई पुस्तकें विमिन्न विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रमों के अन्तर्गत स्नातक एवं स्नातकोत्तर स्तर पर पढ़ाई जा रही है ।
डी. कामाख्या कुमार वर्तमान में उत्तराखण्ड राज्य में विश्वविख्यात एवं प्रतिष्ठित विश्व विद्यालय के स्कूल ऑफ योग एण्ड हेल्थ के अन्तर्गत वरिष्ठ प्रवक्ता के रूप में कार्यरत है, साथ ही विश्वविद्यालय के योग आरोग्य पॉलीक्लीनिक के मुख्य समन्वयक का दायित्व भी इनपर है । विभागीय शोध एवं प्रकाशन कार्यो में अभिरूचि के साथ साथ राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय संगोष्ठियों में अपने शोध पात्रों के माध्यम से निरंतर अपने विचारों से इन्होंने विद्वतजनों को प्रभावित किया है । विश्वविद्यालय के कई ट्रेनिंग प्रोग्राम इनके द्वारा सफलता पूर्वक संपन्न कगार गए हैं । आकाशवाणी से इनकी योग वार्ताए नियमित रूप से प्रसारित की जाती है । डी. कुमार विभिन्न विश्वविद्यालयों में शोध निर्देशन तथा योग शिक्षा विषय पर लेखन कर रहे हैं ।
प्रस्तावना
योग विद्या भारतीय संस्कृति के सुदृढ़ आधार स्तम्भों में से एक है । योग के द्वारा जहाँ भारतीय संस्कृति के दार्शनिक पक्ष की पुष्टि हुई है वहीं इसके द्वारा मनुष्य में आध्यात्मिक प्रवृत्ति का भी विकास हुआ है । गीता के आठवें अध्याय के बारहवें श्लोक के अर्थ को देखकर इसकी व्यापकता एवं जटिलता का पता चलता है, जिसमं कहा गया है कि योग की स्थिति सभी ऐन्द्रिय व्यापारों से विरक्ति में है । इन्द्रियों के सारे द्वारों को बन्द करके तथा मन को हृदय में एवं प्राण वायु को सिर की चोटी पर स्थिर करके मनुष्य अपने को योग में स्थापित करता है । मनुष्य को योग में सफलता या सिद्धि केवल तब मिलती है जब वह योग के सिद्धातों को व्यावहारिक रूप देकर उन्हें जीवन में उतार कर आत्मसात करे । योग महाविज्ञान आज की इसी आवश्यकता की पूर्ति करने में सहायक ग्रंथ है । वेद, उपनिषद् गीता एवं अन्य पुराणों में वर्णित योग विद्या के जटिल पहलुओं को प्रकाश में लाने के साथ साथ व्यावहारिक जीवन के योग का जो स्वरूप प्रस्तुत किया गया है इसके लिये डॉ. कामाख्या कुमार जी को मैं हृदय से साधुवाद देता हूँ तथा उनकी इस रचना को एक अनुपम कृति मानता हूँ ।
भारतीय ऋषि परंपरा ने जन जन के लिये प्रेरणादायी मार्ग दर्शक की भूमिका निभाई है । योगियों संतों ने जीवन साधना के जो सूत्र सिखाए वह सब उन्होंने अपने जीवन की कसौटी पर कसने के बाद ही दिए । उनकी जीवनीयों के माध्यम से योग के विभिन्न पहलुओं को जानने समझने में सहायता मिलती है । प्रस्तुत पुस्तक प्राचीन एवं समकालीन योगियों की साधना एवं उनके सिद्धांतों को प्रतिपादित करने में भी अपनी महती भूमिका निभाता है ।
पुस्तक में दार्शनिक एवं व्यावहारिक पहलुओं का जिस सतर्कता से समावेश किया गया है जिससे इसे पाठ्य पुस्तक के रूप में भी विभिन्न विश्वविद्यालयों द्वारा ग्रहण किया जा सकता है । जिन विश्वविद्यालयों में योग के स्नातक एवं परास्नातक स्तर के पाठ्यक्रम चल रहे हैं वहाँ के शिक्षकों एवं छात्रों के लिए यह निश्चित रूप से एक उपयोगी पुस्तक सिद्ध होगी, ऐसी आशा है ।
आत्मकथ्य
भारतीय संस्कृति का कोश अनेकानेक रत्नों से भरा पड़ा है । योग विज्ञान उनमें से एक है । जो व्यक्ति को उच्च से उच्चतर उच्चतम सोपानों पर चढ़ने की विद्या का प्रशिक्षण देता है । योगकी शुरूआत मानव संस्कृति के विकास के साथ आध्यात्मिक उत्थान हेतु हुई थी । भारतीय ऋषियों संतों ने इस विद्या को धीरे धीरे विकसित किया । समय के साथ गुरु शिष्य परम्परा के माध्यम से यह हम तक पहुंची । इस दौरान इसकी पद्धतियों में समय समय पर परिवर्तन भी होते रहे । परन्तु आज के इस वैज्ञानिक युग में भी इसकी प्रासंगिकता कम नहीं हुई है । इसकी मुख्य वजह यह है कि योग ने पूर्व से लेकर आज तक मानवीय समस्याओं के समाध में ही नहीं वरन् उसके नैतिक आध्यात्मिक उत्थान हेतु भी मार्गदर्शक की भूमिका निभाई है ।
जन्ममरणरोगादि से संतप्त समस्त प्राणि निकायों में मनुष्य को ही यह सौभाग्य प्राप्त है कि वह इस शरीर से परमात्मस्वरूप का अनुभव कर कैवल्य की प्राप्ति कर सके । विशुद्ध बुद्धि अथवा चित्त में उत्पन्न ज्ञान प्रकाश द्वारा ही आत्मदर्शन किया जा सकता है । सम्पूर्ण योग विद्या के अन्तर्गत इसी चित्त अथवा जीव की स्वाभाविक शक्ति के उन्मूलन हेतु साधना अभिहित है । योग शास्त्रों में बताई गई विधिा का अनुसरण करने पर जीव आत्म साक्षात्कार में समर्थ हो जाता है यही मानव जीवन का परम लक्ष्य है ।अध्यात्म सत्ता का साक्षात्कार करने के कारण अध्यात्म जगत में योग का स्थान उस केन्द्र के समान है जहाँ सम्पूर्ण दार्शनिक एवं धार्मिक सम्प्रदाय समान रूप से आकर मिलते हैं ।
योग एक चेतनापरक विज्ञान है । उसमें स्थूल सूक्ष्म और कारण शरीरों को जागृत, सशक्त और प्रखर बनाने के लिए उसी प्रकार सोपान निर्धारित है जैसे छत पर चढ़ने के लिए जीने की सीढ़ियों में सन्निहित होता है । योग आज की आवश्यकता और आने वाले कल की संस्कृति है एक परमहंस योगी की यह वाणी सिद्ध होने जा रही है । जिस रूप में आज योग विज्ञान के सिद्धान्तों एवं सूत्रों को अपनाया जा रहा है और इसके प्रति लोगों ने जो जागरूकता दिखाई है केवल बुजुर्ग ही नहीं, युवा पीढ़ी भी इस ओर मुखातिब हो रही है, इससे यह स्पष्ट हो गया है कि हम योग युग में प्रवेश कर रहे हैं । इस बात को प्रमाणित करने की आवश्यकता नहीं कि जगह जगह लोग योग सीख और सिखा रहे हैं अपितु उनमें योग विद्या की गहराइयों का नितान्त अभाव है । ऐसे में कुशल मार्गदर्शक तलाशना मुश्किल सा प्रतीत होता है ।
राजयोग, हठयोग, लययोग प्राणयोग, कुण्डिलनी योग चक्र वेधन, ज्ञानयोग भक्तियोग, कर्मयोग, ध्यानयोग आदि अनेकानेक राजमार्ग निर्धारित है । उनमें से प्रत्येक में आरम्भ से चलकर अन्त तक क्रमबद्ध रूप से निर्धारण अपनाने पड़ते हैं यथा राजयोग में यम नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार धारणा ध्यान समाधि की एक क्रमबद्ध योजना है । हठयोग में नाड़ी शोधन नेति, धौति वस्ति, नौली, कपालभाति आदि का प्रयोग है यही बात अन्यान्य योग पद्धतियों के सम्बन्ध में भी है ।
योग के माध्यम से कोई भी रोगी अपने शरीर का निरीक्षण पर्यवेक्षण करना सीखकर शरीरगत कमियों व बीमारियों का पता लगा सकता है तथा अपनी प्राण शक्ति के द्वारा उन्हें ठीक भी कर सकता है।वैज्ञानिक योग क्रिया का अब फिजियोलॉजिकल, न्यूरो फिजियोलॉजिकल तथा साइकोलॉजिकल धरातल पर अध्ययन कर रहे हैं ।समाज की इस आवश्यकता की पूर्ति हेतु कुशल प्रशिक्षक तैयार करने हेतु उच्च शिक्षण संस्थान आगे आये हैं और विश्वविद्यालय स्तर पर योग विज्ञान में स्नातक एवं परास्नातक पाठ्यक्रमों की शुरूआत भी हो गई है, यह एक सुखद अनुभूति है । उत्तर भारत में देव संस्कृति विश्वविद्यालय, हरिद्वार, पूर्व में बिहार योग भारती मुंगेर पश्चिम में कैवल्यधाम, लोणावला एवं दक्षिण में विवेकानन्द योग केन्द्र बैंगलौर ने इस ओर अग्रणी भूमिका निभाई है । जिस रूप में भारत भर के कई विश्वविद्यालयों में डिप्लोमा और डिग्री स्तर के पाठ्यक्रम प्रारम्भ हुए हैं उसकी खुले दिल में प्रशंसा की जानी चाहिए । हालांकि इसके पीछे जिस अदृश्य सत्ता का हाथ है, उसे भी हमें भूलना नहीं चाहिए क्योंकि समस्त संसार ही उसके नियंत्रण एवं स्वामित्व में है ।
समय की इस गति के साथ जो महत्त्वपूर्ण आवश्यकता आ पड़ी है वह यह कि योग विद्या के गूढ रहस्यों पर प्रकाश डाला जाए । आज सामान्य धारणाएँ योग के प्रति लोगों की यही है कि महर्षि पतंजलि प्रणीत योग सूत्र या स्वात्माराम रचित हठयोग प्रदीपिका यही दो ग्रंथ योग विज्ञान की धुरी है, इससे पूर्व या परे कुछ नहीं है, जबकि वस्तुस्थिति यह है कि भारतीय दर्शन एवं वेदादि ग्रंथ यौगिक सिद्धान्तों से भरे पड़े हैं । आवश्यकता है, उन्हें प्रकाश में लाने और जीवनोपयोगी बनाने की ।
प्रस्तुत पुस्तक आदि काल से अब तक के विभिन्न ज्ञान स्रोतों से योग विद्या को एक संकलित रूप देने का प्रयास है ।
आशा है इस ओर सहज जिज्ञासु एवं इस विद्या में निपुण होने वाले छात्र छात्राओं के साथ प्रशिक्षकों हेतु भी यह एक मार्गदर्शक पुस्तक सिद्ध होगी ।
पुस्तक प्रकाशन के इस अवसर पर मैं अन्तर्मन से नमन करता हूं गुरु चरणों में जिनके सूक्ष्म संरक्षण में यह जीवन धन्य हुआ और अध्ययन अध्यापन से लेकर पुस्तक लेखन तक की सामर्थ्य पाई । मैं इससुअवसर पर स्मरण करना चाहता हूं अपने अभिभावक आदरणीया शैल जीजी एवं श्रद्धेय डॉ. प्रवण पण्ड्या (कुलाधिपति, देव संस्कृति विश्वविद्यालय) .को जिनका सतत् प्रेम व मार्ग दर्शन हमें प्राप्त होता रहा है । योग चिकित्सा संदर्शिका नामक हमारी पहली पुस्तक के आमुख में ही आशीर्वचन स्वरूप जो शब्द उन्होंने लिखे वे चरितार्थ होते नजर आ रहे हैं ।
पूज्या माँ (श्रीमती इन्दु देवी) एवं पूज्य पिताजी (श्री सच्चिदानन्द सिंह) के पावन चरणों में सत् सत् नम करते हुए मैं अपने परिवार के अन्य सदस्यों सहित आभारी हूं अपनी धर्म पत्नी (श्रीमती प्रतिभा सिंह) का जिनका सतत् सहयोग इस पुस्तक के लेखन के दौरान प्राप्त होता रहा । मैं आभारी हूं अपने इन मित्रों और सहयोगियों का जिनका योगदान किसी न किसी रूप में हमें प्राप्त होता रहा विशेष रूप से श्री किर्तन देसाई एवं योगाभ्यासी श्री पंकज जैन को स्मरण करना मेरा परम कर्त्तव्य है । पुस्तक लेखन से लेकर प्रकाशन तक सतत् प्रोत्साहन एवं सहयोग हेतु मैं आभारी हूं श्री महेन्द्र वशिष्ठ जी का । मैं आभारी हूं उन सभी विद्वजनों एवं आचार्यो का जिनके गन्धों का सहयोग हमें पुस्तक लेखन के दौरान प्राप्त हुआ । अन्त में योग क्षेत्र के समस्त आचार्यो एवं अभ्यासियों से सतत् सहयोग की कामना से यह पुस्तक उनके हाथों सौंपता हूँ ।
विषय सूची |
||
प्रस्तावना |
7 |
|
आत्मकथ्य |
9 |
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भाग 1 योग का ऐतिहासिक अध्ययन |
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1 |
योग का अर्थ एवं परिभाषा |
19 |
2 |
योग का उद्गम |
27 |
3 |
योग की परम्पराएँ |
31 |
4 |
योग अध्ययन का उद्देश्य |
36 |
5 |
मानव जीवन में योग का महत्व |
40 |
6 |
योगी का व्यक्तित्व |
45 |
7 |
योग का महत्व |
49 |
8 |
वेदों में योग विद्या |
53 |
9 |
उपनिषदों में योग का स्वरूप |
58 |
10 |
योग वाशिष्ठ में योग का स्वरूप |
64 |
11 |
गीता में योग का स्वरूप |
71 |
12 |
पुराणों में योग का स्वरूप |
76 |
13 |
जैन दर्शन में योग का स्वरूप |
82 |
14 |
बौद्ध दर्शन में योग का स्वरूप |
87 |
15 |
वेदान्त दर्शन में योग का स्वरूप |
91 |
16 |
सांख्य दर्शन में योग का स्वरूप |
95 |
17 |
आयुर्वेद में योग का स्वरूप |
99 |
18 |
राजयोग |
103 |
19 |
कर्म योग |
108 |
20 |
भक्ति योग |
114 |
21 |
हठयोग |
119 |
22 |
पातंजल योग |
124 |
23 |
ज्ञान योग |
129 |
24 |
मंत्र योग |
134 |
भाग 2 प्राचीन व समकालीन योगियों की जीवनी |
||
1 |
महर्षि पतंजलि |
141 |
2 |
महर्षि वशिष्ठ |
146 |
3 |
महर्षि याज्ञवल्क्य |
150 |
4 |
आदि गुरु शंकराचार्य |
155 |
5 |
महात्मा बुद्ध |
159 |
6 |
योगीराज गोरखनाथ |
164 |
7 |
स्वामी रामकृष्ण परमहंस |
168 |
8 |
स्वामी दयानन्द |
171 |
9 |
श्री अरविंद |
176 |
10 |
पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य |
179 |
11 |
स्वामी शिवानन्द |
183 |
12 |
स्वामी कुवलयानन्द |
187 |
13 |
परमहंस स्वामी सत्यानन्द सरस्वती |
190 |
भाग 3 योग चिकित्सा |
||
1 |
स्वस्थ व्यक्तियों के लिए योगाभ्यास |
197 |
2 |
बच्चों एवं किशोरों के लिए योग |
198 |
3 |
महिलाओं के लिए योगाभ्यास |
199 |
4 |
वृद्धों के लिए योगाभ्यास |
200 |
5 |
अनिद्रा व तनाव के रोगियों के लिए योग |
201 |
6 |
अवसाद के रोगियों के लिए योगाभ्यास |
202 |
7 |
उच्च रक्तचाप एवं योगाभ्यास |
204 |
8 |
हृदय रोग एवं योगाभ्यास |
205 |
9 |
मधुमेह एवं योगाभ्यास |
207 |
10 |
मोटापा एवं योगाभ्यास |
209 |
11 |
दमा एवं योगाभ्यास |
211 |
12 |
कब्ज अपच एवं योगाभ्यास |
212 |
13 |
अर्थराइटिस एवं योगाभ्यास |
213 |
14 |
ग्रीवादंश कमर दर्द एवं योगाभ्यास |
215 |
15 |
माइग्रेन का योगापचार |
216 |
16 |
सायनस का योगोपचार |
217 |
भाग 4 योगाभ्यास विधि |
||
1 |
योगाभ्यास हेतु सामान्य निर्देश |
221 |
2 |
संधि संचालन के अभ्यास |
223 |
3 |
उदर संचालन के अभ्यास |
230 |
4 |
शक्ति बंध के अभ्यास |
233 |
5 |
विशेष अभ्यास |
236 |
6 |
सूर्य नमस्कार |
239 |
7 |
ध्यानात्मक आसन |
245 |
8 |
शरीर संवर्धनात्मक आसन |
246 |
9 |
शवासन |
251 |
10 |
प्राणायाम विधियाँ |
253 |
11 |
षट्कर्म |
257 |
12 |
सोऽहम् साधना |
259 |
13 |
योग निद्रा |
260 |
अनुक्रमणिका |
264 |